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उड़ीसा (Odisha) में सरकार के खिलाफ कोई मतभेद, कोई विद्रोह अब तक नहीं था, सिवाय 2012 में एक मामूली कोशिश दिखी, जिसे शुरुआत में ही नाकामयाब कर दिया गया था. राज्य के सीएम नवीन पटनायक (Naveen Patnaik) ने अपनी पार्टी के सांसदों और विधायकों की अटूट वफादारी की कमान संभाली.
यह नवीन पटनायक के 'व्यक्तित्व के बल पर' नेतृत्व को बयां करता है, जिन्होंने अन्य राज्यों में जैसा भी प्रदर्शन किया लेकिन पिछले 24 साल में ओडिशा का नेतृत्व करने का मौका कभी नहीं गंवाया है और वे अभी भी अपने छठे कार्यकाल की तैयारी कर रहे हैं. भारतीय राजनीति के इतिहास में वास्तव में यह एक दुर्लभ रिकॉर्ड है.
यह सुनने में जितना अजीब है, वास्तव में भी ऐसा ही है कि जो व्यक्ति उड़िया बोल नहीं पाता, हालांकि, उसके हर शब्द को समझता है, उस व्यक्ति का आबादी पर अभी भी इतना बोलबाला है.
रोमन लिपि में लिखी गई उनकी लड़खड़ाती उड़िया आज भी उनके समर्थकों को भाती है. इतने लंबे समय तक सत्ता में रहने के बावजूद न तो उड़िया लोगों को उनके मातृभाषा के ज्ञान की कमी से फर्क पड़ा है और न ही वह भाषा सीखने की जहमत उठाने के प्रयास करते नजर आते हैं. कई लोग कहते हैं कि ऐसा जानबूझकर किया गया है कि कहीं इससे उनकी छवि धुंधली न हो जाए. जो भी हो, वह हैं तो जनता के नेता.
अपने पिता बीजू पटनायक के निधन के बाद 1997 में 52 साल के नवीन बिना मन से राजनीति में आए. वे अल्पभाषी और समझदार व्यक्ति हैं.
27 साल पहले लेखक के साथ एक टेलीफोनिक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि उन्होंने 'बैचलर ऑफ आर्ट्स' किया था. नवीन जिसने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से इतिहास की पढ़ाई की. उन्होंने बेहद आकर्षक स्वभाव, सेंस ऑफ ह्यूमर और साफ अंग्रेजी बोलचाल से अपनी अलग पहचान बनाई.
ऐसे सफल राजनेता, जिन्होंने कभी हार का स्वाद नहीं चखा, वो क्यों ओडिशा में होने वाले दो चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन को लेकर बैकफुट पर चला गया?
क्या उन्होंने अपने जमीनी कार्यकर्ताओं पर भरोसा खो दिया है या क्या वे एंटी इनकमबेंसी, गुटबाजी या बीजू जनता दल (बीजद) के कट्टर वफादारों के पलायन से चिंतित हैं? क्या यह मोदी लहर है, जिसे रोकने के लिए वे संघर्ष कर रहे हैं? शायद, नवीन पटनायक का यह रवैया इन सभी कारकों का एक मिश्रण है.
इससे पहले कभी भी बीजेडी नेतृत्व ने टिकटों के बंटवारे को लेकर इतना जूझना नहीं पड़ा, जितना इस बार हुआ है. पटनायक ने पार्टी के 12 मौजूदा सांसदों में से आठ और 111 में से 39 विधायकों के टिकट काटे हैं. जबकि विधानसभा के लिए उम्मीदवारों की पूरी सूची जारी करने की कवायद अभी भी पूरी नहीं हुई है.
एक पार्टी जो टिकट देने के लिए उम्मीदवारों के सावधानी और करीब से मूल्यांकन के लिए जानी जाती थी, जाहिर तौर पर चुनाव से कम से कम कुछ महीने पहले इस बार उसके लिए चुनौती कठिन लग रही है.
दूसरी तरफ, बीजेपी ने भी बीजेडी के अधिकांश मौजूदा सांसदों और विधायकों को अपने पाले में लाने का यही तरीका अपनाया है, जिन्हें टिकट से वंचित कर दिया गया है. यह अलग बात है कि नवीन पटनायक ने अपने कुछ मौजूदा विधायकों की सीट को उनके परिजनों से बदल दिया है और उन पर वंशवादी राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप है, जिसका वह भी हिस्सा हैं.
बीजू पटनायक की विरासत ही बेशक बीजेडी को हर चुनाव जीतने में मदद करती है. यह विडंबना हो सकती है कि नवीन पटनायक ने बीजू जनता दल से कट्टर वफादारों या पुराने लोगों, जिनमें से कई मर चुके हैं, को व्यवस्थित तरीके से बाहर कर दिया और अपने अधिकार या कार्यशैली पर सवाल उठाए बिना 'हां में हां मिलाने वाले' लोगों को पार्टी में शामिल कर लिया. बीजेडी ने गंभीर बदलाव किया है.
हमेशा की तरह दोनों दल ओडिशा में सत्ता में आने के बाद नंबर एक राज्य बनाने का वादा करते हैं. बीजेपी ने पांच साल और अगले 12 साल में बीजेडी ने विकास की बात कही है. नवीन पटनायक ने विकास में बाधा डालने का आरोप लगाकर विपक्षी दलों को फटकार लगाते हुए कहा, "विकास हमारी पहचान है."
अपनी सरकार द्वारा शुरू किए गए कल्याणकारी उपायों को सूचीबद्ध करने के अलावा नवीन ने घोषणा की कि "युवा बजट" पेश किया जाएगा, जो युवाओं को आकर्षित करने के स्पष्ट इरादे के साथ औद्योगिक निवेश, रोजगार सृजन और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करेगा.
बीजेडी के विकास के मुद्दे को खारिज करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि ओडिशा ने नवीन पटनायक सरकार के दौरान बढ़ती बेरोजगारी, पलायन, पेयजल संकट, कृषि में विफलता, खनिज संसाधनों की लूट और बिगड़ती कानून व्यवस्था सहित अन्य चीजों 25 साल का समय गवां दिया.
दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने गुरुवार को सांसद और विधायक उम्मीदवारों के साथ एक बंद कमरे की बैठक में स्वीकार किया था कि राज्य में पार्टी कार्यकर्ताओं और नेतृत्व के बीच भ्रम था कि बीजेडी के साथ 'दोस्ताना संबंध' हैं, लेकिन बीजेपी को सत्ता में लाने के लिए सभी को अपना सर्वश्रेष्ठ देने का आह्वान करते हुए इसे खारिज कर दिया गया था. यह स्पष्टीकरण किसी भी चमत्कार होने की उम्मीद के सूरज ढलने के बाद आया है.
(श्रीमॉय कर ओडिशा स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह एक ओपिनियन पीस है और ऊपर व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं। क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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