advertisement
पंजाब में लोकसभा चुनावों के लिए रविवार को वोटिंग होगी. लेकिन दूसरे राज्यों से हटकर राज्य में मुकाबला कांग्रेस के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और उनके कट्टर प्रतिद्वंद्वी अकाली दल के बीच सिमट कर रह गया है. पंजाब में कांग्रेस प्रभावशाली स्थिति में है. यहां लोकसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़ा जा रहा है.
अमरिंदर सिंह दो साल पहले सत्ता में आए थे. लोकसभा चुनाव होने और इसके परिणाम का उनकी सरकार के प्रदर्शन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ने का दावा करने के बावजूद भी मतदाता उनकी मध्यावधि परीक्षा के मूड में हैं.
साल 2014 में मोदी लहर पंजाब में नाकाम रही थी. पंजाब एकमात्र राज्य रहा जहां आम आदमी पार्टी (AAP) चार सीटें मिली थीं. AAP का आगे बढ़ना कांग्रेस की कीमत पर था. कांग्रेस 13 सीटों में से सिर्फ तीन सीट जीतने में कामयाब रही थी, जबकि अकाली दल-बीजेपी गठबंधन को छह सीटें मिली थीं.
कुछ इलाकों में राज्य सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है और बीजेपी को भरोसा है कि हिंदू वोट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाएंगे, कम से कम बड़े शहरों जैसे अमृतसर और लुधियाना में.
गरीबों के लिए पिछली सरकार की कई योजनाओं को रोकने के लिए राज्य सरकार के खिलाफ नाराजगी है. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राज्य में अनियंत्रित ड्रग्स कारोबार पर रोक लगाने का वादा किया था जो अधूरा रहा है.
बेरोजगारी का मुद्दा केंद्र और राज्य, दोनों सरकारों को कठघरे में खड़ा कर रहा है.
कई स्थानीय मुद्दे भी प्रमुखता से उठ रहे हैं. जैसे पाकिस्तान के साथ मौजूदा तनाव के कारण सीमा व्यापार बंद होने से करीब चालीस हजार लोगों की रोजी-रोटी पर असर पड़ा है. सीमावर्ती गावों के किसान सीमा पर बाड़ लगने से समस्या का सामना कर रहे हैं क्योंकि उनके खेतों तक उनकी पहुंच मुश्किल हो गई है.
(इनपुट: IANS)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 15 May 2019,03:55 PM IST