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शिंदे को राहत, उद्धव को सबक: सुप्रीम फैसले के बाद महाराष्ट्र में आगे क्या होगा?

Maharashtra: महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जमीनी स्तर पर प्रभाव पड़ेगा?

हिमांशी दहिया
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>शिंदे को राहत, उद्धव के लिए सबक: SC के फैसले के बाद महाराष्ट्र में अब आगे क्या?</p></div>
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शिंदे को राहत, उद्धव के लिए सबक: SC के फैसले के बाद महाराष्ट्र में अब आगे क्या?

(द क्विंट) 

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उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (MVA) सरकार के गिरने के 11 महीने से ज्यादा समय बाद, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 11 मई को तत्कालीन राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के विश्वास मत बुलाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की.

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे का शपथ ग्रहण और भगत सिंह कोश्यारी का फ्लोर टेस्ट बुलाने का फैसला गलत था.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "वर्तमान मामले में, राज्यपाल के पास कोई ऐसा ऑब्जेक्टिव मटेरियल नहीं था जो यह संकेत दे सके कि सरकार ने विश्वास मत खो दिया है. इसलिए उनका यह कदम कानूनी नहीं था."

जून 2022 में, उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के अंदर बंटवारे के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था. इस बगावत को को शिंदे सहित पार्टी के कई बागी विधायकों ने तैयार किया था.

ठाकरे के इस्तीफे ने एकनाथ शिंदे के लिए मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ किया. शिंदे को भारतीय जनता पार्टी (BJP) का समर्थन मिला.

यहां हम आपको बताते हैं कि शीर्ष अदालत के फैसले का महाराष्ट्र में राजनीतिक गतिशीलता पर क्या प्रभाव पड़ने की संभावना है:

एकनाथ शिंदे को राहत

शीर्ष अदालत द्वारा पूर्वस्थिति बहाल करने से इनकार, सीएम एकनाथ शिंदे के लिए एक राहत के रूप में आया है. शिंदे खुद भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची का कथित रूप से उल्लंघन करने के लिए अयोग्यता का सामना कर रहे 16 विधायकों की सूची में थे.

वैसे तो कुल 40 विधायक उद्धव गुट से चले गए थे, लेकिन उन 16 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की मांग की गई थी, जो सबसे पहले बागी हुए थे.

निर्णय के अनुसार, स्पीकर को अयोग्यता याचिकाओं का निर्णय करना चाहिए. महाराष्ट्र विधानसभा के वर्तमान स्पीकर - राहुल नार्वेकर - BJP के सदस्य हैं और इसलिए, उनके द्वारा इन विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने और शिंदे-फडणवीस सरकार की संख्या में गड़बड़ी की संभावना लगभग ना के बराबर है.

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महाविकास अघाड़ी की एक नैतिक जीत

एक तरफ तो यह फैसला उद्धव ठाकरे खेमे को यह निर्णय देकर नैतिक जीत देता है कि तत्कालीन राज्यपाल को ठाकरे को फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाना उचित नहीं था. लेकिन दूसरी तरफ यह जमीन पर सत्ता में बदलाव के लिए बहुत कम है.

हालांकि, यह एमवीए (MVA) गठबंधन के लिए एक बड़ा नैतिक प्रोत्साहन होगा अगर वे 2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ने का फैसला करते हैं.

फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए ठाकरे ने कहा कि मुख्यमंत्री शिंदे और उपमुख्यमंत्री फडणवीस को इस्तीफा दे देना चाहिए अगर उनके पास कोई नैतिकता बची है और उन्हें चुनाव का सामना करना चाहिए.

उन्होंने कहा, "अगर महाराष्ट्र के मौजूदा मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री में कोई नैतिकता है तो उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए."

उद्धव ठाकरे के लिए सबक

इससे पहले अप्रैल में NCP सुप्रीमो शरद पवार ने एक स्थानीय मराठी चैनल से बात करते हुए कहा था कि उद्धव ठाकरे ने जून 2022 में गठबंधन के सहयोगियों से सलाह-मशवरा किए बिना सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था.

पवार ने कहा, "अगर कोई इस्तीफा देने का फैसला करता है, तो उसका अधिकार है. लेकिन गठबंधन में अन्य भागीदारों से सलाह-मशवरा किया जाना चाहिए था. बिना चर्चा के निर्णय लेने के परिणाम होते हैं. इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उस समय कोई चर्चा नहीं हुई थी".

शीर्ष अदालत के फैसले में कहा गया है कि यदि ठाकरे इस्तीफा नहीं देते तो यथास्थिति बहाल की जा सकती थी. यह ठाकरे के लिए अपने सहयोगियों पर भरोसा करने का सबक देता है. शरद पवार, एक तरह से सही साबित हुए हैं.

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