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"मैं धन्यवाद देता हूं, इस आंदोलन को बड़े संयम, अनुशासन के साथ चलाने और कहीं भी उपद्रव किए बिना आंदोलन को सफल बनाने के लिए. मनोज जरांगे पाटिल ने भी हर बैठक में अनुशासन दिखाया."
-महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, 27 जनवरी, 2023.
"मैंने इसे पहले की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी कहा था. भाषा (मनोज जरांगे पाटिल द्वारा इस्तेमाल की गई) किसी एक्टिविस्ट की नहीं है, यह राजनीतिक है. इसके पीछे कौन है?"
-महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, 27 फरवरी, 2023.
ठीक एक महीने के अंदर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के दो अलग-अलग बयान यह संकेत देने के लिए काफी हैं कि हालात मराठा आरक्षण एक्टिविस्ट मनोज जरांगे के खिलाफ हो गए हैं.
अपने पूरे आंदोलन के दौरान मनोज जरांगे ने यह कहानी गढ़ी कि फडणवीस, जोकि एक ब्राह्मण हैं, वो 'मराठा विरोधी' हैं. हालांकि, ब्रेकिंग प्वाइंट 25 फरवरी को आया जब जरांगे ने फडणवीस पर "हत्या की साजिश" का आरोप लगाया.
जरांगे की मांगों को मानने और शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए विरोध को शांत करने के बाद, राज्य सरकार ने 27 फरवरी को विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन को मंजूरी दे दी ताकि यह जांच की जा सके कि क्या वास्तव में कोई राजनीतिक दल जरांगे और उनके आंदोलन का समर्थन कर रहा है, और उसकी फंडिंग का सोर्स क्या है.
हालांकि, बीजेपी के भीतर कई लोगों का कहना है कि जरांगे के खिलाफ ऐसा होना ही था.
27 फरवरी को विधानसभा को संबोधित करते हुए फडणवीस ने जरांगे पर संतुलन के साथ सोच समझकर हमले भी किए और उनके पीछे कौन है, इस बात की "जांच कराने के महत्व पर जोर भी दिया."
फडणवीस ने कहा, "यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि छत्रपति शिवाजी महाराज का जिक्र करते समय कोई भी किसी की मां और बहन के बारे में इस तरह से बुरा कहेगा. हालांकि मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है, हमें यह पता लगाना होगा कि उनका समर्थन कौन कर रहा है."
कैबिनेट मंत्री आशीष शेलार और एमएलसी प्रवीण दरेकर ने सीधे तौर पर शरद पवार पर जरांगे का समर्थन करने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ तीखा हमला बोला.
जरांगे की गिरफ्तारी की मांग करते हुए दरेकर ने यहां तक दावा किया कि शरद पवार, पार्टी नेता रोहित पवार और विधायक राजेश टोपे ने जरांगे को राज्य में अशांति फैलाने के लिए उकसाया था और इसके लिए बंद कमरे में बैठकें भी की थीं.
आरोपिन के बीच एनसीपी (एसपी) विधायक राजेश टोपे पर भी है. दरेकर ने आरोप लगाया कि पिछले साल अंतरवाली सरती गांव में हुई हिंसा से पहले टोपे की फैक्ट्री में शरद पवार और रोहित पवार की बैठकें हुई थीं, जहां से मामला बढ़ गया था.
दरेकर ने इस तथ्य की ओर भी इशारा किया कि टोपे ने जालना में प्रदर्शनकारियों के लिए भोजन और पानी की व्यवस्था की थी.
"अगर मेरे क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जिसमें लाखों लोग शामिल होने वाले हैं, तो मैंने मानवता के आधार पर वो चीजें प्रदान कीं. अगर उस पैमाने का कोई प्रदर्शन होता तो मैं ऐसा करता. मैंने प्यासों को पानी दिया और भूखों को भोजन. मैंने पहले भी अन्य समुदायों के प्रदर्शनों के लिए ऐसा किया है,'' टोपे ने आगे कहा, ''अगर वह किसी साजिश का दोषी पाए जाते तो वह राजनीति छोड़ देंगे.''
बीजेपी के अंदर कई लोग सरकार द्वारा फरवरी के महीने में 10% आरक्षण की मांग मान लेने के बावजूद आंदोलन जारी रखने के पीछे जरांगे के मकसद पर सवाल उठाते हैं.
फडणवीस ने सोमवार को विधानसभा में कहा, "मराठे जानते हैं कि मैंने उनके लिए क्या किया है और यही कारण है कि वे मेरे साथ खड़े हैं."
अगर कोई 2014-2019 तक मुख्यमंत्री के रूप में फडणवीस के कार्यकाल के दौरान मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों में बीजेपी के प्रदर्शन पर करीब से नजर डाले, तो उनका दावा अस्थिर नजर आता है.
2019 में मराठवाड़ा की 8 लोकसभा सीटों में से चार बीजेपी के पास गईं - जालना, बीड, नांदेड़ और लातूर - और दो अविभाजित शिवसेना - परभणी और हिंगोली - के पास गईं.
मराठवाड़ा में बीजेपी और शिवसेना (एकजुट) का संयुक्त वोट शेयर 2014 के विधानसभा चुनावों में 44.3% से गिरकर 2019 में 40.4% हो गया.
विदर्भ की 10 सीटों में से छह बीजेपी के पास हैं - नागपुर, भंडारा-गोंदिया, चंद्रपुर, वर्धा, गढ़चिरौली और अकोला - जबकि तीन सीटें तब संयुक्त शिवसेना ने जीती थीं.
हालांकि, विदर्भ में बीजेपी-सेना गठबंधन का वोट शेयर 2014 के विधानसभा चुनाव के 47.6% से गिरकर 2019 में 39.4% हो गया.
हालांकि, जो बात निर्विवाद रूप से मजबूत है वह ये कि इन दोनों क्षेत्रों में पार्टी की संगठनात्मक ताकत है. सूत्रों का कहना है कि दोनों क्षेत्रों में 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना के प्रदर्शन को देखते हुए, बीजेपी इन क्षेत्रों में अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छुक है और सक्रिय रूप से इसके लिए कोशिश कर रही है.
मौजूदा राजनीति की तीव्रता और एसआईटी के गठन को देखते हुए जरांगे के साथ काम करने वाले अधिकांश नेताओं और कार्यकर्ताओं ने घटनाक्रम पर खुलकर बोलने से इनकार कर दिया.
हालांकि, सूत्रों ने पुष्टि की है कि आंदोलन से जुड़े कई लोग जरांगे पाटिल के खिलाफ कार्रवाई के समय पर सवाल उठा रहे हैं.
जरांगे के पीछे जाकर बीजेपी शायद 'महायुति' के खिलाफ पहले से ही नाराज मराठों को और ज्यादा नाराज नहीं करना चाहती होगी.
जारांगे ने जहां अपने बयानों के लिए माफी मांग ली है, वहीं फडणवीस ने भी फिलहाल अपने तेवर नरम कर लिए हैं.
1 मार्च को TV9 मराठी कॉन्क्लेव में बोलते हुए, फडणवीस ने कहा: "जरांगे ने स्पष्ट किया है कि उन्होंने ऐसा क्यों कहा. उन्होंने बताया कि उन्होंने कई दिनों से खाना नहीं खाया था, इसलिए उन्होंने अपने शब्दों पर नियंत्रण खो दिया. मैं इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दूंगा और आपको (मीडिया को) भी ऐसा नहीं करना चाहिए. उसे रहने दीजिए, वह (राजनीति में) नया है. इस तरह की टिप्पणियां पहले भी अनुभवी राजनेताओं द्वारा की गई हैं."
हालांकि, शिंदे के रुख में बदलाव को लेकर उत्सुकता है.
विरोध प्रदर्शन के शुरुआती चरण में अंतरवाली साराती में जरांगे के साथ शरद पवार, राज ठाकरे, प्रकाश अंबेडकर जैसे बड़े विपक्षी नेताओं और उनके सहयोगियों का फोटो खींचा गया था. तो, इस सवाल का जवाब कि एसआईटी जांच करना चाह रही है कि 'मनोज जरांगे पाटिल को किसका राजनीतिक समर्थन था', यह उतना ही अस्पष्ट है जितना पहले था.
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