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मेरे (अजय बोस) जेहन में मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) जी की चिरस्थायी याद एक हेलीकॉप्टर यात्रा की है. आज से ठीक लगभग 26 साल पहले 1996 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान मैं उनके साथ उनके कैंपेन को कवर करने गया था. मैं उनके इंटरव्यू के साथ-साथ समकालीन भारतीय राजनीति के जननेताओं में से एक को चुनावी रंग में रंगा देखने भी आया था. कहने की जरूरत नहीं है कि मैं इस मौके को लेकर बहुत उत्साहित था.
दुर्भाग्य से यह इंटरव्यू नीरस था. अपने कद्दावर राजनीतिक रुतबे के बावजूद मुलायम सिंह मेरे सवालों का चंद शब्दों में जवाब दे रहे थे. अंग्रेजी मीडिया के लिए उनकी बेरुखी भी शायद वजह बनी कि वे मेरे सामने खुलने से बचते रहे.
स्थिति को बदतर बना रहे थे अमर सिंह, जो उस तंग जगह हेलीकॉप्टर में सिर्फ शारीरिक परेशानी का कारण नहीं बन रहे थे. बल्कि उनके कारण मुलायम सिंह और मेरे बीच, जो आमने-सामने की बातचीत होनी चाहिए थी, वह तीन तरफा हो गई क्योंकि अमर सिंह इंटरव्यू के बीच में लगातार अपने विचार रखे जा रहे थे. हालांकि मैंने पहले ही सुन रखा था कि अमर जी मुलायम यादव के लिए फिक्सर बन गए थे, लेकिन उस वक्त पहली बार मुझे एहसास हुआ कि वह मुलायम यादव जी के लिए किस कदर महत्वपूर्ण हो गए थे.
खैर, मुलायम सिंह को ग्रामीण उत्तर प्रदेश के बीचों-बीच एक दर्जन चुनावी सभाओं में इधर-उधर आते-जाते देखना मेरे लिए आंखें खोलने वाला था. हेलीकॉप्टर में इंटरव्यू के बीच तौल कर बोलने वाला यह नेता गांवों में बने रैली मैदान में उतरते ही शक्तिशाली शेर में बदल गया. अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं और स्थानीय नेताओं को नाम से अभिवादन करते हुए जैसे ही वे मंच पर पहुंचे, ऐसा लग रहा था कि वे दूर-दराज के गांव में लगभग सभी को जानते हैं.
मुलायम यादव कोई कुशल वक्ता नहीं थे और उन्होंने भीड़ को जोड़ने के लिए वाजपेयी जी की तरह किसी अलंकृत भाषा का उपयोग भी नहीं किया. बावजूद इसके उन्होंने पहले से ही सामने खड़े जनता के हुजूम को अपनी गिरफ्त में कर लिया था, मुलायम सिंह भीड़ को यह समझा रहे थे कि उन्हें फिर से सत्ता में वापस लाने के लिए उनके वोट की आवश्यकता क्यों है और भीड़ उनके जयकारे के नारों से गूंज रही थी.
मुलायम जी के साथ इंटरव्यू में खास बातचीत न होने के बावजूद मुझे मेरी स्टोरी मिल गई थी. बेशक स्टोरी में मुलायम जी के लिए अमर सिंह के महत्व वाला एंगल खास था. अमर सिंह जी ने उसे आने वाले कई सालों तक याद रखा क्योंकि पहली बार मीडिया ने उन्हें गंभीरता से लिया था.
वह राम मनोहर लोहिया की संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी (एसएसपी) में शामिल हो गए और 27 साल की छोटी उम्र में पहली बार विधायक चुने गए, लेकिन उनके रोल मॉडल कद्दावर किसान नेता चौधरी चरण सिंह थे, जिन्होंने पश्चिमी यूपी के जाटों को मध्य-पूर्वी यूपी की पिछड़ी जातियों के साथ-साथ मुस्लिमों को एकजुट किया और राजनीतिक तख्तापलट करते हुए 1967 के महत्वपूर्ण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को हरा दिया.
आश्चर्य नहीं कि 1968 में लोहिया की मौत के तुरंत बाद मुलायम सिंह ने SSP छोड़ दिया और चौधरी चरण सिंह के भारतीय क्रांति दल (BKD) में शामिल हो गए. शायद उन्हें उम्मीद थी कि वे आने वाले वक्त में चरण सिंह के राजनीतिक उत्तराधिकारी होंगे, लेकिन 1980 के दशक के मध्य में चौधरी साहब के अपने अराजनीतिक बेटे अजीत सिंह को यह उत्तराधिकार सौंपा.
मुलायम सिंह कई मायनों में एक अद्वितीय राजनीतिक नेता थे. उनके पास अलग-अलग नाम वाली पार्टी से पहले सात बार उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा के लिए चुने जाने का अविश्वसनीय रिकॉर्ड है. 1967 में SSP के टिकट पर, 1974 में BKD , 1977 BLD, 1985 में लोक दल, 1989 में जनता दल, 1991 में जनता पार्टी और 1993 उनकी अपनी समाजवादी पार्टी के टिकट पर.
समाजवादी पार्टी के इस ‘पितामह’ के राजनीतिक कौशल ने ही उन्हें भारतीय राजनीति के दो ध्रुवों - कांग्रेस और बीजेपी के बीच से रास्ता बनाकर चलने की अनुमति दी है. 1979 में दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर अपने गुरु राज नारायण और रोल मॉडल चरण सिंह का अनुसरण किया, जनता सरकार गिरी और उसके बाद से उन्होंने संघ से मुंह मोड़ लिया.
दूसरी तरफ उन्होंने एक बार 1999 में कांग्रेस को गठबंधन सरकार बनाने से रोका था और अंतिम समय में समर्थन वापस ले लिया था, लेकिन फिर भी नौ साल बाद संसद में महत्वपूर्ण अमेरिकी परमाणु समझौते के वोट पर समर्थन करते हुए कांग्रेस सरकार को बचाया भी था.
मुलायम सिंह का नाम विवादों और घोटालों में भी रहा. जिस तरह से उन्होंने 1995 में मायावती द्वारा उनकी सरकार गिराने से ठीक पहले मायावती पर गुंडों को हमला करने की अनुमति दी या बलात्कार के आरोपी उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं पर उनकी विवादस्पद टिप्पणी - "लड़कों से गलतियां तो हो जाती हैं" की चौतरफा आलोचना हुई थी. साथ ही उनकी अमर सिंह, बाहुबली राजनेता राजा भैया और भ्रष्टाचार के आरोपों में डूबे उद्योगपति सुब्रतो रॉय से उनकी नजदीकियां भी सुर्खियां बनीं.
फिर भी उनके देशी और तैयार तरीके शायद भारतीय राजनीति के उतार-चढ़ाव की ही परछाई थे और शायद ही कोई राजनेता हर पिच पर मुलायम सिंह यादव जितना महारत से खेलने में माहिर था.
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