advertisement
आरपीएन सिंह (RPN Singh) ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. बीजेपी (BJP) में शामिल हो गए. उन्होंने ट्वीट कर कहा, वे राजनैतिक जीवन में नया अध्याय शुरू कर रहे हैं. आरपीएन सिंह का जाना कांग्रेस (Congress) के लिए बड़ा झटका है. लेकिन चुनाव में मुख्य मुकाबला बीजेपी और एसपी का माना जा रहा है. ऐसे में समझना जरूरी है कि आखिर इस मूव से बीजेपी क्या फायदा चाहती है और एसपी के लिए कहां पर चुनौती खड़ी हो सकती है?
आरपीएन सिंह उत्तर प्रदेश के कुशीनगर (Kushinagar) से आते हैं. पडरौना में घर है. उनके पिता स्वर्गीय सीपीएन सिंह कुशीनगर से सांसद रहने के साथ ही 1980 में इंदिरा गांधी कैबिनेट में मंत्री थे. आरपीएन सिंह तीन बार 1996, 2002 और 2007 में विधायक रहे हैं. इसके बाद 2009 में कुशीनगर से सांसद चुने गए. पहली बार एमपी बने और 2011 में केंद्रीय मंत्री का पद मिल गया. अब बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) बीजेपी छोड़कर एसपी में शामिल हुए तो इसे अखिलेश यादव का मास्टर स्ट्रोक माना गया. मीडिया में हेडलाइन बनी कि ओबीसी के बड़े नेता माने जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य एसपी में शामिल. बीजेपी को एक बड़ा झटका. अब बीजेपी आरपीएन सिंह को ले आई है. स्वामी प्रसाद मौर्य जिस पडरौना विधानसभा से 2012 और 2017 में विधायक बने, आरपीएन सिंह वहीं के नेता हैं. पडरौना से आरपीएन सिंह तीन बार विधायक रह चुके हैं.
1996 के विधानसभा चुनाव में पडरौना से आरपीएन सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े. 46% वोट मिले. दूसरे नंबर पर बीजेपी के सुरेंद्र कुमार शुक्ला थे. 34% वोट मिले. एसपी तीसरे नंबर पर थी.
2002 के विधानसभा चुनाव में पडरौना सीट से कांग्रेस के टिकट पर आरपीएन सिंह ने चुनाव लड़ा था. 32% वोट के साथ जीत हासिल की थी. दूसरे नंबर पर एसपी के बालेश्वर यादव थे. 22% वोट मिले. तीसरे नंबर पर बीजेपी के सुरेंद्र कुमार शुक्ला थे. 22% वोट मिले थे.
2007 के विधानसभा चुनाव में पडरौना सीट से आरपीएन सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे. 20% वोट के साथ पहले नंबर पर थे. दूसरे नंबर पर बीएसपी के अध्या शुक्ला थीं. 16% वोट मिला. तीसरे नंबर पर बीजेपी के सुरेंद्र कुमार शुक्ला थे. 14% वोट मिला.
2012 के विधानसभा चुनाव में पडरौना सीट से बीएसपी के टिकट पर स्वामी प्रसाद मौर्य ने चुनाव लड़ा और 22% वोट मिले. दूसरे नंबर पर कांग्रेस उम्मीदवार राजेश कुमार जायसवाल थे. 18% वोट मिले थे. तीसरे नंबर पर बीजेपी के रामधारी प्रसाद गुप्ता थे. 17% वोट मिले.
विधानसभा चुनाव 2017 में पडरौना की सीट से बीजेपी के टिकट पर स्वामी प्रसाद मौर्य ने 44% वोट से जीत हासिल की. दूसरे नंबर पर बीएसपी के जावेद इकबाल रहे. 25% वोट मिले. कांग्रेस की शिवकुमारी देवी तीसरे नंबर पर थीं. उन्हें 19% वोट मिले थे.
साल 2009 के लोकसभा चुनाव में आरपीएन सिंह कांग्रेस के टिकट पर कुशीनगर से मैदान में थे. उनके सामने स्वामी प्रसाद मौर्य थे. वे बीएसपी से उम्मीदवार थे. आरपीएन सिंह ने 30% वोट पाकर जीत हासिल की. स्वामी प्रसाद मौर्य 27% वोट के साथ दूसरे नंबर पर थे. दोनों उम्मीदवारों के बीच जीत-हार का अंतर करीब 20 हजार वोटों का था. तीसरे नंबर पर बीजेपी के उम्मीदवार विजय दुबे थे. 22% वोट मिले. एसपी चौथे नंबर पर थी. 7% वोट मिले थे.
साल 2009 के चुनाव में आरपीएन सिंह जीत गए, लेकिन इसके बाद के चुनावों में बुरी हार हुई. साल 2014 के चुनाव में आरपीएन सिंह कुशीनगर से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े. लेकिन उन्हें 29% वोट ही मिले. बीजेपी उम्मीदवार राजेश पांडेय उर्फ गुड्डू 38% वोटों के साथ विजयी रहे. तीसरे नंबर पर बीएसपी के डॉक्टर संगम मिश्रा थे. उन्हें सिर्फ 14% वोट ही मिले.
साल 2019 की लोकसभा की बात करें तो कुशीनगर से बीजेपी के विजय कुमार दुबे भारी मतों से जीते. उन्हें 56% वोट मिले. आरपीएन सिंह तीसरे नंबर पर चले गए. उन्हें सिर्फ 13% वोट मिले. दूसरे नंबर पर एसपी के एनपी कुशवाहा थे. उन्हें 24% वोट मिले. आरपीएन सिंह की हार का रिपोर्ट कार्ड बताते हैं कि धीरे-धीरे कुशीनगर में उनका प्रभाव कम हुआ. ये मोदी लहर के कारण भी हो सकता है लेकिन कम से कम इस लहर को आरपीएन सिंह अपनी लोकप्रियता से मात नहीं दे पाए. ऐसे में आरपीएन सिंह के कोर वोट बैंक को खंगालना जरूरी है.
स्वामी प्रसाद मौर्य और आरपीएन सिंह दोनों ओबीसी से हैं. आरपीएन सिंह का वोट बैंक कुर्मी और सैंथवार है, वहीं स्वामी प्रसाद को कुशवाहा, मौर्य और सैनी का समर्थन है. पडरौना में कुशवाहा वोटर ज्यादा है. मुस्लिम भी निर्णायक भूमिका में हैं. शहरी वोट है इसलिए बीजेपी को भी समर्थन मिलता है. भले ही कुशीनगर से आरपीएन सिंह के पिता सांसद रहे. वे खुद जीते. यानी सीट पर इस परिवार का प्रभाव रहा है. लेकिन ये प्रभाव यहीं तक सीमित है. स्वामी प्रसाद मौर्य पहले बीएसपी में थे. बीजेपी में गए और अब एसपी में हैं. ऐसे में उनके कुछ वोटर्स एससी-एसटी में भी हैं. वे जिस बिरादरी से आते हैं उनकी संख्या पूर्वांचल की कई सीटों पर है. वे बलिया, गाजीपुर, बुंदेलखंड, प्रयागराज में कई विधानसभा सीटों को प्रभावित करते हैं. गोरखपुर के पत्रकार मनोज कुमार सिंह कहते हैं,
बीजेपी एक ऐसे नेता को लेकर आई है, जिसे पिछले चुनाव में सिर्फ 13% वोट मिले. इसके दो मतलब हो सकते हैं. पहला कांग्रेस की हार वाली छवि की वजह से कम वोट मिले हो या फिर आरपीएन सिंह का प्रभाव कम हुआ. ऐसे में स्वामी प्रसाद मौर्य की काट बनते की गुंजाइश कम ही लगती है. लेकिन इस मूव से परसेप्शन की लड़ाई में बीजेपी को कुछ फायदा जरूर मिल सकता है.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)