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सबसे पहले 1992 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) कराया गया था. करीब दो दशक बाद-सर्वे का पांचवां संस्करण बुधवार 24 नवंबर को जारी किया गया. इसमें दो ऐसे आंकड़े सामने आए हैं जिनसे पूरा देश हैरान है.
पहला- देश में महिलाओं की संख्या पुरुषों से ज्यादा है- हर 1,000 पुरुषों पर 1,020 महिलाएं हैं.
दूसरा- भारत की कुल प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) गिरकर 2 हो गई है, जो इस बात का संकेत है कि देश में जनसंख्या विस्फोट का कोई खतरा नहीं.
तो क्या ये आंकड़े भारत में जनसांख्यिकी बदलाव की तरफ इशारा करते हैं? क्या इससे यह पता चलता है कि हमारा देश अब लड़कियों के मुकाबले लड़कों को ज्यादा पसंद नहीं करता, उन्हें ज्यादा तरजीह नहीं देता? और क्या अब हमारी जनसंख्या स्थिर होना शुरू हो गई है?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण का तीसरा संस्करण (एनएफएचएस-3) 2005 और 2006 के बीच कराया गया था. तब भारत का सेक्स रेशो एक बराबर था-1,000 पुरुषों पर 1,000 महिलाएं. इसके चौथे संस्करण (2015-16) के दौरान महिला-पुरुष अनुपात में फिर गिरावट आई, और यह 991:1000 हो गया.
जब पांचवें संस्करण के आंकड़ों में दिखाई दिया कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं का अनुपात ज्यादा है तो एक मशहूर अखबार ने लिखा कि भारत को अब ‘मिसिंग गर्ल्स’ का देश नहीं कहा जा सकता.
ऑक्सफोर्ड इंडिया में रिसर्च और नॉलेज बिल्डिंग की लीड वर्ना श्री रमन कहती हैं, यह गलत विश्लेषण है. चूंकि सेक्स रेशो और जन्म के समय सेक्स रेशो, अलग-अलग बातें हैं.
अब एक बुरी खबर भी सुन लें. एनएफएचएस-5 के मुताबिक, जन्म के समय सेक्स रेशो 1,000 पुरुषों पर 929 महिलाएं है.एनएफएचएस-4 के मुकाबले इसमें थोड़ा बहुत सुधार है, जब यह अनुपात 919:1000 था. इसका मतलब यह है कि लड़कियों के मुकाबले लड़कों के सर्वाइव करने की ज्यादा उम्मीद होती है.
पॉपुलेशन फाउंडेशन की सीनियर मैनेजर (नॉलेज मैनेजमेंट और पार्टनरशिप) संघमित्रा सिंह, वर्ना की बातों पर रजामंदी जताती हैं. संघमित्रा ने कहा,
कुल आबादी में सेक्स रेशो में सुधार का ये मतलब भी हो सकता है कि बालिग औरतें, आदमियों के मुकाबले लंबी जिंदगी जीती हैं. वर्ना कहती हैं, “इसका यह मतलब है कि औरतें अब ज्यादा लंबी जिंदगी जीती हैं. यह एक जनसांख्यिकी प्रवृत्ति है, जैसी दूसरी कई प्रवृत्तियां होती हैं. यहां यह बताना भी जरूरी है कि जो डेटा जारी किया गया है, वह यूनिट लेवल का डेटा नहीं है.”
अगर सरसरी निगाह से, राज्यों के आधार पर आंकड़ों को देखा जाएगा तो महसूस होता है कि भारत की जनसंख्या स्थिर होने वाली है- कई राज्यों में टोटल फर्टिलिटी रेट यानी कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2 से भी कम दर्ज की गई है.
कोई महिला कितने बच्चों को जन्म देती है, उनके औसत को टीएफआर कहा जाता है.
एनएफएचएस के डेटा के अनुसार, भारत का टीएफआर 2 है. यह स्तर अंतरराष्ट्रीय स्टैंडर्ड के मुताबिक है, और आखिरकार गिरावट की राह पर है.
सिर्फ पांच राज्यों, बिहार, मेघालय, मणिपुर, झारखंड और उत्तर प्रदेश में टीएफआर 2 से ज्यादा है.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, भारत दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन सकता है- 2040 और 2050 के बीच उसकी जनसंख्या 1.6 से 1.8 बिलियन के बीच हो जाएगी.
इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि टीएफआर के कम होने के साथ ही, भारत की नौजवान आबादी (जो जनसंख्या में सबसे बड़ी तादाद में हैं) के भी बच्चे पैदा करने की उम्मीद है.
संघमित्रा कहती हैं, "हम उम्मीद कर रहे थे कि भारत फर्टिलिटी के रिप्लेसमेंट लेवल पर पहुंच जाएगा, जोकि 2.1 की फर्टिलिटी रेट है. एनएफएचएस-4 में, टीएफआर 2.2 थी, इसलिए हमारे लिए 2 तक पहुंचना कोई हैरानी की बात नहीं है. यहां यह भी कहना होगा कि भारत में नौजवानों की आबादी काफी बड़ी है. भले ही फर्टिलिटी 2 तक पहुंच गई हो, युवा आबादी के तब तक बच्चे होते रहेंगे, जब तक कि हमारी औसत आयु ज्यादा नहीं हो जाती और अधिक लोग उस प्रजनन चक्र से बाहर नहीं हो जाते."
सीधे शब्दों में कहें तो एनएफएचएस एक रिप्रेजेंटेटिव सर्वे ही होता है.
पीएफआई की संघमित्रा सिंह कहती हैं,
एनएफएचएस सर्वेक्षण आंकड़ों को अलग-अलग करके नहीं दिखाता, खासकर धर्म और जाति के लिहाज से. और न ही इस बात का खुलासा करता है कि सेक्स रेशो और टीएफआर जैसे क्षेत्रों में उप समूहों की क्या स्थिति है.
डॉ. रेड्डी इसे उदाहरण के जरिए समझाते हैं- जन्म के समय सेक्स रेशो और टीएफआर के बीच संबंध. डॉ. रेड्डी कहते हैं.
"यह दिलचस्प है कि जन्म के समय सेक्स रेशो में जो सुधार दिखाई दे रहा है, उसकी वजह ग्रामीण क्षेत्र हैं. शहरी क्षेत्रों में यह ज्यादा झुका हुआ है. इसीलिए अगर ग्रामीण टीएफआर 2 और शहरी क्षेत्रों में 1.6 है, तो हमें यह सवाल करने की जरूरत है कि क्या बेटों को ज्यादा पसंद करने की प्रवृत्ति शहरी भारत की है? इस पर विस्तार से अध्ययन करने की जरूरत है. यह एक हाइपोथीसिस है जिसे खोजे जाने की भी जरूरत है. सिर्फ जनगणना इस सिलसिले में हमारी मदद कर सकती है.”
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