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मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav Death) अब इस दुनिया में नहीं रहे. वह एक लंबी राजनीतिक और सामाजिक विरासत छोड़कर अंतिम यात्रा पर निकल पड़े हैं. भारतीय राजनीति में मुलायम सिंह यादव एक ऐसे राजनेता रहे जिनकी राजनीतिक दोस्तियां भी राजनीति से ऊपर रहीं. उनकी पार्टी में ही नहीं विपक्षी दलों में भी कई ऐसे दोस्त रहे जो भले ही विचारधारा और सियासत में उनसे अलग थे लेकिन ये वजह कभी उनकी दोस्ती के आड़े नहीं आई. हालांकि कई बार संबंधो की वजह से ही मुलायम सिंह यादव को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा. लेकिन सैफई के ‘दद्दा’ कभी विचलित नहीं हुए.
राजनीतिक दोस्तों की बात की जाये तो शिवपाल यादव हमारे दिमाग में सबसे पहले आते हैं. क्योंकि वो सिर्फ मुलायम सिंह के भाई नहीं रहे, वो बचपन से ही उनके दोस्त भी रहे. ये दोस्ती ऐसी थी जो पार्टी टूटने के बाद भी नहीं टूटी. इस दोस्ती के बीच में कभी बेटा भी नहीं आया. याद कीजिए जब समाजवादी पार्टी टूट रही थी और अखिलेश यादव के साथ शिवपाल सिंह यादव का झगड़ा सरेआम हो रहा था. तब भी भले ही नेताजी की पार्टी अखिलेश के हिस्से आई लेकिन हर कदम मुलायम सिंह यादव शिवपाल यादव के साथ रहे. वो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष थे लेकिन शिवपाल यादव के लिए प्रचार भी करते थे.
शिवपाल यादव ने भी कभी अपने बड़े भाई और दोस्त की बात नहीं टाली. अगर नेताजी ने कहा कि खड़े हो जाओ तो वो खड़े रहे. पार्टी से अलग होने पर भी वो कहते रहे कि नेताजी एक बार भी बोलेंगे तो वापस आ जायेंगे.
सिर्फ अपनी पार्टी में ही नहीं मुलायम सिंह की दोस्ती विपक्षी पार्टी के नेताओं से भी खूब फली. विपक्षी पार्टियों में उनके कुछ बढ़िया दोस्तों में राजनाथ सिंह भी एक हैं. केंद्र में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं, और शुरू से ही भारतीय जनता पार्टी का हिस्सा रहे हैं. इस नाते उनका राजनीतिक विरोध मुलायम सिंह ने हमेशा किया, लेकिन कभी ये विरोध दोस्ती पर असर नहीं डाल पाया. जब मुलायम सिंह यादव गुरुग्राम के मेदांता में भर्ती थे तो विपक्षी नेताओं में सबसे पहले राजनाथ सिंह ही उनका हाल जानने पहुंचे थे. ये नेताजी ने अपने निजी जीवन में कमाया था.
राजनाथ सिंह ने नेताजी की मौत पर कहा कि,
कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव राजनीति में एक दूसरे के धुर विरोधी थे. दोनों के राजनीतिक सफर की शुरुआत करीब एक साथ हुई. बात 1967 की है जब यूपी में दो युवा चेहरों का राजनीति में उदय होता है, इनमें से एक थे मुलायम सिंह जिनका होमटाउन मैनपुरी था और दूसरे थे कल्याण सिंह जो पड़ोसी जिले एटा से थे. 1967 में कल्याण सिंह जनसंघ से पहली बार विधायक चुने गए और इसी साल मुलायम सिंह ने भी अपने सियासी सफर की शुरुआत की. ठीक 10 साल बाद दोनों एक ही कैबिनेट का हिस्सा बने. ये साल था 1977 जब यूपी में जनता पार्टी की सरकार बनी थी. इस सरकार में मुलायम सिंह को पशुपालन मंत्री बनाया गया था और कल्याण सिंह को स्वास्थ्य मंत्रालय सौंपा गया था.
ये वो दौर था जब कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव की दोस्ती परवान चढ़ी. लेकिन 1992 में जब कल्याण सिंह से कुर्सी छिनी तो मुलायम सिंह यादव और कल्याण सिंह को राजनीतिक धुर विरोधी माना जाने लगा. लेकिन पर्दे के पीछे उनकी दोस्ती कायम रही.
अमर सिंह से मुलायम सिंह की दोस्ती के किस्से किसी से छिपे नहीं हैं. 2003 में जब तीसरी बार मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तब तक अमर सिंह से उनकी गहरी दोस्ती हो गई थी. ये दोस्ती ऐसी बढ़ी कि मुलायम सिंह ने अमर सिंह को राज्यसभा का टिकट दे दिया और पार्टी का महासचिव बना दिया. ये बात उनके दूसरे दोस्त और समाजवादी पार्टी में उस वक्त बड़ा कद रखने वाले बेनीप्रसाद वर्मा को बड़ी नागवार गुजरी और उन्होंने समाजावादी पार्टी से दूरी बना ली. लेकिन मुलायम सिंह और अमर सिंह की दोस्ती परवान चढ़ती रही.
2009 में जब कल्याण सिंह और मुलायम सिंह एक साथ आये तब इस गठबंधन में भी अमर सिंह का बड़ा रोल रहा. अमर सिंह ने अखिलेश यादव और डिंपल की शादी में बड़ा रोल अदा किया. अमर सिंह के लिए अखिलेश और मुलायम सिंह परिवार क्या सोच रखता था. इस बात का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि जब यादव परिवार में फूट पड़ी और उसके छींटे अमर सिंह पर भी आईं तब भी अखिलेश ने उन्हें हर बार सार्वजिक मंच से अंकल कहकर ही पुकारा.
जिन बेनीप्रसाद वर्मा का ऊपर जिक्र आया वो मुलायम सिंह यादव के राजनीति में बड़े करीबी रहे. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में एक बार बेनीप्रसाद वर्मा ने कहा था कि, "मैं मुलायम सिंह को बहुत पसंद करता था. एक बार रामनरेश यादव के हटाए जाने के बाद मैंने चरण सिंह से मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने की सिफारिश की थी. लेकिन चरण सिंह मेरी सलाह पर हंसते हुए बोले थे इतने छोटे कद के शख्स को कौन अपना नेता मानेगा. तब मैंने उनसे कहा था, नेपोलियन और लाल बहादुर शास्त्री भी तो छोटे कद के थे. जब वो नेता बन सकते हैं तो मुलायम क्यों नहीं. चरण सिंह ने मेरा तर्क स्वीकार नहीं किया था."
इन दोनों की दोस्ती ऐसी थी कि जब 1977 में समाजवादियों की सरकार बनी तो केवल उन्हीं लोगों को मंत्री पद दिया गया जो इमरजेंसी के दौरान जेल गए थे लेकिन बेनी बाबू को जेल ना जाने के बावजूद भी मंत्री बनाया गया. इसमें अहम रोल मुलायम सिंह यादव का था.
बेनीप्रसाद वर्मा बाराबंकी से आते थे और मुलायम सिंह के बड़े करीबी थे लेकिन अमर सिंह की एंट्री के बाद वो पार्टी छोड़ गए. हालांकि उन्होंने कभी नेताजी के लिए विरोधी स्वर अख्तियार नहीं किये. यही वजह थी कि उनकी दोस्ती पर कभी असर नहीं पड़ा. जब काफी वक्त बाद बेनी बाबू की समाजवादी पार्टी में वापसी हुई तब मुलायम सिंह यादव ने कह था. पुरानी किताब, पुरानी शराब और पुराने दोस्त कभी भुलाये नहीं जा सकते.
राजनीतिक दोस्तियों में अगर आजम खान की बात मुलायम सिंह यादव के साथ ना की जाये तो बात अधूरी ही रह जाएगी. ये ऐसी राजनीतिक जोड़ी रही जो राजनीति में हिट थी और संबंधों में फिट थी. हालांकि एक वक्त आया जब कल्याण सिंह से मुलायम सिंह ने हाथ मिलाया तो आजम ने पार्टी छोड़ दी. लेकिन कुछ वक्त बाद ही 2010 में उनकी पार्टी में वापसी हुई. मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह से गठबंधन के लिए सार्वजनिक माफी मांगी. वापसी के वक्त आजम खान ने मुनव्वर राणा का एक शेर पढ़ा था. 'कभी खुशी से खुशी की तरफ नहीं देखा, तुम्हारे बाद किसी की तरफ नहीं देखा, ये सोचकर कि तेरा इंतजार लाजिम है, तमाम उम्र घड़ी की तरफ नहीं देखा’
ये शेर आजम खान और मुलायम सिंह के रिश्तों को दर्शाता है. आजम खान और मुलायम सिंह की दोस्ती जनता पार्टी के जमाने से थी. 1989 में जब मुलायम पहली बार सीएम बने तो उन्होंने आजम खान को कैबिनेट मंत्री बनाया. इसके बाद 1992 में जब मुलायम सिंह ने समाजवादी पार्टी का गठन किया तो आजम खान इसके संस्थापक सदस्य बने. तब से लेकर आज तक आजम खान और नेताजी की दोस्ती परवान चढ़ती रही. मुलायम सिंह यादव की मौत के अपने पिता आजम खान के साथ उनकी एक तस्वीर अब्दुल्ला आजम ने शेयर की है. जो इनकी दोस्ती की गवाही दे रही है.
लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव दोनों ही समाजवादी नेता हैं. दोनों नेताओं की दोस्ती के किस्से भरे पड़े हैं. राजनीति से आगे ये दोस्ती रिश्तेदारी में भी बदली और दोनों समधी बने. इन दोनों नेताओं की राजनीति भी लगभग एक जैसी रही. दोनों अपने परिवारों के पहले सदस्य थे राजनीति में आये, दोनों ने अपनी राजनीतिक विरासत बेटों को सौंपी.
मुलायम सिंह की मौत के बाद लालू प्रसाद यादव ने कहा कि, देश की राजनीति में कमजोर एवं वंचितों को अग्रिम पंक्ति में लाने में मुलायम सिंह यादव का अतुलनीय योगदान रहा. वे भले हमारे बीच से चले गए, लेकिन उनकी यादें जुड़ी रहेंगी.
मुलायम सिंह यादव से जुड़े किस्से कहानियां और निधन से जुड़ी पूरी कवरेज आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं.
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