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देश की पहली महिला सर्जन की कहानी, लड़की होने के कारण एडमिशन नहीं दे रहा था स्कूल

Muthulakshmi Reddy: बचपन में लड़की होने के कारण झेले कई भेदभाव लेकिन ऐसी लड़ीं कि महिलाओं को दिलाए कई अधिकार

उपेंद्र कुमार
पॉलिटिक्स
Updated:
<div class="paragraphs"><p>Muthulakshmi Reddy देश की पहली महिला सर्जन और पहली विधायक रहीं.</p></div>
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Muthulakshmi Reddy देश की पहली महिला सर्जन और पहली विधायक रहीं.

(फोटोः उपेंद्र कुमार/ क्विंट)

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वो लड़की जब मैट्रिक में एडमिशन के लिए गई थी तो स्कूल ने ये कहते हुए एडमिशन देने से मना कर दिया कि यहां लड़कियों को शिक्षा नहीं दी जाती है. यहां सिर्फ लड़के पढ़ने के लिए आते हैं. बाद में इसी लड़की के लिए देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा-'अगर वो न होतीं तो भारत में महिलाएं जिस स्थिति में हैं, न होतीं.'

अब जब द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) के रूप में देश को दूसरी महिला राष्ट्रपति मिली हैं तो हम आपको उस महिला की कहानी सुनाते हैं जो देश की पहली महिला विधायक थी. हालांकि पहली महिला विधायक होना उनके लंबे सामाजिक जीवन की बड़ी-बड़ी उपलब्धियों की लिस्ट में एक छोटी सी उपलब्धि है.

सियासत एपिसोड- 01

(फोटोः उपेंद्र कुमार/क्विंट हिंदी)

साल था 1886 और तारीख थी 30 जुलाई, जगह तमिलनाडु का पुडुकोट्टई जिला. नारायण स्वामी अय्यर और चंद्रामाई के घर पर एक बेटी का जन्म हुआ था. तमिल के साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी बेटी का नाम खुशी से मुथुलक्ष्मी रेड्डी (Muthulakshmi Reddy) रखा गया.

मुथुलक्ष्मी समय के साथ-साथ धीरे-धीरे बड़ी हो रही थीं. पेशे से शिक्षक पिता के ऊपर मुथुलक्ष्मी की पढ़ाई की चिंता सताने लगी. उस दौर में लड़कियों की शिक्षा को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था. जैसे तैसे करके पिता ने कुछ शिक्षकों के साथ मेल मिलाप कर मैट्रिक तक की पढ़ाई अपने घर पर ही करवाई और वो हर परीक्षा में टॉप पर रहीं.

मैट्रिक के बाद पिता रिश्तेदारों से मुथुलक्ष्मी की शादी की बात करने लगे. क्योंकि, उस दौर में बाल विवाह का चलन था. जब इस बात की जानकारी मुथुलक्ष्मी को लगी तो वो काफी नाराज हुईं और इसका विरोध किया. फिर किसी तरह माता-पिता को उन्हें शिक्षित करने के लिए राजी कर लिया.

मैट्रिक में एडमिशन देने से जब महाराज हाई स्कूल ने इनकार कर दिया तो मुथुलक्ष्मी टस से मस नहीं हुईं. जबकि मुथुलक्ष्मी के स्कूल में पढ़ने को लेकर समाज के रूढ़िवादी तबके ने भी खूब हंगामा किया था.

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पुडुकोट्टई गैजेट में लिखा है कि मुथुलक्ष्मी की प्रतिभा को देखते हुए पुडुकोट्टई के राजा मार्तंड भैरव थोंडामन ने तमाम हंगामे को दरकिनार कर न केवल मुथुलक्ष्मी को एडमिशन लेने की इजाजत दी बल्कि उनके लिए वजीफे की व्यवस्था भी करवाई. उस दौर में अपने स्कूल जाने वाली वो पहली लड़की थीं.

इसके बाद साल 1912 में उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग में दाखिला लिया, जहां उन्हें इस विभाग में दाखिला लेने वाली पहली भारतीय छात्रा का तमगा हासिल हुआ. उन्होंने यहां सर्जरी में टॉप कर गोल्ड मेडल जीता.

साल 1914 में मुथुलक्ष्मी डॉक्टर टी सुंदर रेड्डी के साथ एक शर्त पर शादी करने के लिए राजी हुईं. शर्त ये थी कि उनके पति उनकी सामाजिक गतिविधियों और जरूरतमंदों की मेडिकल मदद में दखल नहीं देंगे.

उन्हें इंग्लैंड में महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य प्रशिक्षण के लिए चुना गया, लेकिन पैसों की कमी की वजह से उनके माता-पिता ने उन्हें इंग्लैंड जाने से मना कर दिया, तब तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री पानागल राजा ने सरकार को उन्हें एक साल के लिए वित्तीय सहायता देने का निर्देश दिया.

वहां से लौटने के बाद मुथुलक्ष्मी ने पाया कि महिलाओं के उत्थान के लिए सिर्फ स्वास्थ्य के स्तर पर काम करना काफी नहीं है. इसलिए वो एनी बेसेंट के मार्गदर्शन में महिला अधिकारों के लिए आंदोलन में कूद पड़ीं.

डॉक्टर वी शांता अपनी किताब 'मुथुलक्ष्मी रेड्डी- ए लेजेंड अंटू यॉरसेल्फ' में कहती हैं कि वो सिर्फ 'कई पहल करने वालीं महिला ही नहीं थीं' बल्कि उन्होंने महिलाओं की मुक्ति और सशक्तिकरण के लिए लड़ाइयां लड़ीं.

साल 1926 में उन्हें मद्रास विधान परिषद के लिए नॉमिनेट किया गया, जिसके बाद उन्हें देश की पहली महिला विधायक होने का गौरव प्राप्त हुआ. वो अपनी किताब 'माय एक्सपीरियेंस एज लेजिस्लेचर' लिखती हैं कि

शुरुआत में मैं विधान परिषद में सेवाएं देने के लिए हिचक रही थी. मुझे डर था कि कहीं मेरा चिकित्सा से जुड़ा काम प्रभावित ना हो जाए. लेकिन आखिर वो इस नतीजे पर पहुंचीं कि कहीं न कहीं उन्हें लगता था कि महिलाओं को घर निर्माण की अपनी क्षमता को राष्ट्र निर्माण में भी इस्तेमाल करना चाहिए.
माय एक्सपीरियेंस एज लेजिस्लेचर

मद्रास विधान परिषद की सदस्य रहते उन्होंने बाल विवाह रोकथाम कानून, मंदिरों से देवदासी प्रथा खत्म करने, वेश्यालय बंद करने, महिलाओं और बच्चों की तस्करी रोकने जैसे कानून बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

विधान परिषद के सदस्य के दौरान ही उन्होंने विवाह के लिए लड़कियों की उम्र बढ़ाकर 16 साल और लड़कों के लिए 21 साल करवाई. वो अपनी आत्मकथा 'माय एक्सपीरियेंस एज लेजिस्लेचर' में कहती हैं कि

सती प्रथा में कुछ ही देर की पीड़ा होती है, जबकि लड़की का बाल विवाह हो तो उसे एक बाल पत्नी, बाल मां और बाल विधवा के तौर पर जिंदगी भर की पीड़ा मिलती है.
माय एक्सपीरियेंस एज लेजिस्लेचर

वो कहती हैं कि जब उनका विधेयक बाल विवाह रोकथाम कानून स्थानीय प्रेस में प्रकाशित हुआ तो कट्टरपंथियों ने खुली बैठके कीं और प्रेस के जरिए उन पर हमला बोला. इसमें यूनिवर्सिटी के स्नातक छात्र भी शामिल थे.

इसके अलावा वो देवदासी प्रथा को खत्म करने के लिए कानून पास करवाने में सबसे आगे रहीं. उन्हें इस प्रक्रिया में भी कट्टर समूहों से विरोध का सामना करना पड़ा था. देवदासी प्रथा में युवा लड़कियों या महिलाओं को भगवान की शरण में दे दिया जाता था.

उन्होंने देवदासियों की सुरक्षा के लिए अपने घर अड्यार से अव्वई घर यानी अनाथालय की शुरुआत की.

मुथुलक्ष्मी पर एनी बेसेंट और महात्मा गांधी की विचारधारा का गहरा प्रभाव था. 1930 में जब महात्मा गांधी को नमक सत्याग्रह के दौरान गिरफ्तार किया गया था, तब इसका विरोध करते हुए मुथुलक्ष्मी ने मद्रास विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था और महात्मा गांधी के साथ विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने लगीं.

60 के दशक में उनकी छोटी बहन की कैंसर से मौत हो गई, जिससे उन्हें बहुत सदमा लगा. इसके बाद उन्होंने साल 1954 में अड्यार कैंसर इंस्टीट्यूट की स्थापना की. आज भी इस संस्थान में पूरे भारत से कैंसर के मरीज इलाज के लिए आते हैं.

उन्हें चिकित्सा और समाज सुधार के क्षेत्र में योगदान के लिए साल 1956 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया. समाज को इतना कुछ देने वाली मुथुलक्ष्मी साल 1968 में 81 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गईं.

साल 1986 में तमिलनाडु सरकार ने उनके जन्मदिन पर एक डाक टिकट जारी किया था.

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Published: 30 Jul 2022,07:00 PM IST

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