advertisement
कर्नाटक में राहुल गांधी ने ताल ठोककर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दी वो नीरव मोदी के घोटाले के बारे में बोलकर दिखाएं, हिम्मत है तो येदियुरप्पा और रेड्डी भाइयों के भ्रष्टाचार के बारे में दिल खोलकर बोलें?
सबके पास एक ही फॉर्मूला है चुनौती ऐसी दो जिसकी गारंटी हो कि पूरी नहीं होगी. जैसे दीवार के विजय ( अमिताभ बच्चन) ने इंस्पेक्टर बने शशिकपूर को चुनौती दी थी कि वो अपराध स्वीकार करने वाले कागज में दस्तखत को तैयार हैं, लेकिन पहले फलाने दस्तखत लेकर आओ. शशिकपूर ने चुनौती मंजूर नहीं की. बस मौके का फायदा उठाकर अमिताभ ने भी दस्तखत नहीं किए.
इसी तरह कर्नाटक के लोग भी जानते हैं कोई किसी की चुनौती स्वीकार ही नहीं करेगा, चुनाव खत्म होते होते सब की सब सरकारी प्रोजेक्ट की तरह पेंडिंग ही रह जाएंगी.
ये भी पढ़ें- कर्नाटक में पीएम मोदी और राहुल गांधी क्यों है आमने-सामने
एक मोहल्ले के दो पड़ोसियों के बीच झगड़ा होता था पर मोहल्ले में अपनी धाक बनाए रखने के लिए दोनों मिलकर एक अनोखा तरीका करते थे. दोनों अलग अलग मौकों पर रात के अंधेरे एक दूसरे को धमकाते ‘दम है तो बाहर निकल’, अगली बार ठीक यही दूसरा पड़ोसी भी करता. इस तरह दोनों का रुतबा बना रहता था, पर जब ये ज्यादा होने लगा तो लोग बोर हो गए और उन्होंने इस पर ध्यान देना ही छोड़ दिया.
राहुल गांधी ने कुछ दिन पहले कर्नाटक में हुंकार भरी कि अगर उन्हें संसद में 15 मिनट लगातार बोलने का मौका मिल जाए तो वो प्रधानमंत्री मोदी से नीरव मोदी, मेहुल चोकसी वगैरह पर ऐसे सवाल पूछेंगे कि वो उनके सामने खड़े नहीं रह पाएंगे. पीएम मोदी इस चुनौती पर कुछ नहीं बोले. पर उन्होंने राहुल पर चुनौती उछाल दी.
कांग्रेस अपने अध्यक्ष की चुनौती की अनदेखी से तिलमिला गई. गुस्से में नई चुनौती दे डाली कि पीएम मोदी जी 15 सेकेंड बिना झूठ बोले भाषण देकर बताएं? कांग्रेस से ये कौन पूछे कि कर्नाटक सरकार के कामकाज पर चुनाव है, इसलिए 15 मिनट में सिद्धारमैया सरकार की उपलब्धियों का बखान कर डालिए इसमें दिक्कत क्या है? लेकिन राहुल और कांग्रेस दोनों इस पर चुप्पी मार गए.
जनता दल सेक्युलर भी चुनौती की इस जंग में पिछड़ना नहीं चाहता इसलिए पार्टी के नेता और पूर्व पीएम एच डी दैवेगौड़ा ने सीएम सिद्धारमैया को चुनौती दी कि वो चामुंडेश्वरी से जीतकर बताएं? सिद्धा ने चुनौती स्वीकार कर ली, पर लगा कि ज्यादा जोखिम हो जाएगा तो एक और सीट से पर्चा दाखिल कर दिया.
चुनौतियों का अंबार लगता जा रहा है. पिछली चुनौती का कोई हिसाब-किताब नहीं ले रहा है और हर रोज नई चुनौती सामने आती जा रही है. मुश्किल बात ये है कि सब की सब पेंडिंग हैं. गारंटी है कि कर्नाटक चुनाव खत्म हो जाएंगे पर सारी चुनौतियां धरी रह जाएंगी. वोटर को भी इन चुनौतियों से मतलब नहीं, क्योंकि उसे मालूम है कि जब सरकारें बरसों बरस फाइलों पर बैठी रह जाती हैं तो चुनौतियों का क्या अचार डालेंगे.
अगर उन्हें पीएम या राहुल स्वीकार कर भी लेते हैं तो उससे जनता की क्वालिटी ऑफ लाइफ में कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है.
बस चुनाव खत्म हो जाने हैं, ये चुनौतियां यहीं रख जानी हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 03 May 2018,04:35 PM IST