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लखीमपुर खीरीः यूपी की घटना पर महाराष्ट्र बंद कितना जायज?

कांग्रेस ने लखीमपुर खीरी मामले को लेकर अब तक यूपी में कोई बंद नहीं बुलाया है, लेकिन महाराष्ट्र बंद का ऐलान कर दिया.

क्विंट हिंदी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र बंद को लेकर महा विकास अघाड़ी सरकार पर सवाल उठाए हैं.</p></div>
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बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने महाराष्ट्र बंद को लेकर महा विकास अघाड़ी सरकार पर सवाल उठाए हैं.

फोटो- क्विंट हिंदी

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लखीमपुर खीरी की घटना को लेकर सोमवार 11 अक्टूबर को महाराष्ट्र बंद का ऐलान किया गया था. पूरे राज्य में इस बंद का असर दिखा, खासकर शहरी इलाकों में व्यापार और अन्य कामकाज काफी प्रभावित हुआ. कई जगहों पर बसों में तोड़फोड़ और लोगों से मारपीट की खबरें भी आई.

लेकिन यूपी के मामले को लेकर महाराष्ट्र में बंद बुलाए जाने पर बीजेपी ने सवाल उठाए हैं. सवाल इसलिए भी अहम हैं क्योंकि ये बंद महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टियों शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की तरफ से बुलाया गया था.

केंद्रीय मंत्री के इस्तीफे पर सरकार की आलोचना

यूपी में हुई एक घटना के बाद देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं. केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी के बेटे आशीष पर किसानों पर गाड़ी चढ़ाने के गंभीर आरोप लगे हैं, इस बीजेपी को घेरा जा रहा है.

यूपी सरकार, केंद्र और बीजेपी पर इस मामले में एक्शन को लेकर सवाल खड़े हुए हैं, पहले तो आरोपी केंद्रीय मंत्री के बेटे की गिरफ्तारी में पुलिस ने काफी देर की और अब मोदी मंत्रिमंडल में टेनी की मौजूदगी को लेकर विपक्ष केंद्र सरकार को निशाने पर ले रहा.

राजनीतिक पार्टियों का काम लोगों के हक की आवाज उठाना है, लेकिन यूपी के मामले पर महाराष्ट्र को ठप कर देना कितना सही है?

इस बंद को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं- 

  • कांग्रेस समेत किसी विपक्षी पार्टी ने जिस उत्तर प्रदेश में घटना हुई, वहां अब तक बंद नहीं बुलाया है, लेकिन महाराष्ट्र में इस मुद्दे पर बंद का ऐलान क्यों कर दिया?

  • कोविड और लॉकडाउन के कारण महीनों से ठप पड़ी अर्थव्यवस्था उबरने की कोशिश कर रही है, ऐसे में इस तरह का बंद बुलाना क्या सही है?

  • सत्ताधारी पार्टियां जिन पर कानून व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी हो, उसका ही बंद बुलाकर राज्य में सब कुछ ठप कर देना कितना सही है?

  • बंद के दौरान कई जगहों पर बसों में तोड़फोड़ की खबरें आईं, लोगों से मारपीट हुई, इन घटनाओं के आरोपी सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर क्या कार्रवाई हुई?

बीजेपी ने बंद को लेकर महा विकास अघाड़ी को घेरा

बीजेपी नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस बंद को लेकर कहा, ''देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि मंत्रिमंडल में बंद बुलाने का फैसला किया गया. जिस पर कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी थी, उसने ही बंद बुलाया.'' फडणवीस ने आरोप लगाया कि महाराष्ट्र में बंद को सफल बनाने के लिए पुलिस और सेल्स टैक्स अधिकारियों के जरिए दबाव बनाया गया.''

फडणवीस ने महाविकास अघाड़ी सरकार को निशाने पर लेते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट से बंद का संज्ञान लेने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट पहले ही इस तरह के बंद को गलत बता चुका है, ऐसे ही एक मामले में शिवसेना पर जुर्माना भी लगाया जा चुका है. इसलिए हाई कोर्ट को इस पर भी कार्रवाई करनी चाहिए.

उन्होंने महा विकास अघाड़ी सरकार को ढोंगी बताते हुए कहा कि राजस्थान में किसानों पर राज्य सरकार ने लाठीचार्ज करवाया, इस पर इन्होंने बंद नहीं बुलाया, लेकिन यूपी की घटना पर बंद बुला रहे हैं. फडणवीस ने आगे कहा कि,

''राज्य सरकार को अगर किसानों की इतनी चिंता है तो बाढ़-बारिश से प्रभावित किसानों की मदद करें. इनकी सरकार आने के बाद से 2000 किसानों ने आत्महत्या की है. ये वही लोग हैं, जिन्होंने पुणे के मावल में पानी मांग रहे किसानों पर गोली चलवा दी थी.''
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MNS ने भी बंद का किया विरोध

''नागरिकों को परेशान करने की जगह सरकार को किसानों को एक दिन की सैलरी दे देनी चाहिए थी. लोग पहले से ही लॉकडाउन से उबर नहीं पाए हैं, इस तरह का बंद उनके जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है.''
मनसे नेता आमेय खोपकर

व्यापारी संगठन ने किया था बंद का विरोध

फेडरेशन ऑफ रिटेल ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन या एफआरटीडब्ल्यूए ने महाराष्ट्र बंद पर ऐतराज जताया था. व्यापारी समूह के प्रमुख वीरेन शाह ने एक बयान में कहा था कि पिछले 18 महीनों में लॉकडाउन के कारण व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ है. त्योहारी सीजन में व्यवसाय अब फिर से धीरे-धीरे बढ़ने रहा है, ऐसे में रिटेल दुकानदारों को बंद से छूट दी जानी चाहिए.

बंद पर सख्त रहा है कोर्ट

साल 2003 में हुए घाटकोपर बम ब्लास्ट के विरोध में बीजेपी और शिवसेना ने बंद का आह्वान किया था. इस दौरान हुई तोड़फोड़ की भरपाई के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट ने साल 2005 में दोनों पार्टियों पर 20-20 लाख का जुर्माना लगाया था.

बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था और 2008 में शीर्ष अदालत ने भी नुकसान की भरपाई के लिए 20-20 लाख रुपये के जुर्माने को सही ठहराया था.

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