उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की राजनीति से मायावती (Mayawati) की बहुजन समाज पार्टी (BSP) 'फेड आउट' होती जा रही है लेकिन अब कई सांसद और बड़े नेता भी बीएसपी का साथ छोड़ते जा रहे हैं. कोई बीजेपी (BJP) तो कोई समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) या फिर कांग्रेस (Congress) में विकल्प तलाश रहा है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, आइए समझने की कोशिश करते हैं.
कौन-कौन छोड़ रहा है 'हाथी' का साथ?
गुड्डू जमाली: बीएसपी नेता और पूर्व विधायक शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं. उन्होंने कहा कि मैंने PDA (पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक) के लक्ष्य के लिए एसपी जॉइन की है. मैं बीएसपी में भी रहा, मुझे वहां भी सम्मान मिला पर अब लग रहा है कि जो लड़ाई मैं लोगों के लिए लड़ना चाहता हूं, वो यहीं संभव है. मैं पढ़ा लिखा आदमी हूं. पहले जो बातें हुईं उनकी बात करने का अब कोई मतलब नहीं है. मेरी कोई मांग नहीं है."
रितेश पांडे: बीएसपी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देने वाले रितेश पांडे बीजेपी में शामिल हो गए. अपने इस्तीफे में उन्होंने लिखा, "लंबे समय से मुझे न तो पार्टी की बैठकों में बुलाया जा रहा है और न ही नेतृत्व के स्तर पर संवाद दिया जा रहा है. मैंने मुलाकात के लिए कई कोशिशें कीं, कोई नतीजा नहीं निकला. मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि पार्टी को मेरी जरूरत नहीं रही. मैं प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूं और मैं पार्टी समेत आपके प्रति आभार व्यक्त करता हूं. शुभकामनाएं."
अफजल अंसारी: बीएसपी के टिकट पर लोकसभा पहुंचे अफजल अंसारी के कार्यकाल के अंतिम साल में उन्हें गैंगस्टर एक्ट के तहत जेल की सजा हो गई थी, अब उन्हें समाजवादी पर्टी ने लोकसभा का टिकट दिया है. अंसारी ने एक बार कहा था कि जब उन पर संकट आया तब मायावती ने उन्हें सहारा नहीं दिया. उस समय अखिलेश यादव ने उन्हें सहारा दिया. उन्होंने कहा, "अफसोस इस बात का है जिसके (मायावती) हाथ में हाथ डालकर हम चल रहे थे उन्होंने संकट की घड़ी में हाथ छुड़ा लिया."
श्याम सिंह यादव: जौनपुर के बीएसपी सांसद श्याम सिंह यादव आगरा में राहुल गांधी की न्याय यात्रा में शामिल हुए, ये एक संकेत हैं कि वे कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं. हालांकि उन्होंने कहा है, "बीएसपी से सम्मान मिलेगा तो वे पार्टी नहीं छोड़ेंगे फिर टिकट मिले या ना मिले."
दानिश अली: अमरोहा से बीएसपी सांसद दानिश अली ने कांग्रेस के साथ जाने के संकेत दिए हैं. जानकारी के अनुसार वे राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल हो सकते हैं. वे कह चुके हैं, "एसपी और कांग्रेस के गठबंधन से उम्मीद है कि ये बीजेपी के अन्याय को उखाड़ फेंकेगी."
BSP का साथ क्यों छोड़ रहे दिग्गज नेता?
बीएसपी को छोड़ रहे दिग्गज नेताओं की बातों पर गौर करें तो पता चलता है कि कोई मायावती से संपर्क साधने में नाकामयाब है, कोई सम्मान की मांग कर रहा है, कोई पार्टी की एकला चलो नीति से नाराज दिख रहा है.
वरिष्ठ पत्रकार उत्कर्ष सिन्हा ने क्विंट हिंदी से बातचीत में कहा कि:
"ऐसा देखा गया है कि बीएसपी में नए चेहरों को अब ज्यादा मौके मिलते दिख रहे हैं. नए लोगों को टिकट दिए जा रहे हैं. दूसरा, बीएसपी अब किसी फाइट में नजर नहीं आ रही, पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा."
उन्होंने आगे कहा, "बीएसपी के कई नेताओं को बीएसपी के साथ भविष्य नहीं दिख रहा, मैं एक या दो नामों की बात नहीं कर रहा, दस के दस नामों की बात कर रहा हूं, हर कोई अपने लिए सुरक्षित विकल्प की तलाश में हैं."
वहीं रितेश पांडे के पार्टी से इस्तीफा देने के बाद मायावती ने ट्वीट किया था, "अधिकतर लोकसभा सांसदों को टिकट दिया जाना क्या संभव है? खासकर तब जब वे खुद अपने स्वार्थ में इधर-उधर भटकते नजर आ रहे हैं और नकारात्मक चर्चा में हैं. मीडिया के यह सब कुछ जानने के बावजूद इसे पार्टी की कमजोरी के रूप में प्रचारित करना अनुचित है. बीएसपी का पार्टी हित सर्वोपरि."
कमजोर होती बीएसपी
2007 में यूपी में अकेले सरकार बनाने वाली बीएसपी अब ढलान पर है. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी ने 80 में से 10 सीटों पर 19.4 फीसदी वोट शेयर के साथ जीत हासिल की थी, वहीं 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी का हाल बुरा हो गया. बीएसपी ने केवल एक ही सीट पर जीत हासिल की और 12.8 फीसदी वोट शेयर हासिल किया.
"मायावती की राजनीतिक आक्रामकता कहीं खोई हुई है. 2019 के बाद से ही बीएसपी का वोट बैंक सिमटा है और 2019 में भी जो 10 सांसद जीते हैं वो समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन की देन है. गठबंधन में समाजवादी पार्टी से ज्यादा फायदा बीएसपी को हुआ क्योंकि एसपी को तो पांच ही सीट मिली, इसके बावजूद मायावती द्वारा एकला चलो की नीति अपनाना और ये दावा करना कि गठबंधन से बीएसपी को नुकसान होता है, इसका तो कोई मतलब नहीं."उत्कर्ष सिन्हा, वरिष्ठ पत्रकार
उत्कर्ष सिन्हा ने आगे बताया, "पिछले 10 सालों में राजनीति की धारा बदल चुकी है और ऐसे में जहां ध्रुवीकरण की राजनीति हो रही है वहां अकेले चलने के बजाय किसी के साथ खड़े होने में ही फायदा है. इंडिया ब्लॉक की ओर से मायावती को गठबंधन के लिए बुलाया गया था लेकिन जिन भी मजबूरियों के कारण उन्होंने गठबंधन स्वीकार नहीं किया, इससे उन्हें कोई लाभ नहीं होगा और ये बात सच है कि आज के चुनावी मैदान में मायावती कहीं खड़ी नहीं दिख रही."
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)