मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019NDTV-CSDS सर्वे: PM मोदी सबसे आगे,लेकिन 2024 का रण आसान नहीं- BJP की 3 चुनौतियां

NDTV-CSDS सर्वे: PM मोदी सबसे आगे,लेकिन 2024 का रण आसान नहीं- BJP की 3 चुनौतियां

पीएम मोदी 9 साल के कार्यकाल के बाद भी सबसे लोकप्रिय पीएम चेहरा हैं. लेकिन कांग्रेस ने भी काफी उछाल हासिल किया है.

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Updated:
<div class="paragraphs"><p>NDTV-CSDS सर्वे : पीएम मोदी सबसे आगे, लेकिन कांग्रेस भी जमीन तैयार कर रही</p></div>
i

NDTV-CSDS सर्वे : पीएम मोदी सबसे आगे, लेकिन कांग्रेस भी जमीन तैयार कर रही

(नमिता चौहान / क्विंट)

advertisement

नरेंद्र मोदी सरकार (PM Modi Government) के नौ साल को लेकर NDTV-CSDS ने एक सर्वे किया है. इसमें कोई चौंकाने वाली बात नहीं ही है कि प्रधानमंत्री पद के चेहरे के तौर पर मोदी अभी भी सबसे लोकप्रिय (सर्वे में हुए खुलासे के अनुसार) बने हुए हैं. हालांकि बीजेपी के लिए चिंतित होने की वजहें भी हैं, लेकिन उस पर विस्तार से बाद में बात करेंगे.

पहले एक नजर इस पर कि बीजेपी के लिए अच्छी खबर क्या है?

  • सर्वे में 43 फीसदी लोगों ने मोदी को पीएम की पसंद के तौर पर चुना है. यह उस व्यक्ति के लिए एक बड़ी उपलब्धि है जो अपने दूसरे कार्यकाल के अंतिम वर्ष में सेवाएं दे रहा है. लगभग इतने ही फीसदी लोगों का कहना है कि वे एक बार फिर 'मोदी सरकार' चाहते हैं.

  • पीएम मोदी और उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी राहुल गांधी के बीच अभी भी एक बड़ा अंतर बना हुआ है, यह अंतर 27 फीसदी का है.

  • वोट देने की बात करें तो लगभग 39 फीसदी लोगों का कहना है कि अगर आज चुनाव होते हैं तो वे बीजेपी के पक्ष में वोट करेंगे. यह 2019 में बीजेपी को मिले 37.7 फीसदी वोट से 1.3 प्रतिशत अंक अधिक है.

  • वहीं लगभग 29 फीसदी वोट कांग्रेस के पक्ष में जाने का अनुमान है. हालांकि 2019 की तुलना में यह बड़ा सुधार है, लेकिन इसके बावजूद यह बीजेपी से अभी भी 10 प्रतिशत अंक पीछे है.

सत्ता में नौ साल रहने के बाद, सत्ता विरोधी (anti-incumbency) लहर का आना तय है. ऐसे में यह सराहनीय है कि बीजेपी के अनुमानित वोट शेयर में बढ़ोत्तरी का अनुमान है.

लेकिन सर्वे में कुछ ऐसे बिंदु भी हैं, जिनसे बीजेपी को चिंतित होना चाहिए.

1. गैप कम हो सकता है

वोट शेयर को प्रोजेक्ट करते समय, सर्वे NDA और UPA के बजाय बीजेपी और कांग्रेस को ध्यान में रखता है. सर्वे में दोनों पार्टियों के सभी प्री-पोल सहयोगियों को अन्य के तौर पर प्रस्तुत किया गया है.

हमने सीएसडीएस के साथ इस बात को क्रॉस-चेक किया कि एनडीटीवी पर वोट शेयर के जो अनुमान दिए गए है वह 'बीजेपी/कांग्रेस' के लिए थे या 'एनडीए/यूपीए' के लिए. उनकी तरफ से यह बताया गया कि यह पार्टियों के लिए है, न कि गठबंधन के लिए.

इसलिए वोट शेयर के पूर्वानुमान कुछ हद तक भ्रामक या गलत हैं क्योंकि, आदर्श रूप से सर्वे के दौरान प्री-पोल गठबंधनों को ध्यान में रखा जाना चाहिए था.

ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण है कि 'अन्य' के लिए अनुमानित 28 प्रतिशत वोटों में से कितने प्रतिशत वोट बीजेपी और कांग्रेस के प्री-पोल सहयोगियों को जा रहे हैं.

वोट शेयर: 2019 चुनाव VS 2023 NDTV-CSDS सर्वे

चूंकि वर्तमान में यूपीए के पास बड़े वोट शेयर वाली पार्टियां हैं, इसे देखते हुए इस बात की बहुत अधिक संभावना है कि एनडीए और यूपीए के बीच का अंतर वाकई में बीजेपी और कांग्रेस के बीच मौजूद 10 अंकों के अंतर से भी कम हो सकता है.

अब आपके मन में यह सवाल होगा कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं कि कांग्रेस के सहयोगी दलों का वोट शेयर बीजेपी के सहयोगियों के वोट शेयर से ज्यादा हो सकता है?

इसको समझने के लिए आइए एक नजर डालते हैं 2019 में उन पार्टियों के वोट शेयर पर जो वर्तमान में बीजेपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में हैं.

वर्तमान में बीजेपी के साथ गठबंधन करने वाली पार्टियों को लगभग 4% वोट मिले, , जबकि कांग्रेस से संबद्ध दलों को 7 प्रतिशत से थोड़ा अधिक वोट मिले. हमने शिवसेना को दोनों श्रेणियों में शामिल नहीं किया है, क्योंकि तब से पार्टी के दो फाड़ हो गई है.

2019 और 2023 के बीच NDA के वोट शेयर में कमी आयी हे.

सच्चाई यह है कि जनता दल-यूनाइटेड, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट जैसे सहयोगियों का साथ छूटने से 2019 की तुलना में अब NDA गठबंधन सिकुड़ सा गया है. हालांकि इस दौरान NDA को जननायक जनता पार्टी और RLSP जैसे सहयोगियों का साथ प्राप्त हुआ है.

अब ये आंकड़े शायद इस बात की सटीक भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं कि 2024 में क्या होगा? DMK की कीमत पर AIADMK में थोड़ा सुधार हो सकता है, जो पिछली बार पीक पर रही होगी. यह भी संभव है कि बदले हुए गठबंधनों के कारण जद-यू पिछली बार की तरह अच्छा प्रदर्शन न करे. दूसरी ओर, हमने लेफ्ट (वाम दल) को UPA का हिस्सा नहीं माना है, भले ही वह पिछले कुछ वर्षों से तमिलनाडु, बिहार, असम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस का प्री-पोल सहयोगी है.

लेकिन जिस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है वह यह है कि AIADMK को छोड़कर बीजेपी के किसी भी सहयोगी की किसी भी बड़े राज्य में, यानी 20 सीटों या उससे अधिक सीटों वाले किसी भी राज्य में उपस्थिति नहीं है. दूसरी ओर, कांग्रेस के प्री-पोल गठबंधन में चार (DMK, RJD, JD-U और NCP) ऐसी पार्टियां शामिल हैं.

नतीजन, कांग्रेस के सहयोगियों का आधार बड़ा है और बीजेपी के सहयोगियों की तुलना में अधिक वोट शेयर होने की संभावना है.

फिर से, शिवसेना को हम किसी भी श्रेणी में नहीं गिन रहे हैं, क्योंकि हम नहीं जानते कि इसका आधार दो गुटों के बीच कैसे विभाजित होगा.

संक्षेप में कहा जाए तो यदि हम इसे एनडीए VS यूपीए बनाते हैं तो कांग्रेस पर बीजेपी की 10 अंकों की बढ़त कम हो सकती है.

सीटों के मामले में 10 अंक या उससे कम की बढ़त का क्या मतलब है? इसकी भविष्यवाणी करना मुश्किल है क्योंकि इसके लिए राज्य-दर-राज्य आंकड़ों को समझने की आवश्यकता होती है.

लेकिन सिर्फ संदर्भ के लिए, 2019 में यूपीए के 27 प्रतिशत की तुलना में एनडीए को लगभग 44 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए, उस समय 17 प्रतिशत अंक का अंतर था. अगर यह अंतर 10 अंक से नीचे गिर रहा है, तो इस बात की काफी संभावना है कि जिस तरह 2019 में एनडीए को अच्छा खासा बहुमत मिला था वैसा इस बार नहीं मिलेगा.

2. एंटी-बीजेपी वोटों का एकीकरण

एनडीटीवी द्वारा दिखाए गए आंकड़ों के मुताबिक, बीजेपी के लिए अनुमानित वोट शेयर 39 प्रतिशत और कांग्रेस के लिए 29 प्रतिशत है. बीजेपी के वोट शेयर में 2019 की तुलना में 1.3 प्रतिशत अंकों की वृद्धि होने की उम्मीद है, जबकि कांग्रेस 2019 में प्राप्त 19.67 प्रतिशत से 9.3 प्रतिशत अंकों की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज कर रही है.

इसका मतलब है कि 2019 में जिन्होंने कांग्रेस पार्टी को वोट नहीं दिया था, उनमें से कम से कम तीन मतदाताओं में से एक ने कहा कि वह कांग्रेस को वोट देने की योजना बना रहा है.

हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस को जो बढ़त मिल रही है उसकी कीमत मुख्य रूप से बीजेपी चुकाएगी या अन्य पार्टियां. हाल ही में हुए कर्नाटक चुनावों में, कांग्रेस को जो फायदा हुआ है उसकी बड़ी कीमत जेडीएस को चुकानी पड़ी है. बीजेपी को कम कीमत चुकानी पड़ानी है, लेकिन पार्टी द्वारा इसकी भरपाई बेंगलुरू शहर और ओल्ड मैसूर जैसे कुछ इलाकों से की गई है. यदि एनडीटीवी-सीएसडीएस सर्वे कोई संकेत है, तो यह संभव है कि इस पैटर्न को राष्ट्रीय स्तर पर दोहराया जा सकता है.

ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस को जो फायदा हो रहा है उसकी कीमत अन्य पार्टियां ज्यादा चुका रही हैं जबकि बीजेपी को आंशिक रूप से नुकसान पहुंच रहा है. दूसरी ओर कांग्रेस से बीजेपी कुछ हद तक हार रही है, लेकिन दूसरों के वोट काटकर इसकी भरपाई कर रही है.

यह एक कैल्कुलेटेट अनुमान है, जो हम लगा सकते हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

2019 में, कांग्रेस को सभी गैर-बीजेपी वोटों के लगभग एक-तिहाई वोट मिले थे. सीएसडीएस सर्वे पर आधारित एक अनुमानित गणना के अनुसार, यह संकेत मिलता है कि यह बढ़कर 47.5 प्रतिशत के आंकड़े पर हो गया है. अगर हम प्री-पोल गठबंधनों को ध्यान में रखते हैं, तो गैर-बीजेपी वोटों में यूपीए का हिस्सा 50% से अधिक जा सकता है.

इसका मतलब यह है कि मोटे तौर पर हर दो गैर-एनडीए वोटर्स में से एक वोटर कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन को वोट दे रहा है.

संभव है कि कुछ राज्यों में बीजेपी को इसका फायदा मिले. उदाहरण के तौर पर, उत्तर प्रदेश में बीजेपी की मुख्य विरोधी पार्टी एसपी (समाजवादी पार्टी) है, इसलिए यदि कांग्रेस यहां अपने दम बढ़त प्राप्त करती है तो यह फैक्टर बीजेपी के लिए फायदे का सौदा हो सकता है, क्योंकि नुकसान SP को होगा. तेलंगाना में भी यही स्थिति हो सकती है, हालांकि ये अपवाद है.

कुल मिलाकर, कांग्रेस और उसके प्री-पोल सहयोगियों के पीछे विपक्षी मतों का एक बढ़ा हुआ एकीकरण, बीजेपी के लिए अच्छी खबर नहीं है.

3. मोदी सरकार : महंगाई पर कमजोर, 'वैश्विक कद' पर मजबूत

सर्वे के मुताबिक पीएम मोदी लोकप्रिय बने हुए हैं. खास तौर, सर्वे में हिस्सा लेने वालों में से एक बड़े वर्ग का मानना है कि मोदी ने भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ाया. यानी दुनिया में भारत का डंका बजाया है. सर्वे में 63 फीसदी ने कहा कि मोदी के नेतृत्व में भारत का वैश्विक कद बढ़ा है जबकि 54 फीसदी ने कहा कि भारत एक वर्ल्ड लीडर (दुनिया का नेतृत्वकर्ता) बन गया है.

हालांकि, मोदी के घरेलू प्रदर्शन के कुछ ऐसे पहलू भी हैं, जिन्होंने लोगों के बड़े हिस्से को निराश किया है.

सर्वे में कम से कम 57 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वे मोदी सरकार द्वारा महंगाई से निपटने के तरीके से नाखुश हैं, जबकि 33 फीसदी का कहना कि सरकार ने इस (महंगाई के) मोर्चे पर बेहतर काम किया है. 45 फीसदी उत्तरदाताओं का कहना है कि भ्रष्टाचार से निपटने के मामले में मोदी सरकार का प्रदर्शन खराब रहा है, जबकि 41 फीसदी ने कहा कि इस मामले में सरकार का काम अच्छा रहा है.

विकास के मामले में 47 फीसदी ने कहा कि मोदी सरकार का प्रदर्शन अच्छा रहा है, जबकि 40 फीसदी उत्तरदाताओं का कहना कि इस मोर्चे पर प्रदर्शन खराब रहा है.

कश्मीर मामले को लेकर 30 फीसदी ने कहा कि सरकार ने यहां की स्थिति को 'खराब' ढंग से संभाला है जबकि 28 फीसदी ने 'अच्छा' कहा है. बाकी के जवाबकर्ता या तो अनिर्णीत थे या 'कह नहीं सकते' वाली श्रेणी में थे. यह मिश्रित प्रतिक्रिया चाैंकाने वाली है क्योंकि आर्टिकल 370 को निरस्त करने को मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है.

सर्वे के परिणाम में पाकिस्तान और चीन पर संतुष्ट और असंतुष्ट उत्तरदाताओं का प्रतिशत 28-30 प्रतिशत के दायरे में रहा.

ओवर ऑल परफॉर्मेंस (समग्र प्रदर्शन) की बात करें तो 17 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे मोदी से पूरी तरह संतुष्ट हैं, 38 प्रतिशत ने कहा कि वे कुछ हद तक संतुष्ट हैं, 19 प्रतिशत ने कहा कि वे कुछ हद तक असंतुष्ट हैं और 21 प्रतिशत ने कहा कि वे पूरी तरह से असंतुष्ट हैं.

मोदी सरकार के समग्र प्रदर्शन का परिणाम

अपने दूसरे कार्यकाल के आखिरी पड़ाव पर किसी सरकार के लिए ये आंकड़े ठीक और अच्छे हैं.

हालांकि, 57 प्रतिशत उत्तरदाताओं का महंगाई से निपटने के सरकार के तरीके से असंतुष्ट होना, 40 प्रतिशत उत्तरदाताओं का विकास के मोर्चे पर असंतुष्ट होना और 57 प्रतिशत उत्तरदाताओं का भ्रष्टाचार के मामले में सरकार के तरीके से असंतुष्ट होना बीजेपी और वर्तमान सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि 2014 में पहली बार सत्ता में आने पर पीएम मोदी द्वारा जो तीन प्रमुख वादे किए गए थे, वे यही थे.

सर्वे से जो एक बड़ी बात सामने आई वह यह है कि पीएम मोदी और बीजेपी अपना जनाधार बरकरार रखे हुए हैं, लेकिन उनके खिलाफ पड़ने वाले वोटों यानी उनको नकारने वालों की संख्या की बढ़ रही है और दूसरी ओर जो वोट इससे विमुख हो रहे हैं वे यूपीए के पीछे एकजुट हो रहे हैं. इसकी वजह से पिछली बार की तुलना में यूपीए के लिए बेहतर वोट-टू-सीट स्ट्राइक रेट हो सकता है. इसके संभावित परिणाम यह हो सकते हैं एनडीए के बहुमत में कमी आ सकती है.

एनडीए को बहुमत से नीचे लाने के लिए, अभी जितने बीजेपी वोटर मिल रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा वोट यूपीए को हासिल करने होंगे. दूसरी ओर, एनडीए को अपने प्रचंड बहुमत को बनाए रखने के लिए कुछ ऐसा करने की जरूरत होगी जो चुनाव के नैरेटिव को पूरी तरह से बदल दे, नकारात्मकता को दूर कर दे और यूपीए के पीछे जा रहे गैर-बीजेपी वोटों पर अंकुश लगा दे.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: 27 May 2023,07:56 PM IST

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT