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Mulayam Singh Yadav: समर्थक एक वक्त भूखे रहकर मुलायम को देते थे पेट्रोल का पैसा

UP Nama: मुलायम सिंह यादव गुड़गांव के मेदांता अस्पताल में भर्ती हैं जहां पर उनकी हालत नाजुक बताई जा रही है.

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समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ने गुड़गांव के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. उनका वहां कई दिनों से इलाज चल रहा था. मुलायम सिंह यादव का हाल-चाल लेने के लिए देशभर के नेताओं का तांता गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में लगा रहता था. पांच दशक से भी ज्यादा समय तक राजनीति में सक्रिय रहे नेताजी से जुड़े कई किस्से मशहूर हैं. इसी में से एक किस्सा हम आपको बताएंगे.

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जब समर्थक भूखे रहकर देते थे पेट्रोल का पैसा

5 दशकों से भी ज्यादा लंबी राजनीतिक पारी में मुलायम सिंह यादव ने कई उतार-चढ़ाव देखे. 1967 में पहली बार विधायक बनने से लेकर 2017 में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने तक - समाजवाद का झंडा बुलंद करने वाले मुलायम सिंह यादव तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. उनको देश का रक्षा मंत्री बनने का भी मौका मिला. उनकी जिंदगी के ऐसे दिलचस्प किस्से हैं जिसको सुनकर उनके राजनीतिक संघर्ष के बारे में अंदाजा लगता है.

समाजवादी पार्टी नेता संजय लाठर अपनी किताब समाजवाद का सारथी में लिखते हैं कि मुलायम सिंह यादव को 1967 में जसवंत नगर से प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का टिकट मिला था. प्रचार का माध्यम एक साइकिल था जो उनके मित्र दर्शन सिंह चलाते थे और उसी साइकिल से गांव-गांव घूमकर उन्होंने अपना चुनावी अभियान शुरू किया था.

बाद में कुछ पैसे इकट्ठा हुए और एक पुरानी एंबेसडर कार खरीदी गई. हालांकि कार तो खरीद ली गई लेकिन मामला फंसा कि पेट्रोल के पैसे कहां से आएंगे. नेताजी के घर पर चल रही बैठक के दौरान जब यह मुद्दा उठा तो गांव वालों ने निर्णय लिया कि वह हर सप्ताह 1 दिन एक समय का भोजन नहीं करेंगे और अनाज से जो पैसा बचेगा उससे नेताजी के चुनावी प्रचार में लगने वाले पेट्रोल खरीदा जाएगा.

समय के साथ राजनीति में बनाई पैठ

जैसे जैसे समय बीतता गया, मुलायम सिंह की राजनीति में पैठ बढ़ती गई. उत्तर प्रदेश की तीन बार सत्ता संभालने वाले मुलायम सिंह यादव जमीन से जुड़े हुए नेताओं में गिने जाते हैं. अपने कार्यकर्ताओं में इनकी पकड़ ऐसी थी कि कई बार चुनावी मंचों से भीड़ में खड़े कार्यकर्ता को पहचान कर उनके नाम से संबोधित करते थे. नेताजी का उनके समर्थकों और कार्यकर्ताओं से खास लगाव का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रोटोकॉल से हटकर वह अपने कार्यकर्ताओं से मिलते थे. साथ ही साथ जब मौका मिलता तो उनके घर जाकर पूरे परिवार से मिलते थे, साथ भोजन करते थे और उनका हाल चाल लेते थे.

मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक सफर में इनके कई करीबी साथी हैं जिनकी आलोचनाओं, सुझावों और पैरवी को शायद ही नेता जी ने नजरअंदाज किया होगा. वैसे तो कई समाजवादी पार्टी नेता इनके करीबी हैं लेकिन इन्होंने जो भरोसा शिवपाल यादव अमर सिंह और आजम खान पर दिखाया है उतना शायद ही किसी और नेता पर दिखाया होगा. यह वह लोग हैं जो मुलायम सिंह की हर राजनीतिक चुनौतियों के समय चट्टान की तरह उनके साथ खड़े रहे.

मुलायम सिंह यादव भी अपने करीबियों का सम्मान करते थे और शायद यही कारण है कि 2016 में लखनऊ के पार्टी ऑफिस में एक सभा के दौरान जब अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव और अमर सिंह पर हमला बोला था तब मुलायम सिंह ने मंच से अखिलेश को जवाब देते हुए कहा था अमर सिंह ने उन्हें जेल जाने से बचाया था और वह अमर सिंह और शिवपाल यादव के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकते.
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2017 में अखिलेश यादव के समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद मुलायम सिंह यादव सक्रिय राजनीति से दूर हो गए. इसके पीछे उनकी गिरती सेहत भी एक बड़ा कारण था. राजनीति के अंतिम चरण में मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी को जोड़कर रखने की पूरी कोशिश की हालांकि यह कोशिश सफल नहीं हुई. अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल यादव के बीच मनमुटाव की जो लकीरें थी वह अब खाई बन गई है. मुलायम सिंह यादव के लाख प्रयासों के बावजूद अखिलेश और शिवपाल के दिल कभी नहीं मिले जिसका सीधे तौर पर राजनैतिक घाटा समाजवादी पार्टी को हुआ.

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