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मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) उत्तर प्रदेश ही नहीं देश के एक कद्दावर नेता थे. अपने 55 साल के पॉलिटिकल करियर में मुलायम सिंह ने यूपी के मुख्यमंत्री से लेकर देश के रक्षा मंत्री तक का पदभार संभाला. उनके राजनीतिक सफर में दो बार ऐसा मौका भी आया जब वो प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए. पहला मौका था साल 1996 और इसके दो साल बाद 1998 में दूसरी बार उनका नाम प्रधानमंत्री की रेस में आया. लेकिन इन दोनों मौकों पर 'नेताजी' पीएम के पद तक पहुंचने से चूक गए.
चलिए आपको बताते हैं कैसे मुलायम सिंह यादव एक बार नहीं, दो-दो बार प्रधानमंत्री बनने से चूक गए?
90 के दशक में उत्तर प्रदेश की सत्ता से हटने के बाद मुलायम के राजनीतिक भविष्य को लेकर चर्चाएं शुरू हो गई थी, लेकिन उन्होंने नया दांव खेल दिया. इस बार मुलायम सिंह यादव ने उत्तर प्रदेश की जगह केंद्र की ओर रुख किया.
वाजपेयी की सरकार गिरने के बाद सबकी नजर अगली सरकार पर टिकी थी. कांग्रेस ने सरकार बनाने में दिलचस्पी नहीं दिखाई. इसके बाद सबकी निगाहें वीपी सिंह पर टिक गईं, लेकिन उन्होंने भी मना कर दिया. इसके बाद बंगाल के सीएम ज्योति बसु के नाम की चर्चा उठी. लेकिन सहमति नहीं बन पाई.
मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री बनने का रास्ता साफ हो चुका था. शपथ ग्रहण का समय तक तय हो चुका था. लेकिन रात भर में ही पूरी बाजी पलट गई. कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव और शरद यादव ने मुलायम सिंह का पत्ता काट दिया. जिसकी वजह से मुलायम देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए. इसके बाद एचडी देवेगौड़ा ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली और मुलायम सिंह रक्षा मंत्री बने.
10 महीने में ही देवेगौड़ा की सरकार गिर गई. कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया था. इसके बाद अप्रैल 1997 में इंद्र कुमार गुजराल ने देश के 12वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली.
1998 आते-आते गुजराल सरकार पर संकट के बादल मंडराने लगे. कांग्रेस डीएमके के खिलाफ थी. कांग्रेस ने गुजराल से डीएमके को छोड़ देने को कहा लेकिन गुजराल नहीं माने. ऐसे में कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया और गुजराल सरकार गिर गई. इस दौरान भी प्रधानमंत्री के तौर पर नेताजी के नाम की हवा उड़ी. लेकिन इस बार भी मुलायम प्रधानमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए. माना जाता है कि इसकी दो अहम वजह थी.
मुलायम सिंह यादव के नाम पर दूसरे यादव नेताओं का विरोध.
मुलायम के नाम पर राजनीतिक पार्टियों में विश्वास की कमी.
इसके साथ ही मणिलाल कहते हैं कि जब तक मुलायम राजनीति में सक्रिय रहे कोई यह तय नहीं कर पाया कि वो आखिरकार किसकी तरफ हैं. कभी-कभी उनके एक्शन से लगता था कि वो बीजेपी और हिंदुत्व के धुर विरोधी हैं. तो कभी लगता था कि वो एक तरह का हिंदुत्व चाहते भी थे, जो कि बना रहे और उसका समर्थन होता रहे.
मुलायम सिंह यादव देवेगौड़ा और इन्द्र कुमार गुजराल की सरकार में 1996 से 1998 के बीच दो साल तक भारत के रक्षा मंत्री रहे. जनसत्ता की रिपोर्ट के मुताबिक रक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने पाकिस्तान की तुलना में चीन को भारत का बड़ा दुश्मन बताया था. वह अपनी इस बात पर हमेशा कायम रहे.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, मुलायम सिंह यादव भारत के पहले रक्षा मंत्री थे जो सियाचिन ग्लेशियर पर गए थे. कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव के रक्षामंत्री रहते हुए पाकिस्तान ने उन दो सालों में सीजफायर नहीं किया था. इसके साथ ही उनके कार्यकाल के दौरान भारतीय सेना ने चीन को 4 किलोमीटर पीछे ढकेल दिया था.
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