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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) की पिछले हफ्ते तमिलनाडु (Tamil Nadu) के तिरुचिरापल्ली (Tiruchirappalli) की यात्रा के बाद, अटकलें तेज हो रही हैं कि पीएम दक्षिणी राज्य की किसी सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं. लेकिन वे तमिलनाडु से क्यों लड़ सकते हैं? इसमें क्या जोखिम हो सकते हैं और बीजेपी नेताओं का इस पर क्या कहना है, आइए सब समझते हैं.
तमिलनाडु से बीजेपी के एक पूर्व विधानसभा उम्मीदवार ने द क्विंट को बताया कि यह कदम राज्य में बीजेपी के लिए दरवाजे खोल सकता है. उन्होंने कहा कि, "अगर पीएम मोदी तमिलनाडु की किसी सीट से चुनाव लड़ते हैं, तो उनकी जीत की गारंटी है. तमिलनाडु के लोग भावुक हैं. जब वे देखेंगे कि पीएम राज्य को अपना राजनीतिक घर बनाना चाहते हैं, तो वे सकारात्मक प्रतिक्रिया देंगे."
द क्विंट से बात करते हुए, तमिलनाडु बीजेपी के उपाध्यक्ष नारायणन तिरुपति ने कहा:
हालांकि, उन्होंने कहा कि "इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है. केवल मीडिया अटकलें हैं."
39 सांसदों के साथ, तमिलनाडु लोकसभा सीटों के मामले में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल के बाद चौथा सबसे बड़ा राज्य है. यह देश में बीजेपी के सबसे कमजोर राज्यों में से एक भी है.
पिछले 20 सालों में, बीजेपी तमिलनाडु में केवल एक लोकसभा सीट - 2014 के लोकसभा चुनाव में कन्याकुमारी सीट जीतने में सफल रही है. इसलिए, बीजेपी के लिए राज्य में अपनी स्थिति में सुधार करना आसान नहीं होगा.
हालांकि, तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई ने सकारात्मकता के साथ कहा कि, "तमिलनाडु में बीजेपी की मजबूत उपस्थिति है. उनके मुताबिक, बीजेपी ने राज्य में अपना आधार बना लिया है और लोकसभा चुनाव में यह कई लोगों को चौंका सकती है. ऐसे में पीएम मोदी के तमिलनाडु की किसी सीट से चुनाव लड़ने की चर्चा राज्य में बीजेपी कैडर का मनोबल बढ़ा रही है. पार्टी नेताओं का कहना है कि यह अच्छी बात है, भले ही यह कदम सफल हो या नहीं.
चर्चा यह है कि प्रधानमंत्री तीन निर्वाचन क्षेत्रों- कोयंबटूर, रामनाथपुरम या कन्याकुमारी- में से किसी एक जगह से चुनाव लड़ सकते हैं, और दूसरी सीट उत्तर से होगी जो संभवतः उत्तर प्रदेश में वाराणसी या अयोध्या है.
मोदी वर्तमान में वाराणसी से सांसद हैं लेकिन ऐसी अटकलें हैं कि राम मंदिर की भावना को भुनाने के लिए वह अयोध्या का रुख कर सकते हैं.
जहां तक तमिलनाडु की बात है, कोयंबटूर, रामनाथपुरम और कन्याकुमारी ही ऐसी सीटें हैं जहां बीजेपी के पास जनाधार है, क्योंकि बीजेपी 2014 में कन्याकुमारी जीतने में कामयाब रही, तब भी जब वह एआईएडीएमके के साथ गठबंधन में नहीं थी.
हालांकि, कन्याकुमारी में ईसाई आबादी 30 प्रतिशत से अधिक है. इसलिए, काफी हद तक ईसाई समूहों के बीच बीजेपी की पहुंच पर निर्भर करेगा कि ये प्रयोग सफलता होता है या नहीं.
रामनाथपुरम निर्वाचन क्षेत्र को लेकर चर्चा जोरों पर हैं जहां वर्तमान में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल) से नवाज कानी सांसद हैं. इस निर्वाचन क्षेत्र में बड़ी संख्या में मुस्लिम आबादी है साथ ही रामेश्वरम मंदिर भी है.
विशेषज्ञों का कहना है कि पार्टी 2019 के चुनावों में दूसरे स्थान पर रही थी. देश के 12 ज्योतिर्लिंगों (शिव मंदिर स्थलों) में से एक रामनाथस्वामी मंदिर के कारण रामेश्वरम हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है. पीएम मोदी के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर है.
रामनाथपुरम और कन्याकुमारी दोनों जगह मछली पकड़ने वाला समुदाय बड़ी संख्या में हैं. अगस्त 2023 में, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन की टिप्पणी कि केंद्र ने राज्य के मछली पकड़ने वाले समुदाय के लिए बहुत कम काम किया है- बीजेपी के राज्य प्रमुख के अन्नामलाई ने इस पर कहा था कि, पीएम मोदी की वजह से ही रामनाथपुरम जिले में धनुषकोडी का विकास हुआ था, उन्होंने दावा किया था कि 1964 की बाढ़ से तबाह होने के बाद से इसपर किसी ने ध्यान नहीं दिया था.
इसके अलावा, राज्यभर में उनकी 'एन मन एन मक्कल' पदयात्रा जुलाई में रामनाथपुरम से शुरू हुई थी, जिससे इन अटकलों को और बल मिला कि पीएम वहां से चुनाव लड़ेंगे. गृह मंत्री अमित शाह ने भी, उस समय राज्य की अपनी एक यात्रा में, भविष्य में एक "तमिल पीएम" की वकालत की थी.
कोयंबटूर में भी, बीजेपी की ऐतिहासिक रूप से कुछ उपस्थिति रही है. पिछले दो लोकसभा चुनावों में बीजेपी को 30 प्रतिशत से अधिक वोट मिला है. 2014 में, वह एआईएडीएमके के समर्थन के बिना भी ऐसा करने में कामयाब रही थी. यहां 1990 के दशक में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का इतिहास रहा है. आरोप है कि 1998 में कोयंबटूर में हुए विस्फोटों का टारगेट बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी थे. पीएम मोदी तब बीजेपी के प्रमुख केंद्रीय पदाधिकारी थे.
जब कांग्रेस नेताओं- इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी- ने दक्षिण से चुनाव लड़ा, तो उनकी पार्टी के पास पहले से ही क्षेत्र में पर्याप्त वोट था. लेकिन तमिलनाडु में बीजेपी का वोट शेयर सिंगल डिजिट में है. इससे पार्टी के लिए समस्या खड़ी हो गई है.
द क्विंट से बात करते हुए, वरिष्ठ पत्रकार कविता मुरलीधरन ने कहा कि, "तमिलनाडु अलग है - और बीजेपी के लिए यहां सेंध लगाना बहुत मुश्किल होगा. बीजेपी चाहती थी कि पीएम रामनाथपुरम से चुनाव लड़ें क्योंकि रामेश्वरम इसके अंतर्गत आता है. लेकिन ऐसा हुआ तो ये बहुत बड़ा जोखिम होगा."
उनके अनुसार, विवाद के कुछ मुद्दे रहे हैं - जैसे एनईईटी मुद्दा, राज्यपाल-सरकार के बीच खींचतान और संघवाद के मुद्दे - जो बीजेपी के लिए नकारात्मक हैं. तमिलनाडु में मजबूत द्रविड़ राजनीति की मौजूदगी एक और फैक्टर है.
पार्टी के एक रणनीतिकार ने द क्विंट को बताया, "(द्रविड़) राजनीति के इस पहलू ने जातिगत दुश्मनी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है. बीजेपी एकमात्र पार्टी है जो इसके खिलाफ खड़ी है." अगर पीएम मोदी तमिलनाडु की किसी सीट से चुनाव लड़ते हैं, तो उनके सामने एक बड़ा जोखिम सत्तारूढ़ डीएमके द्वारा उनके खिलाफ एक मजबूत राज्य-स्तरीय नेता या मंत्री को खड़ा करने का है.
लोकसभा में सेनगोल को स्थापित करने पर जोर देने से लेकर पीएम मोदी के लगातार तमिलनाडु दौरे और डीएमके के साथ बढ़ते वैचारिक लड़ाई तक, सभी संकेत बताते हैं कि बीजेपी राज्य में एक बड़ा कदम लेने की योजना बना रही है.
उनका कहना है कि तमिलनाडु में पैठ बनाने के लिए बीजेपी को गठबंधन सहयोगी की मदद की जरूरत होगी और अब जब एआईएडीएमके ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया है, तो अब मुश्किल ज्यादा है.
तमिलनाडु बीजेपी के राज्य उपाध्यक्ष नारायणन तिरुपति ने कहा कि, "पीएम का तमिलनाडु से चुनाव लड़ने पर स्वागत है. वह भारत में कहीं से भी चुनाव लड़ सकते हैं - न केवल तमिलनाडु से. लेकिन अभी तक, हमारे पास कोई आधिकारिक बयान नहीं है. आलाकमान से इस बारे में कोई आधिकारिक चर्चा नहीं हुई है."
सुमंत रमन ने कहा: "एआईएडीएमके के बिना, वे [बीजेपी] मुसीबत में होंगे. गठबंधन तोड़ना एक बुरा विचार था. गठबंधन तोड़ने के बाद, उनके पास अकेले जाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है - या कुछ छोटे दलों को शामिल कर सकते हैं. वे तमिलनाडु में कुछ भी जीतने में सक्षम नहीं हो सकते हैं जब तक कि वे कुछ कट्टरपंथी नहीं करते हैं, जैसे कि मोदी का चुनाव लड़ना. लेकिन यह भी जोखिम भरा है."
लेकिन नारायणन तिरुमूर्ति का कहना है कि "गठबंधन का फैसला केवल चुनाव के दौरान या चुनाव के करीब ही होता है."
उन्होंने आगे कहा कि, "चुनावों की घोषणा होने में अभी समय है. फिर भी, तमिलनाडु में बीजेपी अकेले चुनाव का सामना करने के लिए तैयार है और हमने अपनी बूथ समितियों का गठन लगभग पूरा कर लिया है. हमारा संगठन बहुत मजबूत है. हमारी आंतरिक पार्टी की ताकत बहुत मजबूत है."
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