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अखिलेश के विधायक क्यों हुए बागी? किसी ने दिया "रिटर्न गिफ्ट" तो किसी को मिल सकता है "गिफ्ट"

Rajya Sabha Election: एसपी के बागी विधायकों को बीजेपी की तरफ से लोकसभा चुनाव में मिल सकती है बड़ी जिम्मेदारी

पीयूष राय
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>अखिलेश के विधायक क्यों हुए बागी? </p></div>
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अखिलेश के विधायक क्यों हुए बागी?

(फोटो- अल्टर्ड बाई क्विंट हिंदी)

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Uttar Pradesh Politics: उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की 10 सीटों के लिए हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी (एसपी) की तरफ से उनके विधायकों की "अंतरात्मा की आवाज" पार्टी पर भारी पड़ी. एसपी के विधानसभा में मुख्य सचेतक और ऊंचाहार से विधायक मनोज कुमार पांडेय, विधायक राकेश पांडेय, राकेश प्रताप सिंह, अभय सिंह, विनोद चतुर्वेदी, पूजा पाल और आशुतोष मौर्या ने पार्टी लाइन से हट कर बीजेपी प्रत्याशी संजय सेठ के समर्थन में वोट किया.

एसपी विधायक और पूर्व मंत्री गायत्री प्रजापति की पत्नी महाराजी प्रजापति वोट डालने ही नहीं आईं. नतीजा यह हुआ कि बीजेपी की तरफ से खड़े किए गए सारे आठ प्रत्याशी जीत गए. वहीं एसपी की तरफ से तीन में से सिर्फ दो प्रत्याशी राज्यसभा में अपनी सीट सुरक्षित करने में कामयाब हुए. तीसरे उम्मीदवार और प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन को हार का सामना करना पड़ा.

यहां यह जानना दिलचस्प होगा कि एसपी के ये बागी विधायक कौन हैं? वे एसपी का दामन छोड़कर अगर यह बीजेपी में जाते हैं तो आगे आने वाले लोकसभा चुनाव में उनकी क्या भूमिका हो सकती है.

मनोज पांडेय को रायबरेली से मिल सकता है टिकट

एसपी के विधायकों की बगावत को लेकर सुगबुगाहट 26 फरवरी यानी राज्यसभा चुनाव से एक दिन पहले ही शुरू हो गई थी जब एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा उनके आवास पर आयोजित डिनर में कुछ विधायक सम्मिलित नहीं हुए. बगावत को लेकर पहली आधिकारिक पुष्टि 27 फरवरी को चुनाव से कुछ घंटे पहले हुई, जब ऊंचाहार से एसपी विधायक मनोज पांडेय ने विधानसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक के पद से इस्तीफा दे दिया.

एसपी सुप्रीमो अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले मनोज पांडे की बगावत से सभी आश्चर्यचकित हैं. तीन बार से लगातार रायबरेली की ऊंचाहार सीट से विधायक मनोज पांडे, एसपी के कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं. 2012 से लगातार विधायक रहे मनोज पांडेय, 2017 और 2022 कि बीजेपी लहर में भी अपनी सीट पर मजबूती से लड़े और जीत दर्ज की. 2012 और 2017 के विधानसभा चुनाव में मनोज पांडे ने स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कृष्ट मौर्य को हराया था. कयास लगाए जा रहे हैं कि मनोज पांडेय जल्द ही बीजेपी का दामन थाम सकते हैं और उन्हें रायबरेली सीट से बतौर उम्मीदवार उतारा जा सकता है.

अभय सिंह के आने से अयोध्या में और मजबूत होगी बीजेपी

बाहुबली नेता अभय सिंह इस समय अयोध्या की गोसाईंगंज सीट से विधायक हैं. छात्र नेता से बाहुबली और फिर राजनेता का सफर तय करने वाले अभय सिंह पहले बीएसपी फिर SP और अब बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. माफिया मुख्तार अंसारी और धनंजय सिंह के करीबियों में गिने जाने वाले अभय सिंह की राजनीतिक पारी की शुरुआत 2002 में हुई थी. इसी साल बीएसपी के टिकट पर अभय सिंह ने अयोध्या विधानसभा सीट से दावेदारी पेश की थी लेकिन बीजेपी के कद्दावर नेता लल्लू सिंह से हार गए.

अभय सिंह को पहली सफलता एक दशक बाद 2012 में मिली जब एसपी से उनकी नजदीकियां बढ़ी और पार्टी ने उन्हें गोसाईगंज विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया. उस समय अभय सिंह जेल में थे और जेल में रहते हुए उन्होंने बीएसपी उम्मीदवार इंद्र प्रताप तिवारी "खब्बू" को तकरीबन 60000 मतों से हराया. 2012 में एसपी की बहुमत की सरकार आने के बाद अभय सिंह जेल से बाहर निकले. 2017 में एक बार फिर एसपी ने उन्हें गोसाईगंज से उम्मीदवार बनाया लेकिन इस बार वह अपने चिर प्रतिद्वंदी और बीजेपी प्रत्याशी इंद्र प्रताप तिवारी "खब्बू" से हार गए. एसपी ने 2022 में एक बार फिर अभय सिंह पर भरोसा दिखाया और पार्टी ने उन्हें इंद्र प्रताप तिवारी "खब्बू" की पत्नी और बीजेपी प्रत्याशी आरती तिवारी के खिलाफ मैदान में उतारा. बीजेपी लहर के बावजूद अभय सिंह ने आरती तिवारी को 13000 वोटों से शिकस्त दी थी.

विशेषज्ञों की मानें तो अभय सिंह के बीजेपी में आने से पार्टी अयोध्या में मजबूत जरूर होगी लेकिन अभय सिंह का बीजेपी में अपने प्रतिद्वंदियों से समन्वय बैठाना भी पार्टी के सामने एक बड़ी चुनौती होगी.

एसपी विधायक पूजा पाल का रिटर्न गिफ्ट

27 फरवरी 2024 को हुए विधानसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने वाली अकेली एसपी महिला विधायक पूजा पाल की मानें तो उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी को वोट कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपना धन्यवाद बोला है. पूजा पाल कौशांबी की चायल विधानसभा सीट से एसपी की विधायक हैं. 2005 में उनके पति और बीएसपी विधायक राजू पाल की हत्या कर दी गई थी.

हत्या का आरोप दिवंगत माफिया और पूर्व सांसद अतीक अहमद और उनके भाई अशरफ पर था. इस हत्या में गवाह उमेश पाल की 2023 में सरे राह हत्या कर दी गई थी. इसके बाद सूबे की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अतीक अहमद और उसके गैंग के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. विधानसभा में सबके सामने योगी आदित्यनाथ ने अतीक अहमद और उसके गैंग का नामोनिशान मिटाने की बात कही थी. कार्रवाई भी कुछ इसी तर्ज पर हुई. अतीक का बेटा असद पुलिस एनकाउंटर में मारा गया. वहीं अतीक और उसके भाई अशरफ की हमलावरों ने हत्या कर दी.

अतीक के खिलाफ योगी सरकार की कड़े रुख से पाल समाज का झुकाव बीजेपी की तरफ बढ़ा है और शायद यही कारण है कि एसपी विधायक पूजा पाल ने "रिटर्न गिफ्ट" में बीजेपी को अपना एक वोट दे दिया.

बता दें कि कौशांबी की तीनों विधानसभा सीट- चायल, सिराथू और मंझनपुर में पाल बिरादरी के तकरीबन 20-20 हजार वोटर हैं. 2022 विधानसभा चुनाव में पाल बिरादरी ने एसपी का खुलकर समर्थन किया था. यहां की तीनों विधानसभा सीट पर एसपी और उनके सहयोग की पार्टी की उम्मीदवार जीते. ऐसे में अगर पूजा पाल बीजेपी का रुख करती हैं तो पार्टी को इसका फायदा आने वाले लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है.

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बेटे ने किया प्रधानमंत्री के साथ लंच, पिता ने छोड़ा अखिलेश का डिनर

संसद में बजट सत्र के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के 9 सांसदों के साथ लंच किया था. इसमें उत्तर प्रदेश के बीएसपी सांसद रितेश पांडेय भी मौजूद थे. इस बात को अभी दो हफ्ते का समय हुआ था और रितेश पांडेय बीएसपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. माना जा रहा है कि रितेश पांडे को अंबेडकर नगर से पार्टी की तरफ से सांसदी का चुनाव लड़ने का टिकट मिल सकता है. इसी कड़ी में सांसद रितेश पांडेय के पिता और अंबेडकरनगर की जलालपुर सीट से एसपी विधायक राकेश पांडेय ने क्रॉस वोटिंग कर बेटे की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को और मजबूती प्रदान कर दी है.

शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ लंच कर चुके सांसद बेटे की वजह से विधायक पिता राकेश पांडेय को अखिलेश यादव द्वारा 26 फरवरी को आयोजित डिनर रास नहीं आया.

इससे बीजेपी ने एक तीर से दो निशाने साधे है. 2019 लोकसभा चुनाव में हारी हुई सीट पर एक मजबूत उम्मीदवार मिल गया. वहीं दूसरी तरफ राज्यसभा चुनाव में आठवें प्रत्याशी को जिताने में मदद मिल गई.

राकेश सिंह के आने से मजबूत होगी अमेठी सीट

अंतरात्मा की आवाज सुनकर राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग करने वाले एसपी विधायक राकेश कुमार सिंह उन विधायकों में शुमार हैं जिन्होंने प्रदेश में बीजेपी लहर के खिलाफ अपना परचम फहराया. 2012 से लेकर अब तक वह लगातार तीन बार अमेठी जिले की गौरीगंज सदर सीट से विधायक हैं. कभी कांग्रेस का गढ़ कहीं जाने वाली अमेठी में 2012 विधानसभा चुनाव में राकेश प्रताप सिंह ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस के मोहम्मद नईम को 1000 से कम मतों से हराकर पहली बार जीत दर्ज की थी. 2017 लोकसभा चुनाव में जीत का यह अंतर बढ़कर 26000 मतों का हो गया. प्रदेश में बीजेपी लहर में जहां एसपी की चारों ओर फजीहत हो रही थी वहां पर राकेश प्रताप सिंह ने 2022 में भी खूंटा गाड़े रखा. उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के चंद्र प्रकाश मिश्रा को 6963 वोटो से शिकस्त दी थी.

राकेश प्रताप सिंह ने एसपी से बगावत जरूर कर ली है लेकिन अभी यह साफ नहीं है इसके बदले उन्हें बीजेपी में क्या मिलेगा. अमेठी संसदीय सीट से स्मृति ईरानी पुरजोर तैयारी कर रही है और कयास लगाए जा रहे हैं कि आलाकमान उनका टिकट नहीं कटेगा. ऐसे में राकेश कुमार सिंह का बीजेपी में राजनीतिक भविष्य क्या होगा यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा. लेकिन अगर वह बीजेपी में आधिकारिक रूप से शामिल हो जाते हैं तो पार्टी को अमेठी सीट पर काफी राजनीतिक लाभ मिल सकता है.

शिवपाल यादव की बढ़ सकती है मुश्किलें

राजनीतिक परिवार से आने वाले एसपी विधायक आशुतोष मौर्या की क्रॉस वोटिंग से एक बार फिर बदायूं में सियासी हलचल तेज हो गई है. एसपी ने लोकसभा प्रत्याशियों की पहली लिस्ट में बदायूं से धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया था. हालांकि तीसरी लिस्ट में धर्मेंद्र यादव की जगह शिवपाल यादव का नाम था. प्रत्याशी बदलने को लेकर पार्टी की क्या रणनीति हो सकती है, इस पर अभी चर्चा चल ही रही थी कि बदायूं की बिल्सी सीट से विधायक आशुतोष मौर्य ने पार्टी के खिलाफ वोटिंग कर तगड़ा झटका दिया है.

जैसे कयास लगाया जा रहे हैं अगर वैसा ही हुआ और आशुतोष मौर्य बीजेपी में शामिल हो जाते हैं तो ऐसे में बदायूं में एसपी नेता शिवपाल यादव की राह आसान नहीं होगी. 2022 विधानसभा चुनाव की कठिन चुनाव में बीजेपी लहर के बावजूद आशुतोष मौर्या ने अपने प्रतिद्वंदी कुशाग्र सागर को हराया था. 2017 में कांटे की टक्कर में आशुतोष मौर्या चुनाव हार गए थे लेकिन उन्हें तकरीबन 90000 वोट मिले थे.

आगे आने वाले समय में अगर समीकरण बदलते हैं और आशुतोष मौर्य बीजेपी का दामन थामते हैं तो शिवपाल यादव को बदायूं में जीत के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है.

बेटे को बचाने के लिए थामा बीजेपी का हाथ?

अपनी राजनीतिक करियर का एक बड़ा हिस्सा कांग्रेस में गुजारने के बाद विनोद चतुर्वेदी 2022 विधानसभा चुनाव से पहले एसपी में शामिल हुए थे. एसपी ने उन्हें जालौन की कालपी विधानसभा सीट से उम्मीदवार घोषित किया और वह यहां से जीते भी. लेकिन विनोद चतुर्वेदी एक बार फिर सुर बदल रहे हैं. अखिलेश का डिनर स्किप करने वाले विधायकों में शामिल विनोद चतुर्वेदी ने राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग की और बीजेपी के आठवें उम्मीदवार संजय सेठ के पक्ष में अपना वोट डाला. इसके बाद से ही चर्चा है कि विनोद चतुर्वेदी अब बीजेपी में शामिल हो सकते हैं.

उनके बीजेपी में शामिल होने का एक और कारण माना जा रहा है. पिछले साल दिसंबर में कोर्ट के आदेशों पर विनोद चतुर्वेदी के बेटे आशीष चतुर्वेदी समेत 13 लोगों के खिलाफ जमीन हड़पने के मामले में गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज हुआ. ऐसा माना जा रहा है कि इस केस में पुलिस की कार्रवाई से बचने के लिए विनोद चतुर्वेदी अब बीजेपी की शरण में आ गए है.

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