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इस साल मार्च में गोरखपुर और फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में इसकी झलक मिली थी कि दो बिछड़े यार मिल जाएं तो मोदी जी के जश्न में पानी फेर सकते हैं. पर ये झलक आधी-अधूरी सी थी. लेकिन पिछले हफ्ते कर्नाटक में जिस तरह से विपक्ष की सभी बड़ी पार्टियों ने एक दूसरे की हौसला अफजाई की उससे इतना तो साफ हो गया है कि अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी के सामने विपक्ष बिखरा नहीं होगा.
कौन इसकी अगुवाई करेगा, किस नेता के नाम पर सहमति होगी, कौन सी पार्टी कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी, उन राज्यों में क्या होगा, जहां कांग्रेस का मुकाबला बीजेपी से नहीं बल्कि रीजनल पार्टियों से ही है. ये सारे अनसुलझे सवाल हैं. लेकिन इतना तय है कि 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को सामूहिक विपक्ष की चुनौती मिलेगी. इससे बीजेपी की सेहत पर कितना असर होगा?
बीजेपी के पक्ष में बोलने वालों का जवाब होगा- कोई फर्क नहीं पड़ेगा. और उनकी दलीलें कुछ इस तरह की होंगी.
2014 में 70 से ज्यादा सीटों पर वोटर टर्नआउट पिछले चुनाव के मुकाबले 15 परसेंट से ज्यादा रहा. इनमें से 67 सीटों पर बीजेपी और उसके सहयोगियों को जीत मिली. कहने का मतलब यह है कि जिन इलाकों में ज्यादा नए वोटर्स ने मतदान किया वहां बीजेपी को अपार सफलता मिली. इसकी वजह मोदी प्रीमियम है जिसका जादू अब भी बरकरार है.
2014 में बीजेपी की जीत कितनी दमदार थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां पूरे देश में विनर और रनर अप के बीच वोट का औसत अंतर 15 परसेंट का रहा, वहीं जिन सीटों पर बीजेपी की जीत हुई वहां विनर और रनर अप के बीच का औसत अंतर 18 परसेंट का रहा. कई सीटों पर तो बीजेपी के जीतने वाले उम्मीदवार को 50 परसेंट से ज्यादा वोट मिले. वहां सारे विरोधियों के मिलने से कोई फर्क पड़ेगा क्या?
ये रिकॉर्ड अपने आप में इतने दमदार हैं कि इसमें थोड़ी कमी आने के बावजूद बीजेपी के नंबर में बड़ा अंतर मुमकिन नहीं लगता है.
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लेकिन इंडेक्स ऑफ अपोजिशन यूनिटी की बात करने वाले इसका ठीक उलट तर्क देते हैं. इंडेक्स ऑफ अपोजिशन यूनिटी यानी सत्ता को चैलेंज करने वालों में कितनी एकता है. जितनी ज्यादा एकता होगी, सत्ता पक्ष को अपनी कुर्सी बचाने में उतनी ही मुसीबत बढ़ने वाली है. अगर विपक्षी एकता काफी बढ़ती है तो बीजेपी को किस तरह की मुश्किलें आ सकती हैं, दूसरे तरफ की दलीलें सुनिए-
माना कि 137 सीटों पर बीजेपी को साझा विपक्ष से ज्यादा नुकसान नहीं होगा. लेकिन इतने भर से काम चल जाएगा क्या.
दोनों पक्षों की दलीलें आपने देखी. विपक्षियों के एक साथ आने से एक बात तो तय है. 2019 में चुनाव का नतीजा अभी से तय नहीं माना जा सकता है.
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(नोट: इस लेख के सभी आकड़े CSDS से लिए गए हैं)
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Published: 23 May 2018,11:51 AM IST