advertisement
उग्रवाद, जातीय हिंसा, सेवेन सिस्टर का हिस्सा, अशांत उत्तर पूर्वी राज्यों में से एक और ईसाई बाहुल्य नागालैंड (Nagaland) में एक बार फिर भगवा पार्टी यानी बीजेपी गठबंधन की सरकार बन रही है. केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी ने स्थानीय नगा पार्टी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था और अब अपने ही पुराने जीत का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. 2018 के विधानसभा चुनाव से भी बड़ी जीत हासिल की है. NDPP-BJP गठबंधन ने 60 सीटों वाली नागालैंड विधानसभा में 37 सीटों पर कब्जा जमाया है.
वहीं नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) का सूपड़ा साफ हो चुका है, एनपीएफ 2 सीटों पर सिमट गई है. जो कांग्रेस साल 2013 तक नागालैंड की राजनीति में दमखम रखती थी वो एक बार फिर शून्य पर सिमट गई है. इसके अलावा 4 निर्दलीय, NCP के 7, NPP के 5, RPI (अठावले) और लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के 2-2, जेडीयू के एक उम्मीदवार ने जीत हासिल की है.
यूनाइडेट डेमोक्रेटिक अलायंस (UDA) में 40 सीटों पर चार बार के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो (Neiphiu Rio) की पार्टी एनडीपीपी और 20 सीटों पर बीजेपी ने अपने उम्मीदवार उतारे थे.
अब अगर बात करें कि एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन ने एक बार फिर कैसे कमाल किया तो उसका जवाब आसान शब्दों में कुछ प्वाइंट्स में समझते हैं और जानते हैं बीजेपी गठबंधन कैसे नागालैंड में कामयाब हो रहा है.
नागालैंड चरमपंथ और उग्रवाद का पीड़ित रहा है. 1995 से सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) लागू है, मोदी सरकार ने साल 2022 में इसका दायरा कम करने का फैसला लिया था.
चुनाव से ठीक पहले गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि वह उम्मीद कर रहे हैं कि पूरे पूर्वोत्तर भारत से जल्द अफस्पा कानून हटाया जा सकता है.
बीजेपी गठबंधन की जीत की एक और अहम वजह है नेफ्यू रियो, चार बार से मुख्यमंत्री हैं. NDPP नेता और पूर्वोत्तर राज्य के सबसे लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री. अलग-अलग पार्टी में रहे लेकिन लोगों ने उनका साथ नहीं छोड़ा. और बीजेपी को इनके साथ गठबंधन का फायदा हुआ.
नागालैंड में कोई मजबूत विपक्ष नहीं है या कहें बिखरा हुआ विपक्ष है.
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में 60 में से 26 सीटें जीतने वाली नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) कमजोर हो चुकी है. साल 2021 में NPF को बड़ा झटका लगा था और पार्टी के 21 विधायक एनडीपीपी के गठबंधन में चले गए थे.
साल 1998 में 51 सीट जीतने वाली कांग्रेस अपनी राजनीतिक जमीन खो चुकी है. पिछले चुनाव में कांग्रेस का एक भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका था. पिछले पांच साल में कांग्रेस के कई नेता सत्ताधारी पार्टी का दामन पकड़ चुके हैं.
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया, लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल यूनिइटेड और कई दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं, लेकिन किसी के पास भी मजबूत संगठन नहीं है. न ही जमीनी स्तर पर बड़े जनाधार वाला कोई नेता है.
नरेंद्र मोदी की 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' काम आ रही है. मोदी लगातार नॉर्थ ईस्ट राज्यों पर फोकस बनाए हुए हैं, जिसका फायदा बीजेपी को होता भी दिख रहा है.
नगालैंड में 80 फीसदी से अधिक ईसाई आबादी है. भले ही देशभर में बीजेपी को हिंदू राष्ट्र के पैरोकार के तौर पर देखा जाता हो, लेकिन ईसाई बाहुल्य नागालैंड में वो अलग स्ट्रैटेजी पर चलती दिखी. नगालैंड में बीजेपी ने कई अहम पदों पर ईसाई समाज से आने नेताओं को जगह दी है.
बीजेपी ने अपने घोषणा-पत्र में सीनियर सिटिजन को ईसाइयों के पवित्र स्थल यरुशलम की मुफ्त यात्रा कराने का वादा किया है.
सीमांत नागालैंड राज्य, नगा समझौता की मांग उठाने वाले संगठन और विद्रोही गुटों से बातचीत का रास्ता निकालना भी बीजेपी के हक में गया.
बीजेपी ने अपने मेनिफेस्टो में फ्रीबीज जैसे की 2 मुफ्त रसोई गैस, कॉलेज जाने वाली मेधावी छात्राओं के लिए मुफ्त स्कूटी योजना के अलावा नागालैंड सांस्कृतिक स्थापित करने को बचाए रखने पर जोर दिया. इसके लिए 1,000 करोड़ रुपये का फंड आवंटित करने का वादा सोने पे सुहागा साबित होता दिखा.
नागालैंड को राज्य का दर्जा मिले 60 साल हो गए हैं - और अब तक 13 विधानसभा चुनाव हो चुके हैं. ऐसे में पिछले 25 सालों में कांग्रेस अर्श से फर्श पर पहुंच गई है तो बीजेपी गठबंधन के सहारे ही सही नागालैंड में अपनी पकड़ बनाती जा रही है. वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो बीजेपी को करीब 19 फीसदी वोट मिले हैं, वहीं एनडीपीपी को 34 फीसदी वोट मिले हैं. पिछले चुनाव में NDPP का कुल वोट प्रतिशत 25.2 फीसदी था. कुल मिलाकर बीजेपी-NDPP ने कांग्रेस, नगा पीपल्स फ्रंट (NPF) के वोट में सेंध लगाया है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined