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मध्य प्रदेश में चुनाव से पहले छोटे दलों पर क्यों है बीजेपी-कांग्रेस की नजर?

MP Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश में आदिवासी लगभग 84 सीटों पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में है.

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<div class="paragraphs"><p>शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ</p></div>
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शिवराज सिंह चौहान और कमलनाथ

(फोटो: द क्विंट)

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Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में बने रहने और विपक्षी दल कांग्रेस की सत्ता में वापसी की कोशिशें जारी हैं. यही कारण है कि दोनों ही पार्टी की तीसरे दलों से नाता रखने वालों पर पैनी नजर है और उनके नेताओं से नजदीकी बढ़ाने की कोशिशें हो रही हैं.

बीजेपी-कांग्रेस का किन पर है फोकस?

राज्य के राजनीतिक हालात पर गौर करें तो, एक बात साफ होती है कि कई इलाके ऐसे हैं, जहां बहुजन समाज पार्टी, समाजवादी पार्टी, आदिवासियों से जुड़े राजनीतिक दल और वामपंथियों का प्रभाव है. लिहाजा, इन दलों के ताकतवर लोगों को अपने से कैसे जोड़ा जाए इसके लिए BJP और कांग्रेस दोनों ही प्रयास करने में जुटे हुए हैं.

शिवराज सिंह चौहान

(फाइल फोटो: PTI)

राज्य में आदिवासी लगभग 84 सीटों पर चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की स्थिति में है, 47 सीटें तो ऐसी है, जो इस वर्ग के लिए आरक्षित हैं.

आदिवासियों के बीच इस समय 'जय आदिवासी युवा संगठन' और 'गोंडवाना गणतंत्र पार्टी' सक्रिय है.

GGP-कांग्रेस में बढ़ रही नजदीकी!

'जयस' के एक गुट ने तो तेलंगाना की सत्ताधारी दल VRS का दामन थाम लिया है तो वहीं, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की कांग्रेस से नजदीकी बढ़ रही है. चर्चा तो यहां तक है कि कांग्रेस ने गौंगापा को पांच सीटें देने का प्रस्ताव दिया है.

मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं कमलनाथ

(पुरानी फोटो: PTI)

बीजेपी की आदिवासी इलाकों पर निगाह

बीजेपी लगातार आदिवासी इलाकों पर अपनी नजर बनाए हुए है और उसके तमाम बड़े नेता इन इलाकों का दौरा भी कर रहे हैं. इसके साथ ही बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के ऐसे नेताओं से उसका संपर्क बना हुआ है, जो चुनाव के समय साथ दे सकते हैं. BSP और SP से नाता रखने वाले दो विधायक पहले ही BJP का हिस्सा बन चुके हैं.

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SP-BSP का प्रभाव

राज्य का ग्वालियर, चंबल, विंध्य और बुंदेलखंड वह क्षेत्र है जो उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है और इन इलाकों में BSP और समाजवादी पार्टी का प्रभाव है.

अखिलेश यादव और मायावती

( पुरानी फोटो: पीटीआई)

ग्वालियर-चंबल में जहां अनुसूचित जाति नतीजे प्रभावित करने की स्थिति में है तो विंध्य में पिछड़ा वर्ग. बुंदेलखंड में वामपंथियों, समाजवादियों की जड़े काफी गहरी रही है.

इसके अलावा कई ऐसे सामाजिक संगठन है जो विंध्य, ग्वालियर-चंबल और महाकौशल में प्रभाव रखते है. इन संगठनों की भी चुनाव में बड़ी भूमिका होती है.

छोटे दलों की 2018 में क्या थी स्थिति?

राज्य के वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी के दो, समाजवादी पार्टी का एक और चार स्थानों पर निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की थी.

इससे पहले राज्य में कभी BSP, गौंडवाना गणतंत्र पार्टी, SP के बड़ी सफलता मिली थी, मगर वर्तमान में इन दलों के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है.

BSP ने ग्वालियर-चंबल में अपनी पूरी ताकत दिखाई थी और कई स्थानों पर उसके उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे थे.

आगामी चुनाव में यह दल फिर अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में हैं. यही कारण है कि BJP और काग्रेस दोनों की परेशानी खुलकर नजर आने लगी है.

कौन, कहां, कितना मजबूत?

राजनीतिक विश्लेषकों, का मानना है कि राज्य की महाकौशल, विंध्य और निमांड में जहां आदिवासी निर्णय भूमिका में है. वहीं, बुंदेलखंड, विंध्य, महाकौशल और ग्वालियर-चंबल इलाके में समाजवादियों का प्रभाव है. इसके अलावा ग्वालियर-चंबल और विंध्य में बहुजन समाज पार्टी का भी वोट बैंक है.

कांग्रेस हो या भाजपा, उसे इन इलाकों में अपना जनाधार बढ़ाना है तो उसे इन वर्ग के लोगों से गठजोड़ तो करना ही होगा.

(इनपुट-IANS)

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