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मराठा आरक्षण को लेकर फिर बवाल: कहां से शुरू हुई मांग, कहां फंसा पेंच?

Maratha Reservation: मराठा, महाराष्ट्र की आबादी का 32 प्रतिशत हिस्सा हैं, यह महाराष्ट्र में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत हैं.

FAIZAN AHMAD
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>मराठा आरक्षण को लेकर फिर बवाल: कहां से शुरू हुई मांग, कहां फंसा पेंच?</p></div>
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मराठा आरक्षण को लेकर फिर बवाल: कहां से शुरू हुई मांग, कहां फंसा पेंच?

(PTI)

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मराठा क्रांति मोर्चा (MKM) ने रविवार, 04 अगस्त को मराठवाड़ा, उत्तरी महाराष्ट्र, पश्चिमी महाराष्ट्र, कोंकण और विदर्भ में प्रदर्शन करके अपना आंदोलन तेज कर दिया है. यहां तक कि उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफे की मांग भी जोर पकड़ रही है. मुंबई में एमकेएम कार्यकर्ताओं ने दादर में विरोध प्रदर्शन किया. क्या है मराठा आंदोलन ? क्यों उठ रही फडणवीस के इस्तीफे की मांग आपको विस्तार से बताते हैं.

मराठा आरक्षण को लेकर राज्य में माहौल गर्म क्यों ?

शुक्रवार, 1 सितंबर को जालना में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच हिंसक झड़प में कई लोग घायल हो गए, इस सप्ताह के अंत तक यह विरोध प्रदर्शन मुंबई सहित पूरे राज्य में फैल गया.

मराठा आरक्षण की वकालत करने वाले संगठन मराठा क्रांति मोर्चा ने जालना में 01 सितंबर को किए गए लाठीचार्ज के खिलाफ पूरे राज्य में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू किया है. प्रदर्शनकारियों ने 04 अगस्त को छत्रपति संभाजी नगर में मुख्य राजमार्गों को अवरुद्ध कर दिया, जिससे विभिन्न हिस्सों में यातायात बाधित हो गया.

क्या है मराठा क्रांति मोर्चा ?

9 अगस्त, 2016 को मराठा क्रांति मोर्चा के बैनर तले 'मराठा' महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के कोपर्डी गांव में 15 वर्षीय लड़की के रेप और हत्या के विरोध में औरंगाबाद में एक साथ आए. हालांकि कोपर्डी एक ट्रिगर पॉइंट था, यह मराठा एकता जिसकी वजह से 2016-17 के बीच राज्य भर में काफी बड़े पैमाने पर रैलियां हुईं, यह मुख्य रूप से सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में समुदाय के लिए आरक्षण पर केंद्रित थीं.

बिना किसी नेता या चेहरे के इन अराजनीतिक रैलियों में शामिल भारी भीड़ ने पूरे महाराष्ट्र में शहरों से लेकर गांवों और तालुका स्तर तक अपनी पैठ बना ली.

प्रत्येक रैली के अंत में जिला कलक्टर को दस सूत्रीय मांगपत्र सौंपा गया. इस एजेंडे में सबसे ऊपर मराठा आरक्षण था. इसके अलावा संगठन ने कोपर्डी में लड़की के लिए न्याय और अपराधियों को कड़ी सजा और किसानों के लिए कर्ज माफी समेत अन्य मांग की.

2017-18 के बीच आंदोलन के दूसरे चरण में, सड़क पर विरोध प्रदर्शन ने हिंसक रूप ले लिया और यहां तक कि कुछ लोगों ने आत्महत्या भी कर ली. मराठा आरक्षण की मांग को लेकर आत्महत्या का पहला मामला औरंगाबाद जिले के कन्नड़ तालुका में हुआ था. मराठों ने घोषणा की कि वे आरक्षण से कम किसी भी चीज पर सहमत नहीं होंगे. 'एक मराठा, लाख मराठा' - यह नारा उनकी ताकत दिखाने के लिए गढ़ा गया.

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कैसे हुई मराठा आरक्षण की घोषणा ?

मराठों के बीच बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए, तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार ने जून 2017 को सेवानिवृत्त न्यायाधीश एनजी गायकवाड़ की अध्यक्षता में 11 सदस्यीय आयोग का गठन किया.

अलग अलग संगठनों और व्यक्तियों के विस्तार से किए गए अध्ययन और बयानों के बाद, आयोग ने प्रस्तुत किए गए एक रिपोर्ट में कहा कि मराठों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (SEBC) के तहत आरक्षण दिया जाना चाहिए.

हालांकि आयोग ने आरक्षण की सिफारिश की, लेकिन इस आयोग ने कितने प्रतिशत कोटा मिलना चाहिए इस बारे में कोई निर्देश नहीं दिया और इसे राज्य सरकार पर छोड़ दिया.

महाराष्ट्र ने कानून कब अपनाया?

नवंबर 2018 में मराठा समुदाय को महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा अधिनियम के तहत आरक्षण दिया गया था. विशेष अधिनियम को महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने पास किया गया. विधानसभा और परिषद दोनों में पास किया गया था. इस कानून का जोर एसईबीसी (SEBC) के तहत आरक्षण को कानूनी और संवैधानिक वैधता देने पर था. तत्कालीन बीजेपी-शिवसेना सरकार के इस प्रस्तावित कानून को तत्कालीन विपक्षी दलों कांग्रेस और एनसीपी से सर्वसम्मति से समर्थन मिला था.

आरक्षण पर कोर्ट ने लगाई रोक 

एसईबीसी (SEBC) के तहत इस आरक्षण को बॉम्बे हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका के जरिए चुनौती दी गई थी. बॉम्बे हाई कोर्ट ने आरक्षण को बरकरार रखते हुए कहा कि इसे 16 फीसदी की बजाय शिक्षा में 12 फीसदी और नौकरियों में 13 फीसदी किया जाना चाहिए. इसी के मुताबिक शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में कोटा का लाभ उठाने वाले मराठा छात्रों के साथ अधिनियम लागू किया गया था.

9 सितंबर, 2020 में मराठा आरक्षण को एक और मुश्किल का सामना करना पड़ा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इसके कार्यान्वयन पर रोक लगा दी और मामले को बड़ी पीठ के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश के पास भेज दिया.

इसका मतलब था कि अंतिम फैसला आने तक मराठा शिक्षा या नौकरियों में कोटा लाभ नहीं ले सकते थे. लेकिन जिन लोगों ने आज तक कोटा का लाभ उठाया है, वे अप्रभावित रहे. सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई को आरक्षण रद्द कर दिया था.

मराठा आरक्षण का सामजिक-राजनैतिक प्रभाव क्या है ?

मराठा, महाराष्ट्र की आबादी का 32 प्रतिशत हिस्सा हैं, यह महाराष्ट्र में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत हैं. इस समुदाय के बीच असंतोष एक बार फिर सामने आने की संभावना है. अमीर और गरीब मराठों के बीच बंटवारा राजनीति और विरोध के नए रूप में प्रकट हो सकता है. जटिल आरक्षण राजनीति ने मराठा बनाम ओबीसी के बीच ध्रुवीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आरक्षण पर विभाजन तेज हुआ है.

मराठा क्रांति मोर्चा (एमकेएम) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को "अस्वीकार्य" करार दिया है.

फडणवीस के इस्तीफे की मांग क्यों ?

01 सितंबर को महाराष्ट्र के जालना में हुए लाठीचार्ज के खिलाफ एकजुटता दिखाने के लिए मराठा समूहों ने जालना, औरंगाबाद, सोलापुर, पुणे और बीड समेत अन्य शहरों में बंद का आह्वान किया है.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण ने कहा, “देवेंद्र फड़नवीस गृह मंत्री हैं और उन्हें बताना होगा कि प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस लाठीचार्ज का आदेश किसने दिया.”

इस बीच, महाराष्ट्र सरकार ने मराठा आरक्षण मुद्दे के समाधान के लिए 04 अगस्त को कैबिनेट बैठक की. इस बैठक में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस और अजित पवार शामिल हुए. फडणवीस ने शुक्रवार को जालना में पुलिस लाठीचार्ज के लिए माफी मांगी और कहा कि सरकार मामले की जांच कर रही है.

डिप्टी सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने कहा कि जालना में मराठा आरक्षण की मांग कर रहे प्रदर्शनकारियों पर बल प्रयोग का किसी भी कीमत पर समर्थन नहीं किया जा सकता, और इसके लिए माफी मांगी गयी. उन्होंने जालना में लाठीचार्ज और आंसूगैस फायरिंग के लिए राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराने के लिए विपक्ष पर भी निशाना साधा.

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