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पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने लगातार दूसरी बार उत्तराखंड के सीएम पद की शपथ ली. उनके साथ 8 विधायकों (Uttarakhand Cabinet) को भी मंत्री पद की शपथ दिलाई गई. धामी की कैबिनेट में 5 पुराने और 3 नए चेहरे हैं. आगे चलकर कैबिनेट का विस्तार होगा, लेकिन अभी जिन 8 चेहरों को जगह मिली है उनके राजनीतिक मायने निकलते हैं. बीजेपी ने हारे हुए उम्मीदवार को सीएम बनाकर और कैबिनेट के 8 चेहरों के जरिए बड़ा संदेश देने की कोशिश की है.
उत्तराखंड कैबिनेट में कुल 8 मंत्रियों ने शपथ ली, जिसमें पुराने चेहरों में सतपाल महाराज, गणेश जोशी, डॉक्टर धन सिंह रावत, सुबोध उनियाल और रेखा आर्य हैं. नए चेहरों में प्रेमचंद अग्रवाल, चंदन राम दास और सौरभ बहुगुणा हैं. कैबिनेट में 3 सीटों को खाली रखा गया है. दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक सहित चार वरिष्ठ नेताओं को मंत्री पद से दूर रखा गया है. कौशिक के अलावा बिशन सिंह चौपाल, अरविंद पांडे और बंशीधर भगत पिछली सरकार में मंत्री थे, लेकिन अबकी बार कोई पद नहीं मिला.
उत्तराखंड की नई कैबिनेट में ठाकुर और ब्राह्मण विधायकों को ज्यादा तवज्जो दी गई है. इसके पीछे एक बड़ी वजह भी है. उत्तराखंड में जातीय समीकरण की बात करें तो सबसे ज्यादा आबादी अपर कास्ट की है. राजनीतिक प्रतिस्पर्धा ठाकुर और ब्राह्मण में है. एससी-एसटी 20-22% हैं. ओबीसी आबादी यूपी की तरह नहीं है. आंकड़ों में देखें तो 85% हिंदू, 60% ब्राह्मण-ठाकुर, 20-22% दलित, 30% फौजी वोटर हैं. एससी-एसटी वोटर कुमाऊं में ज्यादा हैं.
सतपाल महाराज का जन्म हरिद्वार के कनखल में आध्यात्मिक गुरु श्री हंस जी महाराज के घर हुआ. बचपन से ही अध्यात्म में गहरी रुचि रही है. कांग्रेस की तरफ से सांसद भी रहे हैं, लेकिन 2014 में बीजेपी में शामिल हो गए. राजनीति में बड़े कद की वजह से सतपाल महाराज का नाम सीएम की रेस में था. उन्हें सीएम का पद तो नहीं मिला, लेकिन शपथ ग्रहण के दौरान मंच पर सम्मान दिया गया. पुष्कर सिंह धामी के बाद कैबिनेट मंत्रियों में पहला नाम सतपाल महाराज का ही था. सीएम के बाद उन्होंने ही शपथ ली. ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें बड़ा पद मिल सकता है.
यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की तीसरी पीढ़ी सौरभ बहुगुणा हैं. दादा हेमवती नंदन बहुगुणा के यूपी में तो पिता विजय बहुगुणा का उत्तराखंड में दबदबा रहा है. विजय बहुगुणा तो उत्तराखंड के सीएम भी रहे हैं. सौरभ की बुआ यानी हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी रीता बहुगुणा जोशी यूपी की राजनीति में बड़ा चेहरा हैं.
सब मिलाकर देखा जाए तो सौरभ बहुगुणा के परिवार का राजनीतिक कद काफी बड़ा है. पिता विजय बहुगुणा 2012 से 2014 तक सीएम रहे. फिर साल 2016 में 9 विधायकों को कांग्रेस से तोड़ लिया और बीजेपी में शामिल हो गए. अबकी बार के विधानसभा चुनाव में विजय बहुगुणा कैंप को सीटें तो नहीं दी गईं लेकिन व्यक्तिगत तौर पर बहुत कुछ नहीं मिला. अब बेटे सौरभ को मंत्री पद देकर बीजेपी ने बैलेंस करने की कोशिश की है. सौरभ बहुगुणा के जरिए बीजेपी पिता की राजनीतिक विरासत का भी फायदा लेने की कोशिश कर सकती है.
उत्तराखंड के तराई बेल्ट में बंगाली समाज की अच्छी संख्या है. जो बहुगुणा यहां आए हैं वो माने जाते हैं कि बंगाल से आए हैं. ऐसे में बंगाली सपोर्ट मिलता रहा है. यही वजह है कि कांग्रेस-बीएसपी का गढ़ मानी जानी वाली सितारगंज से सौरभ की जीत हुई, जिसमें बंगाली वोटर की बड़ी भूमिका रही है. यानी सौरभ बहुगुणा को मंत्री बनाकर तराई में रहने वाले बंगाली वोटर को साधने की कोशिश की गई है.
उत्तराखंड में 20-22% एससी-एसटी हैं. कुमाऊं में ज्यादा संख्या है. कैबिनेट में रेखा आर्य और चंदन राम दास को जगह देकर इसी समुदाय को साधने की कोशिश की गई है. रेखा आर्य कांग्रेस से बीजेपी में आईं. बीजेपी में दलित लीडरशिप की बात करें तो प्रदेश में कम ही नाम मिलते हैं, ऐसे में रेखा आर्य महिला चेहरा के साथ एससी समुदाय से आती हैं. ये कैबिनेट में इकलौती महिला मंत्री है. ऐसे में रेखा आर्य के जरिए प्रदेश की एससी लीडरशिप को मजबूत किया जा सकता है.
उत्तराखंड में 30% फौजी वोटर हैं. गणेश जोशी को मंत्री बनाकर फौजी वोटर को खुश किया गया है. दरअसल, ये पुराने भाजपाई होने के साथ ही सैनिक पृष्ठभूमि से आते हैं. कुछ साल सेना में रहे. 6 महीने तीरथ सिंह रावत और 6 महीने पुष्कर सिंह धामी के साथ काम भी किया. पुराने फौजियों में अच्छी पकड़ है. ब्राह्मण चेहरा हैं. ऐसे में आगामी चुनावों के लिए गणेश जोशी फायदा दे सकते हैं.
प्रेमचंद अग्रवाल मंत्रिमंडल में नए हैं, लेकिन पहले विधानसभा अध्यक्ष रह चुके हैं. ऋषिकेश में अच्छा प्रभाव है. हरिद्वार और देहरादून में बनिया समुदाय के ज्यादा लोग हैं, ऐसे में इन्हें मंत्री बनाकर पूरे प्रदेश के अग्रवाल समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश की गई है.
डॉक्टर धन सिंह रावत बड़े कद के नेता हैं. गढ़वाल में प्रभाव रखते हैं. ठाकुर चेहरा हैं. कुमाऊं में संगठन मंत्री रह चुके हैं. यानी संगठन स्तर पर अच्छे रणनीतिकार माने जाते हैं. योगी सहित बड़े नेताओं और दिल्ली से अच्छे संबंध हैं.
सुबोध उनियाल कांग्रेस बैकग्राउंड से हैं. लेकिन 2017 में जो कांग्रेसी बीजेपी में आए थे उस कैंप में ये सबसे मजबूत नेताओं में से एक हैं. शायद इसी वजह से इन्हें 8 मंत्रियों में शामिल किया गया.
उत्तराखंड की राजनीति जोड़-तोड़ की मानी जाती है. पार्टी के अंदर ही विवाद होते रहे हैं. बीजेपी को एक कार्यकाल में 3 मुख्यमंत्री बदलने पड़ गए. लेकिन अबकी बार चुनाव हारने के बाद भी पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी आलाकमान ने प्रदेश के नेताओं को संदेश दिया है कि आपसी मतभेद जितने भी हो, लेकिन पार्टी के फैसले से ऊपर कोई नहीं है. वहीं कैबिनेट में सबसे ज्यादा अपर कास्ट का प्रतिनिधित्व है. प्रदेश की राजनीति भी अपर कास्ट के इर्द-गिर्द ही घूमती है. ऐसे में नई कैबिनेट के जरिए बीजेपी ने 2024 के लिए एक पाथ तैयार किया है, जिसमें पार्टी के अंदर के झगड़े को खत्म करने और ठाकुर-ब्राह्मण वोटर को जोड़े रखने की रणनीति दिखाई देती है.
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