advertisement
हाल के दिनों में हुई विपक्षी नेताओं की बैठकों ने एक बार फिर से 2024 के लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024) में NDA के खिलाफ गठबंधन की उम्मीदें बढ़ा दी हैं. इस बार इन बैठकों में प्रमुख चेहरे के रूप में बिहार के मुख्यमंत्री और JDU के नेता नीतीश कुमार (Nitish Kumar) भी शामिल हुए हैं. पिछले दिनों नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात की. इस दौरान आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी मौजूद थे.
NCP के अध्यक्ष शरद पवार ने भी मल्लिकार्जुन खड़गे, राहुल गांधी और कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल से मुलाकात की. अडानी-हिंडनबर्ग मुद्दे पर पवार के कांग्रेस से अलग रुख अपनाने के कुछ दिनों बाद यह बैठक अहम हो गई है.
ताजा उथल-पुथल को देखते इस आर्टिकल में हम तीन सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे. विपक्षी खेमे में क्या चल रहा है? विपक्षी एकता के मिशन में नीतीश कुमार अचानक एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में क्यों उभरे हैं? 2024 के लिए एक मजबूत बीजेपी विरोधी गठबंधन की क्या गुंजाइश है?
विपक्ष में बहुत स्पष्ट समझ है कि उन्हें 2024 के चुनावों के लिए एक साथ आने की जरूरत है क्योंकि उन्हें लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक और कार्यकाल से एनडीए का भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं पर बहुत हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है. पिछले दिनों हुई तीन घटनाओं ने इस आशंका को बढ़ा दिया है.
मानहानि मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि और उसके बाद उनकी अयोग्यता.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी और कथित शराब घोटाले के सिलसिले में BRS की नेता के कविता की गिरफ्तारी संभव है.
रामनवमी के मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा का भड़कना.
एनसीपी के एक नेता ने द क्विंट से बात करते हुए कहते हैं कि विपक्षी नेताओं को परेशान किया जा रहा है. देश भर में सांप्रदायिक हिंसा फैलाई जा रही है. हमें अपने व्यक्तिगत अहंकार से ऊपर उठने की जरूरत है. इसलिए ये प्रयास शुरू किए गए हैं.
द क्विंट ने पहले रिपोर्ट किया था कि अडानी-हिंडनबर्ग मुद्दे पर कांग्रेस के साथ पवार की 'असहमति' और पीएम मोदी की डिग्रियों पर AAP का स्टैंड विपक्षी दलों के ब्रेक के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि उन मुद्दों पर एक कॉल के रूप में देखा जाना चाहिए जो वास्तव में बीजेपी को हराने में मदद करें.
जनगणना के मुद्दे पर DMK नेता और तमिलनाडु के CM एमके स्टालिन द्वारा विपक्ष को एकजुट करने का एक प्रयास शुरू किया गया है. 3 अप्रैल को स्टालिन द्वारा ऑल इंडिया फेडरेशन फॉर सोशल जस्टिस (AIFSJ) के जरिए जातिगत जनगणना (Caste Census) की मांग को उठाने के लिए एक सम्मेलन आयोजित किया गया.
इसमें राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन, उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम अखिलेश यादव, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव, कर्नाटक के पूर्व सीएम एम वीरप्पा मोइली, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (M) के महासचिव सीताराम येचुरी, भाकपा महासचिव डी. राजा, विदुथलाई चिरुथिगल काची प्रमुख थोल थिरुमावलन, वरिष्ठ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता छगन भुजबल और राज्यसभा सदस्य डेरेक ओ'ब्रायन शामिल थे.
कयास लगाए जा रहे हैं कि विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों में नीतीश कुमार सबसे आगे हैं और वो इस प्रयास के मुख्य आधार के रूप में क्यों उभर रहे हैं?
इसका उत्तर विभिन्न गैर-एनडीए दलों के सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के साथ अलग-अलग समीकरणों में निहित है.
गैर-एनडीए दलों को मोटे तौर पर चार भागों में बांटा जा सकता है.
कांग्रेस के सहयोगी - DMK, RJD, JD-U, JMM, NCP, JD-U, IUML, MDMK, VCK, उद्धव ठाकरे की शिवसेना, नेशनल कॉन्फ्रेंस आदि.
कांग्रेस विरोधी से अधिक बीजेपी विरोधी दल- समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी दल, एआईयूडीएफ, जेकेपीडीपी, आम आदमी पार्टी और भारतीय राष्ट्र समिति इस लिस्ट में शामिल हैं.
ऐसी पार्टियां जो कांग्रेस और बीजेपी दोनों से दूर हैं - टीडीपी, बहुजन समाज पार्टी, जनता दल सेक्युलर, AIMIM और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी.
वे दल जो बीजेपी विरोधी से अधिक कांग्रेस विरोधी हैं- YSCRP, BJD, शिरोमणि अकाली दल
मौजूदा वक्त में कांग्रेस के पास सेकेंड कैटेगरी पार्टियों का भी समर्थन नहीं है. उनमें से किसी ने भी सार्वजनिक रूप से कांग्रेस के साथ चुनाव से पहले गठबंधन की ख्वाहिश नहीं जताई है.
यहीं से नीतीश कुमार तस्वीर में उभरकर आते हैं. दूसरी, तीसरी और यहां तक कि चौथी कैटेगरी की कई पार्टियों से उनके अच्छे संबंध हैं. जो दल कांग्रेस से बात नहीं करना चाहते, वे नीतीश कुमार के साथ बातचीत के लिए तैयार हो सकते हैं.
सूत्रों का कहना है कि बैठकों में यह प्रस्ताव रखा गया था कि विपक्ष यह सुनिश्चित करे कि जितनी सीटों पर संभव हो, बीजेपी के खिलाफ एक ही विपक्षी उम्मीदवार हो. इस तरह की कोशिशें अतीत में भी हुई हैं.
इंदिरा गांधी द्वारा लगाए आपातकाल के बाद साल 1977 में, जनता पार्टी बनाने के लिए विभिन्न विपक्षी दलों का विलय हुआ था.
साल 1989 में, राजीव गांधी के खिलाफ बीजेपी और वाम दोनों ने चुनाव के बाद वीपी सिंह सरकार को समर्थन दिया था.
साल 2004 में कांग्रेस तमिलनाडु, बिहार और आंध्र प्रदेश जैसे प्रमुख राज्यों में विपक्ष को एकजुट करने में कामयाब रही.
विपक्षी गुट में सुझाव दिया गया है कि गैर-बीजेपी दलों के बीच मुकाबलों की संख्या को कम करने की जरूरत है.
AAP के एक सीनियर लीडर ने द क्विंट को बताया कि हम लंबे वक्त में राष्ट्रीय स्तर पर विकास करना चाहते हैं. लेकिन अभी इस सरकार से देश को बचाने की जरूरत है.
अब तक बिहार, महाराष्ट्र, झारखंड और तमिलनाडु जैसे राज्यों में ज्यादातर गैर-बीजेपी पार्टियां एकजुट हैं. हालांकि कुछ राज्यों में एकजुटता हासिल करना आसान नहीं होगा.
उत्तर प्रदेश में एसपी, बीएसपी और कांग्रेस
पश्चिम बंगाल में टीएमसी और लेफ्ट-कांग्रेस
पंजाब, दिल्ली, गुजरात और गोवा में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस
कर्नाटक में कांग्रेस और जेडी-एस
हाल की घटनाएं बताती हैं कि यह आसान नहीं होगा. पिछले हफ्ते, शरद पवार ने अडानी मुद्दे पर कांग्रेस के साथ और पीएम मोदी की डिग्रियों पर AAP के साथ असहमति जताई थी. इसके अलावा उद्धव ठाकरे की पार्टी ने वीडी सावरकर पर कांग्रेस के कटाक्ष की निंदा की थी.
कहा जाता है कि हाल की चर्चाओं के दौरान, शरद पवार ने इस बात पर जोर दिया कि मूल्य बढ़ोतरी, नौकरियों और किसान संकट जैसे मुद्दों पर ध्यान देना राजनीतिक रूप से सबसे जरूरी होगा.
दूसरा सवाल यह है कि इस विपक्षी गठबंधन का चेहरा कौन होगा? ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, नीतीश कुमार, के चंद्रशेखर राव जैसे कई नेताओं की प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश है. कांग्रेस भी राहुल गांधी से आगे जाने के पक्ष में नहीं दिख रही है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined