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राष्ट्रपति चुनाव (President Election) को लेकर दिल्ली में 16 पार्टियों के प्रतिनिधियों की बैठक हुई. बुलावा ममता बनर्जी का था. करीब 20 से ज्यादा पार्टियों को न्यौता दिया गया, लेकिन कुछ ने आने से मना कर दिया. हालांकि शरद पवार (Sharad Pawar) , मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) सहित कई बड़े नेता शामिल हुए. उम्मीदवारों के नामों पर चर्चा भी हुई. लेकिन कोई एक नाम फाइनल नहीं हो पाया. ऐसे में समझते हैं कि मीटिंग का आउटकम क्या निकला और कुछ पार्टियों ने दूरी क्यों बना ली?
दिल्ली में कॉन्स्टीट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया में टीएमसी (TMC), कांग्रेस, सीपीआई (CPI), सीपीआई(एम), सीपीआईएमएल, आरएसपी, शिवसेना, एनसीपी (NCP), आरजेडी (RJD), एसपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी, जेडीएस (JDS), डीएमके, आरएलडी, आईयूएमएल और जेएमएम (JMM) के नेता पहुंचे. 3 बजे से शुरू हुई मीटिंग करीब 2 घंटे चली. लेकिन किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पाई.
बैठक में सभी विपक्षी दलों ने मिलकर कहा की हम बीजेपी के खिलाफ लड़ेंगे. सभी पार्टियों ने शरद पवार के नाम पर सहमति दी है. लेकिन शरद पवार ने कहा कि वे अपने स्वास्थ्य के कारण उम्मीदवार नहीं बनेंगे. इसके बाद सभी दलों ने उनसे अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया.
अगर शरद पवार हां कर देते तो शायद अब तक विपक्ष को उम्मीदवार मिल चुका होता. लगभग सभी विपक्षी पार्टियों की सहमति थी. लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इसके पीछे दो बड़ी वजहें समझ में आती है.
1- हार का डर. राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष भले ही एक्टिव दिख रहा हो. तमाम दलों के साथ मीटिंग का दौर चल रहा हो, लेकिन शरद पवार सहित दूसरे नेताओं को पता है कि वोट वैल्यू में वे बीजेपी प्लस से बहुत पीछे हैं. राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट वैल्यू 10.86 लाख हैं, जिसमें बीजेपी प्लस के पास 5.26 लाख वोट हैं. बहुमत का आंकड़ा 5.43 लाख है. अगर एक या दो पार्टियों ने समर्थन कर दिया तो बीजेपी प्लस का उम्मीदवार जीत जाएगा. वहीं यूपीए और टीएमसी-एसपी को मिला लें तो जीत का आंकड़ा छूना असंभव तो नहीं लेकिन मुश्किल जरूर है.
2- एक्टिव राजनीति का द एंड. शरद पवार अभी एक्टिव राजनीति में हैं. ऐसे में वो नहीं चाहेंगे कि राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी एक्टिव राजनीति का द एंड हो जाए. खासकर तब जब राष्ट्रपति बनने की गारंटी भी न हो. हालांकि ऐसा नहीं होता है कि राष्ट्रपति पद के बाद राजनीतिक जीवन खत्म हो जाता है, लेकिन देश के सर्वोच्च पद पर रहने के बाद स्वाभाविक है कि सांसद या विधायक या राज्यपाल बनना शायद ही पसंद होगा. ऊपर से इस वक्त वो महाराष्ट्र की सत्ता के केंद्र में हैं.
ममता बनर्जी ने मीटिंग में ओवैसी को नहीं बुलाया. लेकिन आम आदमी पार्टी, बीजू जनता दल (BJD) और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) बुलाने के बाद भी नहीं पहुंचे. इन पार्टियों की अनुपस्थिति विपक्ष के लिए चिंता का विषय है. क्योंकि इनमें से बीजेपी प्लस को किसी एक का भी साथ मिला तो उनके उम्मीदवार का जीतना तय है. लेकिन ये 3 पार्टियां, मीटिंग में शामिल क्यों नहीं हुईं?
बीजेडी सीधे तौर पर केंद्र सरकार से टकराना नहीं चाहती. बल्कि बीजेपी और विपक्ष से बराबर संबंध बनाकर रखना चाहती है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी को ओडिशा में अपनी जमीन तैयार करनी है. ऐसे में शायद नवीन पटनायक का साथ बीजेपी को मिल जाए. इसी वजह से ममता की मीटिंग में शामिल न हुए हो. 2017 के चुनाव में भी बीजेडी ने बीजेपी का साथ दिया था.
जगन मोहन रेड्डी के साथ मामला थोड़ा अलग है. वह बीजेपी के साथ दोस्ताना रवैया बनाकर रखना चाहते हैं. राजनीतिक गलियारों में कयास लगाए जा रहे हैं कि जगन को आय से अधिक संपत्ति के मामले में ईडी का डर है. आंध्र प्रदेश में जगन की मुख्य प्रतिद्वंदी टीडीपी (Telugu Desam Party) है. तेलुगू देशम पार्टी पहले बीजेपी के साथ गठबंधन में थी. ऐसे में वाईएसआर कांग्रेस भी चाहेगी कि बीजेपी और टीडीपी एक साथ न आ जाए.
के चंद्रशेखर राव के साथ ऐसा मामला है कि जहां कांग्रेस वहां टीआरएस नहीं. आंध्र प्रदेश से विपरीत तेलंगाना में कांग्रेस मजबूत है. ऐसे में टीआरएस और कांग्रेस एक दूसरे की प्रतिद्वंदी हैं. दोनों एक मंच साझा नहीं कर सकती हैं.
आम आदमी पार्टी की दिल्ली और पंजाब में सरकार है. यानी विपक्ष में होते हुए भी मजबूत स्थिति में है. ऐसे में अरविंद केजरीवाल नहीं चाहेंगे कि वह विपक्ष की भीड़ का हिस्सा बने. अगर हिस्सा बने भी तो एक वैल्यू के साथ एंट्री लें.
और हां. अरविंद केजरीवाल के ममता बनर्जी से अच्छे संबंध हैं. ऐसे में संभव है वह आखिर में उन्हीं के साथ नजर आए. हालांकि बैठक में न जाने के बाद एक बार फिर से कुछ ने कमेंट किया - देखा ये तो बीजेपी की बी टीम है.
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Published: 15 Jun 2022,10:55 PM IST