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मध्य प्रदेश में इस साल होनेवाले विधानसभा चुनाव से पहले कोलारस और मुंगावली में हुए उपचुनाव में बीजेपी को झटका लगा है. करीब 15 साल से प्रदेश की सत्ता पर काबिज बीजेपी के हाथों से दोनों सीटें निकल गईं. चुनाव नतीजों से यह संकेत मिल रहा है कि प्रदेश में बीजेपी के लिए पहले जैसा अनुकूल माहौल नहीं रहा है. वहीं, चुनाव परिणाम जनता के मूड में बदलाव की ओर भी इशारा कर रहे हैं.
राज्य में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले हुए उप-चुनाव काफी अहम माने जा रहे थे. सत्ताधारी पार्टी और सरकार ने चुनाव जीतने के अपने प्रयास में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी.
चुनाव नतीजों पर राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस ने कहा, "ये उप-चुनाव हर मायने में प्रदेश सरकार के लिए अहम थे, क्योंकि पिछले दिनों मंदसौर में किसानों पर गोली चलने की घटना के बाद से जगह-जगह किसान आंदोलन और कर्मचारी वर्गो के आंदोलन चल रहे हैं. वहीं, केंद्र सरकार की ओर से नोटबंदी और जीएसटी लागू करने को लेकर लोगों में जो नाराजगी है, उसमें अगर अगर बीजेपी जीत हासिल करती तो यह माना जाता कि शिवराज का करिश्मा अब तक बरकारार है, मगर ऐसा नहीं हुआ. उप-चुनाव के नतीजों से बीजेपी और सरकार को यह इशारा जरूर मिला है कि आने वाला समय उनके लिए बहुत अच्छा नहीं है."
यह बात सही है कि, यह दोनों विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस के कब्जे वाले रहे हैं, साथ ही यह सांसद सिंधिया के संसदीय क्षेत्र में आते हैं. उसके बावजूद राज्य के मुख्यमंत्री चौहान और संगठन ने जीत के लिए किसी तरह की कमी नहीं छोड़ी. लगभग पूरा मंत्रिमंडल और संगठन के पदाधिकारी कई-कई दिन तक यहां डेरा डाले रहे.
वहीं सिंधिया के करीबी और सांसद प्रतिनिधि के पी यादव को बीजेपी में शामिल कराकर सिंधिया को बड़ा झटका दिया था.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस हार को स्वीकारते हुए कहा कि, यह दोनों क्षेत्र कांग्रेस के थे. यहां आम चुनाव में कांग्रेस बड़े अंतर से जीती थी. उसके बाद भी बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने काफी मेहनत की और मुकाबले को बनाए रखा. बीजेपी बहुत कम अंतर से हारी है.
वहीं कांग्रेस नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा यह चुनाव बीजेपी के खिलाफ पनपते आक्रोश की जीत है. इस जीत में सांसद सिंधिया और कार्यकर्ताओं की मेहनत का बड़ा योगदान रहा है. इन चुनाव के नतीजों से शिवराज सरकार की विदाई का सिलसिला शुरू हो गया है.
राजनीति के जानकारों की मानें तो इन नतीजों से सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, मगर कांग्रेस में उत्साह का संचार जरूर होगा. वहीं बीजेपी को अपनी कार्यशैली और रणनीति पर विचार करने को मजबूर होना पड़ेगा.
ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी ने दोनों चुनाव जीतने के लिए हर दाव पेंच लगाए. पहले आदिवासियों को हर महीने 1000 रुपये देने का ऐलान किया. उसके बाद जाति के आधार पर तीन मंत्री बनाए गए. यह सारी कोशिशें बेकार नजर आ रही हैं. आगामी चुनाव के लिए शिवराज और उनकी सरकार को मास्टर स्ट्रोक की तलाश रहेगी. वहीं उपचुनाव में जीत कांग्रेस में नया उत्साह भरने का काम करेगी.
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Published: 01 Mar 2018,10:33 AM IST