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पंजाब कांग्रेस: साथ काम नहीं कर पाए सिद्धू और कैप्टन, अब भी मुश्किलों में CM?

दोनों नेताओं ने साथ काम करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन हालात फिर से वहीं लौटते नजर आ रहे हैं.

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>पंजाब कांग्रेस में मनमुटाव जारी</p></div>
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पंजाब कांग्रेस में मनमुटाव जारी

(फोटो: Altered by Quint)

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पंजाब कांग्रेस में 'शांति समझौता' अपेक्षा से काफी पहले ही खत्म होता दिख रहा है. मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) और पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के नए प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) के गुट एक बार फिर आमने-सामने हैं. एक महीने की लंबी खींचतान के बाद मुश्किल से दोनों नेताओं ने साथ काम करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन हालात फिर से वहीं लौटते नजर आ रहे हैं. सिद्धू को पद मिलने के बाद भी कैप्टन की परेशानियां कम होती नहीं दिख रही हैं.

अचानक क्या हुआ?

कैप्टन अमरिंदर सिंह का गुट कई मुद्दों पर सिद्धू पर हमले कर रहा है. 25 अगस्त को, पटियाला की सांसद परनीत कौर ने सिद्धू पर पार्टी में संकट की मुख्य वजह होने का आरोप लगाया. कैप्टन के समर्थक सिद्धू के 'सलाहकार' मलविंदर सिंह माली और प्यारे लाल गर्ग द्वारा की गई हालिया टिप्पणियों को लेकर भी उनकी आलोचना करते रहे हैं.

कहा जा रहा है कि माली ने जम्मू-कश्मीर को "ओपन जेल" और कश्मीर "कश्मीरी लोगों" का है, ऐसा कहा था. गर्ग ने कहा कि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पाकिस्तान की आलोचना पंजाब के हित में नहीं थी. आनंदपुर साहिब के सांसद मनीष तिवारी जैसे कैप्टन के समर्थकों ने भी कहा था कि "ऐसे लोगों को भारत में रहने का कोई अधिकार नहीं है."

वहीं, दूसरी ओर, पंजाब कांग्रेस महासचिव परगट सिंह के साथ चरणजीत सिंह चन्नी, तृप्त राजिंदर बाजवा, सुखबिंदर सरकारिया और सुखजिंदर रंधावा जैसे मंत्रियों के नेतृत्व में कैप्टन विरोधी धड़े ने 34 विधायकों की बैठक की और कैप्टन को हटाए जाने की मांग की.

हालांकि सिद्धू और पंजाब कांग्रेस के चार कार्यकारी अध्यक्ष बैठक का हिस्सा नहीं थे, लेकिन सिद्धू द्वारा नियुक्त परगट सिंह की उपस्थिति ने संकेत दिया कि बैठक में उनका समर्थन था. इन नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल ने देहरादून में पंजाब कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत से मुलाकात की और उनके कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से संपर्क करने की संभावना है.

उनका आरोप है कि कैप्टन 2015 की बेअदबी और पुलिस फायरिंग के मामलों में बादल के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, जो कि पंजाब कांग्रेस के दो गुटों के बीच शांति समझौते के हिस्से के रूप में एक मुख्य मांग थी. हरीश रावत ने 25 अगस्त को आश्वासन दिया था कि चुनाव कैप्टन के नेतृत्व में लड़ा जाएगा, लेकिन गुटों के बीच शांति समझौता मुश्किल नजर आ रहा है.

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झगड़े की आशंका थी?

पंजाब में कैप्टन विरोधी धड़े का कहना है कि मुख्य मुद्दा ये भावना है कि अगर कांग्रेस कैप्टन के नेतृत्व में आगामी चुनाव लड़ती है, तो उसके जीतने की कोई संभावना नहीं है. पार्टी के एक विधायक ने कहा, "जमीनी हकीकत ये है कि सीएम के खिलाफ भारी नाराजगी है. उनके कई वादे अधूरे हैं. उनके नेतृत्व में लड़ने का मतलब निश्चित हार होगा."

एक अन्य विधायक ने कहा, "लोग एक ही सांस में कैप्टन और बादल के बारे में बात करते हैं और कहते हैं कि वो इन नेताओं से तंग आ चुके हैं. सीएम को बदलना ही इसका एकमात्र तरीका है."

इसमें कोई शक नहीं कि सीएम के खिलाफ काफी नाराजगी है और सिद्धू को अपेक्षाकृत साफ स्लेट वाले व्यक्ति के रूप में देखा जाता है, ये देखते हुए कि उनके खिलाफ कोई बड़ा आरोप नहीं है. साथ ही, बादल और कैप्टन दोनों के कट्टर आलोचक होने के नाते, वो पंजाब के मतदाताओं की एक बड़ी संख्या के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो उन दोनों से तंग आ चुके हैं. ये वही निर्वाचन क्षेत्र है, जिससे आम आदमी पार्टी अपील कर रही है.

हालांकि, सिद्धू में कुछ कमियां भी हैं.

सबसे पहले, जो लोग अब कैप्टन के खिलाफ आगे बढ़ रहे हैं - चन्नी, सरकारिया, बाजवा और रंधावा जैसे मंत्री - कैप्टन के जैसे ही सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं. सिद्धू के साथ उनकी मौजूदगी एक अलग राजनेता होने की उनके चांस को नुकसान पहुंचा रही है.

दूसरा, पंजाब में कांग्रेस मुख्य रूप से हिंदू मतदाताओं के समर्थन पर निर्भर है. जैसा कि आज चीजें हैं, ये हिस्सा सिद्धू का स्वागत नहीं करता है. कैप्टन के समर्थक सिद्धू और उनकी टीम को पाकिस्तान समर्थक बताकर उनके खिलाफ इस धारा का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं.

आगे क्या हो सकता है?

कांग्रेस के लिए स्थिति अब और खराब होती जा रही है और उसे दोनों नेताओं के बीच स्पष्ट फैसला लेना पड़ सकता है. दूसरा विकल्प चुनाव तक सर्वसम्मति से उम्मीदवार से बदलना है, ताकि पार्टी नेतृत्व द्वारा निर्धारित 18 कार्यों की सूची को पूरा किया जा सके. पार्टी को उम्मीद हो सकती है कि वो दोनों नेताओं को चुनाव तक खुश रख सकती है और फिर फैसला ले सकती है. लेकिन ये एक अवास्तविक उम्मीद है, क्योंकि इसे चुनावों में एक स्पष्ट चेहरा पेश करना होगा.

दूसरी ओर, कैप्टन को सिद्धू से बदलने से हिंदू वोटों का संभावित बदलाव हो सकता है, कम से कम अगर कैप्टन के समर्थकों के पास अपना रास्ता हो. आश्चर्य नहीं कि कैप्टन को बीजेपी समर्थक न्यूज चैनलों का समर्थन मिला है, जो सिद्धू और कांग्रेस नेतृत्व पर "पाकिस्तान समर्थक" होने का आरोप लगा रहे हैं.

ये खींचतान पंजाब इकाई को लेकर उतनी ही हो गई है, जितनी कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को लेकर. ये सभी को मालूम है कि सिद्धू को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का समर्थन प्राप्त है. दूसरी ओर, कैप्टन का समर्थन करने वालों में से कुछ, जैसे तिवारी, 23 नेताओं के समूह का हिस्सा हैं, जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर पार्टी की स्थिति की आलोचना की थी. पार्टी नेतृत्व जानता है कि उसे किसी न किसी तरह की कीमत चुकानी पड़ेगी.

हालांकि, एक बात तो साफ है कि रावत के आश्वासन के बावजूद कैप्टन मुश्किल में हैं. साथ ही कांग्रेस नेतृत्व पर राइट-विंग के हमले कैप्टन के खेमे को ही नुकसान पहुंचाने वाले हैं.

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