advertisement
11 फरवरी को दिनभर टीवी चैनलों पर प्रियंका गांधी का रोड शो छाया रहा. प्रियंका के पॉलिटिकल डेब्यू की चमक के आगे पीएम नरेंद्र मोदी जैसा कद्दावर नेता भी फीका नजर आया. ऐसा लगा कि टीवी चैनलों ने मोदी को नजरअंदाज कर दिया. यकीनन टीवी फुटेज के मामले में प्रियंका गांधी पीएम मोदी पर भारी दिखी. लेकिन सुबह होते-होते बीजेपी की एक चाल से पूरी बाजी ही पलट गई.
टीवी चैनलों के उलट 12 फरवरी की सुबह यूपी के सभी प्रमुख अखबार के फ्रंट पेज मोदी-योगी के गुणगान करते नजर आए, जबकि राहुल और प्रियंका के रोड शो की न्यूज अखबारों के तीसरे और पांचवें पन्ने पर चली गयी.
प्रियंका के रोड शो की चमक फीकी करने के लिए बीजेपी ने विज्ञापन का सहारा लिया. यूपी से निकलने वाले हिंदी अखबार हों या फिर अंग्रेजी,12 फरवरी को सभी न्यूज पेपर के फ्रंट पेज पर प्रियंका की बजाय मोदी-योगी नजर आ रहे थे. बीजेपी की ओर से अखबारों के फ्रंट पेज पर मोदी-योगी सरकार की उपलब्धियों से जुड़ा विज्ञापन दिया गया.
इसमें मोदी और योगी की तस्वीर के साथ ही सरकारों का बखान था. विज्ञापन की वजह से प्रियंका के रोड शो की खबर पेज नंबर तीन या फिर कहीं-कहीं पेज नंबर पांच पर छपी. रोड शो को अखबारों में वो जगह नहीं मिल पाई, जिसकी उम्मीद कांग्रेसी लगाए बैठे थे. सियासी गलियारे में इस खबर को लेकर काफी चर्चा है.
दरअसल यूपी में प्रियंका गांधी के सियासी आगाज से बीजेपी बेचैन है. बेचैनी न सिर्फ प्रियंका को लेकर, बल्कि मीडिया को लेकर भी. अभी तक ये माना जाता रहा है कि मीडिया मैनेजमेंट में बीजेपी का कोई सानी नहीं है. जानकार बीजेपी को मीडिया फ्रैंडली बताते आए हैं. हाल के दिनों में टीवी फुटेज के मामले में बीजेपी, खासतौर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आसपास भी कोई नजर नहीं आता था. लेकिन अब हालात बदलने लगे हैं. तीन राज्यों में मिली हार और प्रियंका के आने के बाद टीवी चैनलों के स्टैंड में बदलाव नजर आने लगा है.
यही कारण है कि 11 फरवरी को मथुरा में मोदी बच्चों को चम्मच से खाना खिला रहे थे. टीवी के स्वाद के मुताबिक ये खबर बड़ी थी, लेकिन चैनलों ने उधर देखा ही नही. मोदी जी की ये खबर सिर्फ 'सूचनार्थ' बन कर रह गई.
यकीनन टीवी चैनलों में बीजेपी पिछड़ गई, लेकिन उसने हार नहीं मानी. बीजेपी के रणनीतिकारों ने प्रियंका की काट खोजने में तनिक भी देरी नहीं लगाई. रातोंरात ऐसा प्लान तैयार किया, जिससे कांग्रेसियों के मंसूबों पर पानी फिर गया.
बीजेपी ने यूपी के प्रमुख अखबारों के फ्रंट पेज विज्ञापन के लिए बुक कर लिए. आज भी लोगों में टीवी चैनलों के बजाय अखबार की विश्वसनीयता ज्यादा है. लोग टीवी में दिख रही लाइव भीड़ को भी सुबह अखबारों में पढ़ने के बाद ही गंभीरता से लेते हैं.
बीजेपी ने लोगों की इसी धारणा को हथियार बनाया और अपना दांव चल दिया. साफ है कि बीजेपी-कांग्रेस की इस नूराकुश्ती के बाद मीडिया मैनेजमेंट का खेल आने वाले दिनों में और दिलचस्प होगा.
टीवी चैनल फुटेज की सबसे बड़ी जंग 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले देखने को मिली थी. उस दौर में आए दिन टीवी स्क्रीन पर दो विंडो दिखाई पड़ती थी. एक में मोदी, तो दूसरे में राहुल गांधी को दिखाया जाता था. लेकिन आवाज सिर्फ मोदी के भाषण की आती थी. इसे मोदी की जीत के तौर पर भी लोग देखते आए हैं.
2014 की तुलना में वो मोदी लहर गायब है. ऐसे में बीजेपी को डर इस बात का है कि मीडिया मैनेजमेंट में मोदी कहीं पिछड़ न जाएं. अगर ऐसा होता है, तो ये लक्षण बीजेपी के लिए शुभ नहीं हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined