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अजित पवार बने महाराष्ट्र के डिप्टी CM: आखिर BJP ने NCP में कैसे लगाई सेंध?

Maharashtra Politics: बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अजित पवार का उनके पक्ष में आना केवल 'समय की बात' थी.

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Published:
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Ajit Pawar बने महाराष्ट्र के डिप्टी CM: आखिर बीजेपी ने एनसीपी में कैसे लगाई सेंध?

(फोटो- क्विंट हिंदी)

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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के नेता अजीत पवार (Ajit Pawar) ने 2 जुलाई को महाराष्ट्र (Maharashtra) के उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली है, जो राज्य में बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन में उनके आगमन का प्रतीक था. हालांकि अजित पवार के साथ जाने वाले विधायकों की तादाद अभी भी स्पष्ट नहीं है, लेकिन यह तय है कि अजित पवार ने अपने चाचा शरद पवार की पार्टी में एक बड़ा विभाजन कराने में कामयाबी हासिल कर ली है.

कहा जा रहा है कि एनसीपी के हाल ही में नियुक्त कार्यकारी अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल भी अजित पवार के साथ-साथ सीनियर लीडर छग्गन भुजबल के साथ चले गए हैं.

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यह बदलाव हमेशा "समय की बात" था.

'शरद पवार NDA में शामिल होकर पार्टी को एकजुट रख सकते थे'

एक बीजेपी नेता ने द क्विंट के साथ बातचीत में कहा कि

बीजेपी नेतृत्व के पास हमेशा एनसीपी में संपर्क के कई बिंदु रहे हैं- अजीत पवार, प्रफुल्ल पटेल और स्वयं शरद पवार. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का शरद पवार के साथ हमेशा अच्छा व्यवहार रहा है और एनडीए के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले रहे हैं. अगर वह पीएम मोदी के विकास रथ में शामिल होते तो अपनी पार्टी को एकजुट रख सकते थे. वह ऐसा 2019 में ही कर सकते थे. शरद पवार ने विपक्ष की योजनाओं का हिस्सा बनने और कांग्रेस के पीछे दूसरे नंबर की भूमिका निभाने का फैसला किया. इसीलिए उनकी पार्टी के नेताओं ने हमारे पक्ष में आने का फैसला किया.

बीजेपी नेता ने दावा किया कि अजित पवार का ट्रांसफर पहले भी हो सकता था लेकिन ''एनसीपी के आंतरिक मुद्दों'' की वजह से इसमें देरी हुई.

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यह सही है कि महाराष्ट्र नेतृत्व खास तौर से देवेंद्र फड़णवीस ने एनसीपी पर दबाव बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई लेकिन पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की सक्रिय भागीदारी के बिना एनसीपी में विभाजन नहीं होता.

बीजेपी के अंदरूनी सूत्रों को भरोसा है कि अजित पवार दलबदल विरोधी कानून के तहत विभाजन के लिए जरूरी विधायकों को अपने सपोर्ट में ला सकेंगे. एनसीपी के पास 53 विधायक हैं, दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई से बचने के लिए अजित पवार को 36 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी.

'एकजुट विपक्ष' को पर BJP का जवाब

विपक्ष की एकता के प्रयासों का केंद्र महाराष्ट्र था. लोकसभा सीटों के दूसरे सबसे बड़ा हिस्सा (48) महाराष्ट्र बीजेपी के लिए एक चुनौती बन गया था क्योंकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस चुनाव पूर्व गठबंधन के करीब पहुंच रही थी.

अजित पवार और बड़ी संख्या में एनसीपी नेताओं और विधायकों को अपने पाले में करके, बीजेपी ने वही किया है, जिसे उसके अपने नेता विपक्ष पर 'सर्जिकल स्ट्राइक' कहना शुरू कर चुके हैं.

इस घटनाक्रम से उत्साहित बीजेपी नेता अब दावा कर रहे हैं कि कोई भी 'मोदी-विरोधी' गठबंधन फेल होना तय है.

महाराष्ट्र में BJP को मिली बढ़त

अगर अजित पवार दल-बदल विरोधी कानून से बचने के लिए पर्याप्त विधायकों को तोड़ने में कामयाब हो जाते हैं, तो इससे सत्तारूढ़ गठबंधन की संख्या में काफी बढ़ोतरी होगी.

मौजूदा वक्त में 288 सदस्यीय सदन में बीजेपी के 105 विधायक हैं, साथ ही सीएम एकनाथ शिंदे की शिवसेना के 40 और निर्दलीय और छोटे दलों के लगभग 21 अतिरिक्त विधायक हैं.

अगर अजित पवार के हिस्से में 36 से ज्यादा गए तो, बीजेपी की एकनाथ शिंदे पर निर्भरता खत्म हो जाएगी. लोकसभा चुनाव के अंकगणित की खातिर बीजेपी अब भी शिंदे को अपने पक्ष में करना चाहेगी.

हालांकि, इससे पार्टी को सीट-बंटवारे की चर्चा में सबसे ज्यादा फायदा मिलता है. 22 सीटें मांग रहे शिंदे अब और मांग करने की स्थिति में नहीं होंगे. इसके अलावा एक मराठा नेता के रूप में अजित पवार का दबदबा एकनाथ शिंदे से कहीं ज्यादा है.

शिंदे को सीएम की कुर्सी पर बनाए रखने का एकमात्र उचित कार्रवाई उद्धव ठाकरे की शिवसेना में किसी भी तरह के पुनरुत्थान को रोकना होगा.

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