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मुख्यमंत्री शिवराज चौहान की प्रतिज्ञा खतरे में है, क्योंकि उनके खिलाफ प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने उम्मीदवारी की ताल ठोक दी है. मध्य प्रदेश के सीएम को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस फ्रंटफुट पर खेलकर इतने बड़े नेता को उनके मुकाबले उतार देगी.
लेकिन वचन या प्रतिज्ञा करते वक्त उन्हें कांग्रेस से इतने बड़े सरप्राइज की उम्मीद नहीं थी. अरुण यादव मध्य प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष हैं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और मुख्यमंत्री के खिलाफ उनके विधानसभा क्षेत्र बुधनी में बीजेपी सरकार के खिलाफ पोल-खोल पदयात्राएं निकाल चुके हैं. यादव का दावा है कि बुधनी उनके लिए नया नहीं है.
बुधनी बीजेपी का गढ़ है. शिवराज यहां से 10 साल से विधायक हैं. हर बार उन्हें भारी मार्जिन से जीत मिली है. लेकिन जानकारों को लगता है कि मुख्यमंत्री वोटिंग के पहले बुधनी नहीं आने का ऐलान ओवर कॉन्फिडेंस में कर गए, क्योंकि अरुण यादव की मौजूदगी में मुकाबला रोचक हो गया है.
शिवराज को टक्कर देने के लिए 10 साल में पहली बार कांग्रेस ने इतने मजबूत उम्मीदवार को उतारा है. वो इसके जरिए दो मकसद हासिल करना चाहती है.
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने क्विंट से बातचीत में कहा कि वो जीत के लिए मैदान में उतरे हैं और इस बार शिवराज को विधायक और मुख्यमंत्री पद, दोनों ही गंवाने पड़ेंगे.
कांग्रेस उम्मीदवार यादव ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र राज्य में अवैध रेत खनन का हेडक्वार्टर है. उन्होंने कहा कि बुधनी तहसील मुख्यमंत्री का गृह जिला सीहोर का हिस्सा है और ये जिला किसान आत्महत्याओं में सबसे आगे है.
क्या कांग्रेस ने उन्हें बुधनी विधानसभा में उतारकर मुश्किल में डाल दिया है? इस सवाल पर अरुण यादव ने कहा कि वो पूरे क्षेत्र से अच्छी तरह वाकिफ हैं और यहां के लिए नए नहीं हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तो कुछ दिन पहले दावा ही किया था कि अगर शिवराज चौहान के खिलाफ मजबूत उम्मीदवार उतारा गया, तो वो चुनाव हार सकते हैं. दिग्विजय का दावा है कि अपनी नर्मदा यात्रा के दौरान जब वो बुधनी इलाके में गए थे, तो बीजेपी सरकार के खिलाफ लोगों का गुस्सा साफ नजर आ रहा था.
हालांकि जब शिवराज से इस बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ''अरुण भाई का मेरे इलाके में स्वागत है.'' लेकिन कांग्रेस ने 6 महीने में दूसरी बार उनको मुश्किल में डाल दिया है.
मध्य प्रदेश में 2003 में विधानसभा चुनाव के ऐन पहले उस वक्त कांग्रेस के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने ऐलान किया था कि वो 10 साल तक सरकार में कोई पद नहीं लेंगे.
शिवराज बड़ी दुविधा में फंस गए हैं. अगर वो बुधनी आते हैं, तो कहा जाएगा कि कांग्रेस और अरुण यादव ने उन्हें प्रतिज्ञा तोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. अगर नहीं आते, तो जोखिम है. दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए खोने को कुछ नहीं है. लेकिन वो मुख्यमंत्री और बीजेपी पर दबाव बना पाई, तो पूरे प्रदेश में मनोवैज्ञानिक फायदा मिलेगा.
कुल मिलाकर, मध्य प्रदेश के इस बार के विधानसभा चुनाव में 20-20 टाइप का एक्शन नजर आ रहा है.
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Published: 09 Nov 2018,06:03 PM IST