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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की सरकार बनी है. रविवार को पीएम समेत 72 मंत्रियों ने शपथ ली. मोदी सरकार 3.0 में अगला स्पीकर कौन होगा? या किस पार्टी के हिस्से जाएगी लोकसभा स्पीकर की सीट? सबकी नजर इसी पर टिकी है. दरअसल, इस बार लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, NDA के घटक दलों के समर्थन से सरकार बनी है. कई सहयोगी दल स्पीकर के पद के लिए दावा कर रहे हैं. ऐसे में नया स्पीकर कौन होगा- ये सवाल अहम है?
चलिए आपको बताते हैं कि NDA सरकार में स्पीकर का पोस्ट इतना महत्वपूर्ण कैसे बन गया है? लोकसभा अध्यक्ष की रेस में कौन-कौन हैं? अध्यक्ष का चुनाव और उनकी शक्तियां क्या होती हैं?
2024 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 240 सीटें मिली हैं जो बहुमत के आंकड़े से 32 कम हैं. पार्टी को 2019 के चुनावों में 303 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. बीजेपी और एनडीए के उसके घटक दलों ने मिलकर 293 सीटें जीती हैं.
16 सीटों के साथ चंद्रबाबू नायडू की TDP और 12 सीटों के साथ नीतीश कुमार की JDU, NDA 3.0 सरकार में प्रमुख सहयोगी दल हैं. मोदी कैबिनेट में TDP और JDU को दो-दो मंत्री पद दिए हैं- एक कैबिनेट रैंक का और एक राज्य मंत्री का पद.
हालांकि, मीडिया रिपोर्ट्स में बीजेपी सूत्रों के हवाले से यह भी कहा गया है कि पार्टी यह पद अपने किसी भी सहयोगी दल को नहीं देना चाहती है.
इसके पीछे कई कारण हैं:
माना जा रहा है कि यह कदम भविष्य में साझेदारों को किसी भी तरह के विभाजन से बचाएगा.
जब सदन में बहुमत साबित करने की बात आती है या दलबदल विरोधी कानून लागू होता है तो अध्यक्ष की भूमिका सर्वोपरि होती है.
स्पीकर के पास संसद के सदस्यों की योग्यता और अयोग्यता का फैसला करने का पूरा अधिकार होता है.
लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव सामान्यतः लोकसभा के सदस्यों की पहली बैठक में किया जाता है. अध्यक्ष के चयन से पहले, राष्ट्रपति द्वारा प्रो-टेम (सीमित समय के लिए) अध्यक्ष चुना जाता है. प्रो-टेम स्पीकर आमतौर पर सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाला सांसद होता है. अस्थायी अध्यक्ष नए सदन की पहली कुछ बैठकों की अध्यक्षता करता है. इसके साथ ही वे नए सांसदों को शपथ दिलाने के साथ-साथ अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव भी करवाता है. सदन के सदस्यों में से एक बहुमत से अध्यक्ष चुना जाता है.
लोकसभा स्पीकर एक संवैधानिक पद है. लोकसभा के प्रमुख के रूप में अध्यक्ष सदन का मुखिया और प्रमुख प्रवक्ता होता है. अध्यक्ष को सदन में व्यवस्था और मर्यादा बनाए रखना होता है. अनुशासनहीनता की स्थिति में संसद को स्थगित करने से लेकर किसी को सस्पेंड करने तक हर अधिकार स्पीकर के पास होते हैं. हालांकि, 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अध्यक्ष का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है.
स्पीकर की मंजूरी के बिना सदन में कुछ भी नहीं होता. स्पीकर का फैसला ही आखिरी फैसला होता है. लोकसभा में अध्यक्ष निर्णायक भूमिका होती है. जब सदन में कोई विवाद हो तो अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होता है. चाहे कोई रेजिल्यूशन हो, मोशन या फिर सवाल, स्पीकर का फैसला निर्णायक होता है.
जब कोई पार्टी लोकसभा में अपने दम पर बहुमत हासिल कर लेती है, तो अध्यक्ष का पद ज्यादातर औपचारिक होता है. परंपरागत रूप से, अध्यक्ष का पद सत्तारूढ़ गठबंधन को मिलता है, जबकि उपाध्यक्ष का पद विपक्षी दल के सदस्य के पास होता है. हालांकि, इस बारे में कोई नियम नहीं है और 17वीं लोकसभा में उपाध्यक्ष का पद खाली था.
दग्गुबाती पुरंदेश्वरी: आंध्र प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष और राजमुंदरी सांसद दग्गुबाती पुरंदेश्वरी रेस में सबसे आगे चल रही हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया ने बीजेपी सूत्रों के हवाले से लिखा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री और टीडीपी संस्थापक एनटी रामाराव की बेटी पुरंदेश्वरी को मंत्रिमंडल में शामिल इसलिए नहीं किया गया क्योंकि उन्हें लोकसभा अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है.
ओम बिरला: मोदी सरकार के शपथ ग्रहण के बाद संभावना जताई जा रही है कि ओम बिरला एक बार फिर लोकसभा अध्यक्ष बन सकते हैं. कहा जाता है कि बिरला की मोदी और शाह के साथ अच्छे संबंध हैं. इसके साथ ही अपनी कार्यशैली के कारण बीजेपी सहित दूसरी पार्टियों में भी उनकी अच्छी पैठ है.
बीजेपी नेता ओम बिरला पिछले दो दशकों के दौरान ऐसे लोकसभा स्पीकर हैं जिन्होंने फिर से लोकसभा का चुनाव जीता है. ओम बिरला से पहले पीए संगमा ऐसे स्पीकर थे जो फिर से सांसद चुने गए थे.
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