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Mulayam Singh Yadav: लोहिया-चरण सिंह के शागिर्द मुलायम OBC के चैंपियन कैसे बने?

Mulayam Singh Passed Away: मुलायम सिंह ने राजनीति में एंट्री मारी तो देश की ठेठ राजनीति के ‘नन्हें नेपोलियन’ बने.

आशुतोष कुमार सिंह
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>लोहिया-चरण सिंह के शागिर्द मुलायम OBC के चैंपियन कैसे बने? </p></div>
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लोहिया-चरण सिंह के शागिर्द मुलायम OBC के चैंपियन कैसे बने?

(फोटो: Altered by Quint)

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उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो 'नेताजी' मुलायम सिंह यादव का 10 अक्टूबर को 82 साल के उम्र में निधन हो गया. जवानी में पहलवान बनने का सपना देखा और राजनीति में एंट्री मारी तो देश की ठेठ राजनीति के ‘नन्हें नेपोलियन’ बने, जो चौधरी चरण सिंह का दिया हुआ नाम था. लेकिन इन सबके बीच मुलायम यादव अपने समर्थकों के लिए OBC वर्ग के चैंपियन बन गए.

समझने की कोशिश करते हैं कि लोहिया से समाजवादी राजनीति और चौधरी चरण सिंह से किसान राजनीति की सीख लेने वाले शागिर्द मुलायम यादव ने किस तरह अपने फैसले से OBC वर्ग को समाज में उनका स्थान दिलाया और उनके राजनीतिक महत्व को सामने लेकर आए.

आपको लेकर चलते हैं आज से 32 साल पहले यानी सन 1990 में. यह साल ओबीसी (OBC) के लिये टर्निंग प्वाइंट बनकर आया था- जाति से ठाकुर प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर दिया और सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को 27 फीसदी आरक्षण मिला.

राजनीतिक एक्सपर्ट का मानना है कि मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने की घटना ने आजादी के बाद की राजनीति को दो हिस्सों में बांट दिया था.

हालांकि, ठीक इसी समय बीजेपी राम मंदिर का मुद्दा उठाकर मंडल का जवाब कमंडल से देने की कोशिश कर रही थी- दूसरी तरफ 1987 में चरण सिंह की मौत के बाद यूपी में OBC समाज के लिये ऐसा कोई नेता नहीं दिख रहा था जो सबको एकजुट कर सके. मुलायम यादव ने इसी खालीपन को अपनी ठेठ और जमीन से जुड़ी राजनीति छवि से भरने की कोशिश की. यानी लोहिया और चरण सिंह की राजनीति को कोई भुनाने में कामयाब रहा तो वो मुलायम सिंह यादव ही थे. बिहार में कुछ ऐसा ही लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान की तिकड़ी कर रही थी.

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शिवपाल यादव के प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता दीपक मिश्रा ने क्विंट से कहा कि नेताजी का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने राम मनोहर लोहिया की राम मनोहर लोहिया की विचारधारा और उनके प्रसिद्ध नारे ‘सोशलिस्टों ने बांधी गांठ - पिछड़े पाए सौ में साठ’ को मूर्त रूप देने का यथा शक्ति प्रयास किया और एक हद तक उसे जमीन पर उतारने में सफल भी हुए. दीपक मिश्रा ने इसका उदाहरण देते हुए कहा कि मुलायम सिंह जब मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने सिविल सेवाओं की परीक्षा से अंग्रेजी की अनिवार्यता हटा दी.

“पहले पब्लिक सर्विस कमीशन (PSC) में अधिकतर वो बच्चे आते थे जो कॉन्वेंट स्कूलों में पढ़े हुए थे और महानगरों में रहते थे. मुलायम सिंह के इस फैसले के बाद गांवों से पिछड़े तबके के गरीब बच्चे भी सिविल सेवाओं की परीक्षा पास करते हैं और मुख्यधारा में अपनी सेवा दे रहे हैं.”

हालांकि, कई मौकों पर मुलायम सिंह की इस बात को लेकर खूब आलोचना भी हुई कि वे अंग्रेजी और कंप्यूटर के विरोधी है. मुलायम सिंह के कार्यकाल में हुईं पुलिस भर्तियों पर आरोप लगे कि बड़ी संख्या में एक जाति के लोगों को गलत तरीके से पास किया गया और इसके लिए सरकार स्तर पर राजनीतिक हस्तक्षेप हुआ.

दूसरी तरफ नेताजी को राजनीति को लोकमुखी बनाने और गरीब तबकों के लोगों को राजनीतिक मंच देने का श्रेय भी है. यूपी की राजनीति में इससे पहले राम मनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह और कांशीराम ने पिछड़ी जातियों की राजनीति करने की शुरुआत की थी.

कांशीराम ने जहां बहुजन समाज की कल्पना की थी वहीं चौधरी चरण सिंह ने जाट और यादव समाज को एकसाथ जोड़कर मजबूत राजनीति की. लेकिन मुलायम सिंह यादव ने इससे एक कदम आगे जाकर समाजवादी पार्टी के रूप में पूरे OBC समाज के साथ मुस्लिम वोटों को जोड़ा. समाजवादी पार्टी की इस पूरी राजनीति में उत्तर प्रदेश में OBC खासकर यादव जाति के कई नेता सामने आए और कथित तौर पर यादवों को अपने एकजुट वोट की कीमत समझ आई.

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