मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Mallikarjun Kharge बने नए कांग्रेस अध्यक्ष, पार्टी को हो सकते हैं ये 6 फायदे

Mallikarjun Kharge बने नए कांग्रेस अध्यक्ष, पार्टी को हो सकते हैं ये 6 फायदे

Congress President Election: कांग्रेस को फिर दलित वोटों से जोड़ने वाली कड़ी बनेंगे खड़गे?

वकार आलम & आशुतोष कुमार सिंह
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>Mallikarjun Kharge बने नए कांग्रेस अध्यक्ष, पार्टी को 6 संजीवनी दे सकते हैं खड़गे</p></div>
i

Mallikarjun Kharge बने नए कांग्रेस अध्यक्ष, पार्टी को 6 संजीवनी दे सकते हैं खड़गे

(फोटो- Altered By Quint)

advertisement

देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को 24 साल बाद गांधी परिवार के बाहर अपना अध्यक्ष मिल गया है. कांग्रेस अध्यक्ष पद (Congress President Election) के लिए हुए चुनाव में मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) ने शशि थरूर को हरा दिया है. ऐसे में समझने की कोशिश करते हैं कि 80 साल के अनुभवी नेता मल्लिकार्जुन खड़गे का पार्टी अध्यक्ष बनने का पार्टी पर क्या प्रभाव होगा?

1. मल्लिकार्जुन खड़गे दे सकते हैं कांग्रेस को राजनीतिक अनुभव की संजीवनी

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस का वर्तमान और अतीत दोनों देखा है. वह 1969 से कांग्रेस के साथ हैं. आम जीवन हो या राजनीतिक फील्ड- अनुभव का कोई विकल्प नहीं है. पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आलोचक उनपर अनुभवहीन होने का आरोप लगाते रहे हैं लेकिन खड़गे इस मोर्चे पर मंझे खिलाड़ी हैं और पार्टी में संगठन स्तर पर उनका अनुभव बेजोड़ है.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने महज 30 साल की उम्र में 1972 में पहली बार कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जीता था. खास बात है कि उन्होंने लगातार 10 चुनाव (8 विधानसभा और 2 लोकसभा) जीते हैं. 2014 की मोदी लहर में भी कर्नाटक के गुलबर्ग से जीत दर्ज की थी. कर्नाटक में वो विपक्ष के नेता रहने के साथ-साथ कई मंत्रालय संभाल चुके हैं. दोनों यूपीए सरकार में उनकी अहम भूमिका रही. 2014 में पार्टी के हार के बाद वो लोकसभा में कांग्रेस के नेता रहे. राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी रहे हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

2. कांग्रेस को दलित वोटों से जोड़ने वाली कड़ी बनेंगे खड़गे?

चाहे इंदिरा गांधी का दौर हो या मनमोहन सिंह के नेतृत्व ने यूपीए की सरकार- कांग्रेस जब भी सत्ता में रही है, दलित वोटों का उसमें अहम योगदान रहा है. एक जमाने में दलित कांग्रेस का सबसे पक्का वोट बैंक माना जाता था लेकिन पिछले कुछ चुनाव के नतीजे बताते हैं कि यह वोट पार्टी से छिटका है. मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक के दलित नेता हैं. बीजेपी ने दलित राष्ट्रपति बनाकर जो पत्ता फेंका है, मल्लिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष बनकर कांग्रेस को उसकी काट निकालने में मदद कर सकते हैं. यह देखना खास होगा कि वे अपनी रणनीतियों से कैसे कांग्रेस के लिए 2024 चुनाव के फॉर्मूले में फिट होंगे.

3. साउथ से उठाएंगे कांग्रेस की वापसी का बीड़ा?

उत्तर भारत में बीजेपी की लोकप्रियता और पीएम मोदी के बढ़ते कद के बाद कांग्रेस साउथ को एक मौके के तौर पर देख रही है. मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना उसी दिशा में एक कदम साबित हो सकता है. इसके अलावा खड़गे कर्नाटक की जमीन से जुड़े नेता हैं. उन्होंने सड़क से संसद तक का सफर तय किया है. चाहे वह गुलबर्ग के सरकारी कॉलेज में छात्रसंघ का महासचिव बनना हो या, कॉलेज के दिनों में ही मजदूरों के अधिकारों के लिए कई आंदोलन करना हो. 80 साल की उम्र में भी उन्होंने अपना यह जुझारू पक्ष बार-बार साबित किया है.

धाराप्रवाह हिंदी बोलने में सक्षम खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष बनने वाले साउथ से छठे नेता हैं. इससे पहले बी पट्टाभि सीतारमैया, एन संजीव रेड्डी, के कामराज, एस निजलिंगप्पा और पी वी नरसिम्हा राव अध्यक्ष रह चुके हैं.

4. संकट के दौर से गुजरती कांग्रेस को संयम की सीख मिलेगी 

नेताओं के उत्थान और पतन को अमूमन प्रतिभा, परिस्थिति और राजनीतिक तिकड़म जैसे विभिन्न कारकों से जोड़ा जाता है. इसके अलावा कई लोग इस फेहरिस्त में भाग्य और संयम को भी शामिल करते हैं. कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की दौड़ में तीन बार हारने वाले और अब कांग्रेस की कमान संभालने वाले मल्लिकार्जुन खड़गे से बेहतर इसे और कौन जान सकता है. मल्लिकार्जुन खड़गे का अध्यक्ष बनना सबसे खराब राजनीतिक दौर से गुजरती कांग्रेस को संयम की सीख दे सकता है.

2014 में जब कांग्रेस लोकसभा में केवल 44 सदस्यों तक सिमट गई थी तब गुलबर्गा से दूसरी बार जीते खड़गे को लोकसभा में कांग्रेस का नेता बनाया गया था. तब महाभारत का सहारा लेते हुए खड़गे ने प्रसिद्ध रूप से कहा था "हम लोकसभा में भले ही संख्या में केवल 44 हो सकते हैं, लेकिन पांडव कभी भी सौ कौरवों से नहीं डरें".

5. कांग्रेस को मिला है सबको साथ लेकर चलने वाला 'अजातशत्रु'

मल्लिकार्जुन खड़गे की छवि पार्टी के सभी नेताओं को साथ लेकर चलने की है. आज तक का अनुभव बताता है कि मल्लिकार्जुन खड़गे, असहमति के बावजूद पार्टी के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर विरोधी या विवादित बयान देने से बचते रहे हैं. इसका उदाहरण 2013 में भी मिला था जब उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलनी थी, लेकिन कुछ वजहों से ऐसा नहीं हो सका. उस वक्त खड़गे ने बगावत नहीं किया. नतीजा ये हुआ कि उनका पहले कैबिनेट में प्रमोशन हुआ और फिर पार्टी में कद बढ़ता गया और आज वे कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं.

खड़गे ने केवल एक बार विद्रोह किया है. 1970 के दशक के अंत में, जब देवराज उर्स ने पार्टी छोड़ दी और इंदिरा गांधी के साथ टकराव के बाद कांग्रेस (यू) का गठन किया था, खड़गे उर्स के साथ गए. हालांकि कर्नाटक में कांग्रेस (यू) की बुरी हार के बाद 1980 के लोकसभा चुनाव के बाद खड़गे कांग्रेस में लौट आए.

6. गांधी परिवार और कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी के बीच तालमेल बना रहेगा 

बड़े कलह के बीच कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की रेस से अशोक गहलोत के बाहर होने के बाद मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम ही सबसे पहले आया. पूरे चुनाव के बीच मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार का 'अनौपचारिक आधिकारिक उम्मीदवार' माना गया. वे उन खाटी कांग्रेसियों में से एक हैं जो गांधी परिवार के सबसे विश्वासपात्र और करीबी हैं और कभी आलाकमान के खिलाफ नहीं गए.

शशि थरूर से लेकर कांग्रेस के तमाम नेता बार-बार ये कहते रहे हैं कि गांधी परिवार कांग्रेस में एक प्रमुख खिलाड़ी है, और पार्टी उनके मार्गदर्शन के बिना काम नहीं कर सकती है. ऐसे में बागी G-23 गुट में शामिल रहे शशि थरूर की अपेक्षा खड़गे का अध्यक्ष बनना पार्टी के अन्दर ज्यादा स्थिरता लाएगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT