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PM मोदी और अमित शाह की 'तमिलनाडु योजना' 2024 के आम चुनावों में काम करेगी?

अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में पीएम नरेंद्र मोदी के भाषण में कम से कम नौ बार Tamil Nadu का जिक्र था.

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>पीएम मोदी और अमित शाह कि 'तमिलनाडु योजना', क्या 2024 में काम कर सकती है?</p></div>
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पीएम मोदी और अमित शाह कि 'तमिलनाडु योजना', क्या 2024 में काम कर सकती है?

(altered by quint)

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पिछले हफ्ते विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के जवाब ने तमिलनाडु (Tamil Nadu) में बीजेपी (BJP) को नया उत्साह दिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि अपने भाषण में पीएम ने करीब नौ बार तमिलनाडु का जिक्र किया - जिसे तमिलनाडु पर विशेष फोकस देने की उनकी योजना के सबूत के तौर पर देखा जा रहा है.

इससे पहले, नए संसद भवन के उद्घाटन के दौरान, पीएम मोदी ने अध्यक्ष की कुर्सी के पास सेंगोल या चोल युग के राजदंड स्थापित किया था.

राज्य बीजेपी के एक पदाधिकारी ने द क्विंट को बताया, "पीएम मोदी तमिलनाडु की राजनीति को एक नया नैरेटिव दे रहे हैं. हमें विश्वास है कि यह हमें 2024 के लोकसभा चुनावों में राज्य में सफलता दिलाएगा."

पदाधिकारी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को तमिलनाडु की एक सीट से चुनाव लड़ते देखने की भी इच्छा व्यक्त की.

तमिलनाडु के बारे में पीएम मोदी ने क्या कहा?

अविश्वास प्रस्ताव पर अपने जवाब में पीएम मोदी ने तमिलनाडु पर कई बयान दिए:

  • यह दावा करते हुए कि तमिलनाडु का इतिहास कांग्रेस विरोधी है, उन्होंने कहा, "कांग्रेस ने आखिरी बार तमिलनाडु में 1962 में जीत हासिल की थी. 61 साल से तमिलनाडु के लोग कांग्रेस को 'नो कॉन्फिडेंस' कह रहे हैं."

  • "मैं डीएमके में अपने भाइयों को बताना चाहता हूं, मैं कांग्रेस को बताना चाहता हूं. यूपीए को लगता है कि वे अपनी विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए 'इंडिया' नाम का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन कांग्रेस के करीबी सहयोगी के एक नेता, जो तमिलनाडु में मंत्री है, उन्होंने दो दिन पहले कहा था कि भारत का कोई महत्व नहीं है और तमिलनाडु बिल्कुल भी भारत का हिस्सा नहीं है.''

  • ऐसा लगता है कि यह डीएमके मंत्री ईवी वेलु द्वारा दिए गए एक हालिया बयान का संदर्भ था. हालांकि, वेलु ने आरोप लगाया है कि उनकी टिप्पणी को गलत तरीके से पेश किया गया है.

"मैं आज गर्व के साथ कहना चाहता हूं कि तमिलनाडु वह राज्य है जहां राष्ट्रवाद की धारा बही है. जिस राज्य ने हमें राजा जी दिया, हमें कामराज दिया, हमें एमजीआर, अब्दुल कलाम दिया. आज हम उस तमिल नाडु से ऐसे शब्द सुन रहे हैं."
अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

"कोई कांग्रेस से पूछे कि कच्चाथीवू क्या है? उनके अपने सहयोगी - डीएमके - के सीएम मुझे लिखते हैं और कहते हैं 'मोदीजी, कच्चाथीवू वापस ले लो.' कच्चातिवु क्या है? यह तमिलनाडु के तट से परे और श्रीलंका से पहले एक छोटा सा द्वीप है. किसी ने इसे दूसरे देश को दे दिया. क्या यह भारत माता का हिस्सा नहीं था? यह श्रीमती इंदिरा गांधी के नेतृत्व में हुआ."

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तमिलनाडु में बीजेपी की क्या है रणनीति?

बीजेपी का लक्ष्य तमिलनाडु में अपनी खुद की पहचान बनाना है. इसके मूल में एक वैचारिक लड़ाई है.

बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि पार्टी डीएमके को सिर्फ राजनीतिक तौर पर ही नहीं, बल्कि वैचारिक दृष्टिकोण से भी चुनौती देने की योजना बना रही है.

तमिलनाडु में पार्टी के मामलों से करीब से जुड़े एक बीजेपी नेता ने खुलासा किया, "यह विचार अलगाव की उस कहानी को चुनौती देने का है जिस पर डीएमके जैसी पार्टियां जोर दे रही हैं."

यह डीएमके मंत्री के खिलाफ पीएम मोदी के आरोपों से स्पष्ट था.

वैचारिक चुनौती देने में तमिलनाडु की राजनीति पर द्रविड़ आंदोलन के वर्चस्व को चुनौती देना भी शामिल है.

अपने भाषण में, पीएम मोदी ने तमिलनाडु के उन प्रमुख हस्तियों का ध्यानपूर्वक उल्लेख किया जो द्रविड़ आंदोलन से जुड़े नहीं हैं, जैसे सी राजगोपालाचारी और एपीजे अब्दुल कलाम. हालांकि इसमें एमजी रामचन्द्रन एक प्रमुख अपवाद थे.

हालांकि एआईएडीएमके, पीएमके और तमिल मनीला कांग्रेस के साथ गठबंधन खत्म करने की कोई योजना नहीं है, लेकिन बीजेपी गठबंधन में अधिक प्रभावी भूमिका निभाना चाहती है.

क्या बीजेपी की रणनीति काम कर सकती है?

इसमें कोई शक नहीं है कि पीएम मोदी के बयानों के साथ-साथ राज्य इकाई प्रमुख के. अन्नामलाई की सक्रिय भूमिका के माध्यम से बीजेपी तमिलनाडु में कुछ शोर पैदा करने में कामयाब रही है.

पार्टी को यह भी उम्मीद है कि 2019 की तुलना में स्थिति थोड़ी बदल गई है क्योंकि उस समय AIADMK के नेतृत्व वाले शासन के खिलाफ नाराजगी अपने चरम पर थी.

हालांकि, इन वजाहों से तमिलनाडु में अपनी 'पहचान' बनाना कोई आसान काम नहीं है.

राज्य में बीजेपी का कोई बहुत मजबूत संगठनात्मक आधार नहीं है. कई जिलों में उसके पास उचित बूथ-स्तरीय समितियां नहीं हैं.
  • इसके अलावा द्रविड़ पार्टियों का प्रभुत्व बिल्कुल भी कमजोर नहीं हुआ है और बीजेपी एक सीमा से आगे सीधे वैचारिक टकराव से निपटने में सक्षम नहीं हो सकती है.

  • फिर, 2019 में अपनी लहर के चरम पर भी पीएम मोदी की तमिलनाडु में खराब अप्रूवल रेटिंग थी. हालांकि मोदी ने राज्य में अपनी छवि को बढ़ावा देने में व्यक्तिगत रुचि ली है, लेकिन यह देखना बाकी है कि वह कितना सफल रहे हैं.

  • एक और पहलू जो बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है वह है तमिलनाडु के वर्तमान राज्यपाल की विवादास्पद भूमिका और राज्य सरकार के साथ उनका टकराव.

  • अपनी मौजूदगी के बावजूद, बीजेपी तमिलनाडु में AIADMK के संगठनात्मक आधार पर काफी हद तक निर्भर है. आधार के साथ-साथ संगठन के मामले में, DMK के नेतृत्व वाला गठबंधन, जिसमें कांग्रेस, MDMK, VCK, वामपंथी दल और IUML शामिल हैं, एनडीए से अधिक मजबूत है.

क्या तमिलनाडु की किसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं पीएम मोदी?

अटकलें लगाई जा रही हैं कि पीएम मोदी 2024 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु की किसी सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. संभावित निर्वाचन क्षेत्र जिनके नाम चर्चा में थे, वे थे कोयंबटूर, कन्याकुमारी और रामनाथपुरम. ये सीटें वर्तमान में क्रमशः वामपंथियों, कांग्रेस और आईयूएमएल के पास हैं.

उनमें से बीजेपी की राज्य इकाई कोयंबटूर और कन्याकुमारी को पसंद करती है क्योंकि रामनाथपुरम की तुलना में इन दो सीटों पर बीजेपी का अधिक ठोस आधार है, जहां वह AIADMK पर ज्यादा निर्भर होगी.

हालांकि, यह अभी भी अटकलों के दायरे में है. संभव है कि तमिलनाडु में पीएम मोदी को लेकर माहौल बनाने के लिए बीजेपी नेतृत्व खुद इन अफवाहों को हवा दे रहा हो.

इस पर अंतिम फैसला चुनाव के करीब मौजूदा परिस्थितियों के आधार पर होगा.

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