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मुलायम सिंह यादव के बचपन से लेकर आखिरी तक के वो किस्से जब बचपन में गन्ना तोड़ने पर हुई थी पिटाई फिर खेल में जीती थी "रॉबिन हुड की साइकिल",अनपढ़ महिला की बातों ने बना दिया 'मुख्यमंत्री'.
मुलायम सिंह यादव आज हमारे बीच में नही हैं.अपने जन्मदिन से डेढ़ महीने पहले नेता जी मुलायम सिंह यादव ने आखिरी सांस गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में ली. इटावा स्थित पैतृक गांव सैफई में उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया.
मुलायम सिंह के बेहद करीबी रहे उनके बचपन के दोस्त स्वर्गीय रामरूप यादव के बेटे रनवीर कुमार यादव से मुलायम सिंह के कुछ किस्सों के बारे में बातचीत की.
मुलायम सिंह यादव और रामरूप यादव आपस में एक बहुत अच्छे दोस्त थे. इन दोनों दोस्तों हेमरा स्थित गांव में स्थित सरकारी स्कूल में क्लास 6,7 और आठ की पढ़ाई की. जिसके बाद में दोनों दोस्तों ने 1954 से लेकर के 1959 तक सैफई से पांच किमी दूर करहल स्थित जैन इंटर कॉलेज से शिक्षा दीक्षा प्राप्त की.
1960 से 1963 तक इटावा के डिग्री कॉलेज से बीए की पढ़ाई की. इसके फिरोजाबाद में स्थित शिकोहाबाद के के.के. डिग्री कॉलेज से बी. टी. की डिग्री प्राप्त की. इस पूरे छात्र जीवन में रामरूप यादव मुलायम सिंह यादव के साथ में एक ही घर और कमरे में रहे.
बात सन 1954 की है जब मुलायम सिंह यादव जैन इंटर कॉलेज में कक्षा नौ की पढ़ाई करने गए थे. स्कूल के पीछे एक खेत में ईख (गन्ने) की फसल खड़ी हुई थी. जिसमें से नेता जी ने एक गन्ना को तोड़ लिया और खाने लगे. इस बात की शिकायत खेत वाले ने स्कूल में आकर की तो नेता जी को डांट लगी और अध्यापक ने थोड़ी सी पिटाई भी लगाई. उसके अगले दिन नेता जी ने अपने सभी दोस्तों को खेत से गन्ने तुड़वाने के लिए भेज दिया. उसके बाद फिर अगले दिन खेत का मालिक आया तो नेता जी ने कहा, "मैं तो गन्ने को लेने नहीं गया था जो गया था उसको देखो."
ये मुलायम सिंह से जुड़ा हुआ किस्सा 1960-61 का है. जब मुलायम सिंह यादव और रामरूप यादव इटावा में स्थित के.के. कॉलेज से BA की पढ़ाई पढ़ रहे थे. रामरूप यादव की शादी हो चुकी थी. मुलायम सिंह यादव को मठ्ठा (छाछ) में बनी हुई (गुइया) अरबी की सब्जी और मक्के की रोटी पसंद थी. रूपराम के घर में बैठ कर मुलायम सिंह यादव भोजन कर रहे थे. रूपराम यादव की पत्नी सियादेवी घर के चूल्हे में खाना बना रही थी. तभी मुलायम सिंह यादव ने कहा...
जिसके बाद में मुलायम सिंह यादव 1991 में जब हमारे घर पर आए तो माता जी को नेता जी को होली पर रंग लगाने की चेष्टा हुई तो सभी ने मना कर दिया जिसके बाद में नेता जी ने कहा कि "भाभी को रंग लगाने दीजिए,आज मैं मुख्यमंत्री हूं ये उन्हीं की देन है."
सियाराम ग्राम भुजिया के रहने वाले हैं. सियाराम को मुलायम सिंह यादव ने सन 1965-66 में जैन इंटर कॉलेज में कक्षा 7वीं में पढ़ाया था. जब सियाराम की शादी की लग्न की रस्म चल रही थी तब वहां पर नेता जी उपस्थित थे. उस वक्त नेता जी को कपड़े के रूमाल में बतासे (मिठाई) और एक रुपया दिया था.
वाक्या 2004-05 का है. जब मुख्यमंत्री रहते हुए मुलायम सिंह यादव सियाराम के घर की तरफ से निकल रहे थे. तभी वहां पर खड़े हुए सियाराम को नेता जी ने देखा और पूछा "सियाराम तुम बहुत कमजोर हो रहे हो,और सभी लोग बढ़िया हैं. " सियाराम ने कहा" मैं आपसे मिलने के लिए लखनऊ गया था जहां आपसे मुलाकात नहीं हो पाई" जिसके बाद में नेता जी ने मेरे बेटे के कागज लिए और नौकरी लगवा दी.
अब हमारा बेटा संजीव पुलिस में नौकरी कर रहा है. जब नेता जी सैफई आए और मैं मिलने गया तो नेता जी ने पूछा, "सियाराम तुम्हारा काम हो गया,मैंने कहा ' हां' हो गया. जिसके बाद में नेता जी ने कहा तुम्हारी लग्न में मिला हुआ एक रुपया का हिसाब आज बराबर हो पाया है.
नेता जी स्कूल से पढ़ा करके अपने गांव वापस पैदल जा रहे थे. गांव में कुछ लोग जुआ खेल रहे थे. नेता जी ने उस जुआ से एक रॉबिन हुड की साइकिल जीत ली और उसी से स्कूल आने जाने लगे थे.
क्विंट हिंदी की टीम मुलायम सिंह के तमाम किस्से सुन रही थी. भावुक होते हुए रनवीर सिंह ने बताया हम आखिरी में नेता जी से सैफई में जुलाई 22 में मिले थे तो पूछा घर में सभी लोग अच्छे हैं, मैंने सिर हिलाते हुए हां में जवाब दे दिया.
नेता जी मुलायम सिंह यादव बेहद सरल स्वभाव के नेता थे. व्यक्ति को एक बार देख लेते थे तो भूलते नहीं थे.आज वो हमारे बीच में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें हमारे जहन में हमेशा रहेंगी.
(इनपुट: शुभम श्रीवास्तव)
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