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राजस्थान के जालोर में सरस्वती विद्या मंदिर में एक दलित बच्चे को टीचर ने पीटकर मार डाला. उसकी गलती सिर्फ इतनी थी कि उसने अपने सवर्ण शिक्षक के पानी के घड़े को छूने की जुर्रत की थी. ऐसा लगता है कि देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो करीब 20 करोड़ लोग दलित अब भी ‘आजादी’ की लड़ाई लड़ रहे हैं. अगर किसी को ऐसा लगता है कि जालोर की घटना अपवाद है और इसका आगा पीछा कुछ नहीं, तो वो गलत है. क्विंट के लिए लिखे एक लेख में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार लिखती हैं कि 100 साल पहले उनके पिता बाबू जगजीवन राम को भी स्कूल में ऐसे ही पानी पीने से रोका गया था.
दरअसल जिस पानी के लिए दलित छात्र की हत्या हुई है, उसपर बराबरी का हक पाने के लिए दलित सदियों से लड़ रहे हैं. दलितों के मसीहा अंबेडकर ने भी पानी पर हक की लड़ाई लड़ी.
महाड़, पश्चिम महाराष्ट्र के कोकण क्षेत्र में एक कस्बा है. इसी महाड़ कस्बे में चावदार तालाब था. उस तालाब में सवर्ण हिन्दू नहा सकते थे, कपड़े धो सकते थे, यहां तक की जानवर भी पानी पी सकते थे, लेकिन वहां दलित का पानी पीना और प्रवेश वर्जित था.
ये वो दौर था जब जातिवाद अपने घिनौने रूप में मौजूद था.
1920 के दशक में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर लंदन से वकालत की पढ़ाई करके भारत लौटे थे. बाबा साहब ने अपने समाज के लोगों को जागरूक करना शुरू किया कि सार्वजनिक स्थान से पानी पीने का अधिकार एक मूलभूत अधिकार है. इसके साथ ही उन्होंने सामाजिक कार्यों और राजनीतिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया.
इसके बाद बाबा साहब ने यह निश्चय किया कि हमारा अछूत समाज इस तालाब से पानी पीकर रहेगा. बाबा साहब ने इसके लिए सम्मेलन का आयोजन किया. इसके प्रचार-प्रसार के लिए लोगों को गांव-गांव भेजा गया कि 20 मार्च 1927 को दलित समाज चावदार तालाब से पानी पीएगा.
एक मुसलमान की जमीन पर पंडाल बनाया गया. बताया जाता है कि सवर्ण हिंदुओं ने सम्मेलन के लिए जमीन नहीं देने के लिए मुसमान पर दबाव डाला था.
बाबा साहब की जीवनी लिखने वाले धनंजय कीर लिखते हैं कि...
महाड़ कूच करने से पहले बाबा साहब ने कहा था कि तीन चीजों को तुम्हें छोड़ना होगा. उन कथित गंदे पेशों को छोड़ना होगा, जिनके कारण तुम पर लांछन लगाए जाते हैं. मरे हुए जानवरों का मांस खाने की परम्परा भी छोड़नी होगी और सबसे अहम है कि तुम उस मानसिकता से मुक्त हो जाओ कि तुम अछूत हो.
भाषण समाप्त करने के बाद बाबा साहब शांतिपूर्ण तरीके से अपने अनुयायियों के साथ तालाब पहुंचे. सबसे पहले बाबा साहब तालाब की सीढ़ियों से उतरे और पानी हाथ में लेते हुए कहा कि इस पानी को पीने से हम अमर नहीं हो जाएंगे, लेकिन इससे ये साबित होगा कि हम भी इंसान हैं. इसके बाद उन्होंने पानी की घूंट भरी और फिर सभी लोगों ने पानी पीया. भारत के समकालीन इतिहास में ये पहली घटना थी जब अछूतों ने सार्वजनिक तालाब से पानी पिया था.
25 नवंबर 1949 को संविधान सभा के अपने आखिरी भाषण में बाबा साहब ने एक आशंका की ओर इशारा करते हुए कहा था कि
बाबा साहेब की ये चेतावनी एकदम सही साबित हुई. दलितों को वोट का हक तो मिला लेकिन समाज में बराबरी का दर्जा नहीं मिला. लड़ाई जारी है. मुझे डर है कि ‘जालोर’ आखिरी जुल्म नहीं होगा.
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Published: 20 Aug 2022,08:02 PM IST