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असम: कुर्मी का BJP में जाना कांग्रेस के लिए जितिन से बड़ा झटका

असम के मरियानी से विधायक रूपज्योति कुर्मी (Rupjyoti Kurmi) कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने की तैयारी कर रहे हैं.

आदित्य मेनन
पॉलिटिक्स
Updated:
असम के जोरहाट के मरियानी से विधायक रूपज्योति कुर्मी
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असम के जोरहाट के मरियानी से विधायक रूपज्योति कुर्मी
(फोटो: क्विंट हिंदी/कामरान अख्तर)

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असम में कांग्रेस विधायक रूपज्योति कुर्मी ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया है और अब वो बीजेपी में शामिल होने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.

जोरहाट जिले के मरियानी से चार बार विधायक रह चुके कुर्मी ने कांग्रेस से इस्तीफा देते हुए कहा कि पार्टी में केवल वरिष्ठ नेताओं को प्रमोट किया जा रहा है और राहुल गांधी पार्टी की जिम्मेदारी संभालने में नाकाम हैं. उन्होंने असम चुनावों में बदरुद्दीन अजमल के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के साथ गठबंधन करने के लिए पार्टी नेतृत्व की भी आलोचना की.

हालांकि, कुर्मी के कांग्रेस से अलग होने पर नेशनल मीडिया का उतना ध्यान नहीं गया, जितना कि हाल ही में कांग्रेस से बीजेपी में गए पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद पर गया था. कुर्मी का जाना वास्तव में कांग्रेस के लिए प्रसाद से बड़ा झटका है, क्योंकि उनका कद इलाके में ज्यादा मजबूत है.

ये तीन कारण हैं, जो बताते हैं कि क्यों रूपज्योति का कांग्रेस से अलग होना अहम है.

कांग्रेस में सबसे मजबूत टी-ट्राइब नेता

रूपज्योति कुर्मी कांग्रेस में सबसे मजबूत चाय जनजाति के नेता थे. चाय के लिए मशहूर असम में चाय बागान में काम करने वाले श्रमिक अहम वोट बैंक हैं. इस साल हुए विधानसभा चुनावों में इस बैकग्राउंड से आने वाले नेताओं में केवल कुर्मी ही अपनी सीट बचाने में कामयाब हुए थे. रोजलीना तिर्की, दुर्गा भमजी और प्रांजल घाटोवार चुनाव हार गए.

उनकी हार असम में चाय जनजाति के वोटों के व्यापक बदलाव का परिणाम थी - एक मजबूत कांग्रेस वोट बैंक, जो अब बीजेपी के लिए भी उतना ही मजबूत हो गया था.

इस बदलाव के बाद भी कुर्मी चुनाव जीतने में कामयाब रहे, हालांकि, उनके मार्जिन में इसका असर देखने को मिला.

कुछ दिनों पहले कुर्मी ने कहा था कि चाय जनजाति वाले बैकग्राउंड से आने की वजह से उन्हें कांग्रेस में वो सम्मान नहीं मिला. उन्होंने कहा था,

“मुझे पता है कि वो मुझे प्राथमिकता नहीं देंगे क्योंकि मेरा रंग गहरा है और चाय के बागानों से आता हूं. हो सकता है, क्योंकि मैं मुद्दों पर बहुत खुलकर बात करता हूं. साथ ही, वो अब्दुल खालिक (बारपेटा सांसद) को भी प्राथमिकता नहीं दी जाएगी क्योंकि वो अल्पसंख्यक समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं. अगर वो किसी को चुनने जा रहे हैं, तो वो प्रद्युत बोरदोलोई या भूपेन बोरा होंगे.”
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पूर्वी असम में कांग्रेस का गिरता ग्राफ

पूर्वी असम को राजनीतिक तौर पर काफी संवेदनशील और अहम माना जाता है. कुर्मी उन पांच विधायकों में शामिल हैं, जो इसी क्षेत्र से आते हैं. इस क्षेत्र से जीतने वाले बाकी विधायकों में थौरा से सुशांत बुरागोहिन, नाजिरा से विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया, बरूह से भास्कर ज्योति और नाओबोइचा से भरत नारा शामिल हैं.

इनमें से भरत नारा ने नाओबोइचा सीट से इसलिए जीत दर्ज की, क्योंकि कांग्रेस का AIUDF के साथ गठबंधन था. इस सीट पर पिछली विधानसभा में इसी पार्टी का कब्जा था. जब चुनाव के दौरान सीट शेयरिंग हुई तो ये सीट इस बार कांग्रेस के खाते में आ गई.

इसकी तुलना में अन्य इलाकों की सीटों को देखें तो मध्य असम, पश्चिमी असम और बराक वैली में कांग्रेस के 24 विधायक हैं. इसका सीधा मतलब है कि पूर्वी असम में कांग्रेस के लिए ज्यादा कुछ बचा नहीं है. असम की परंपरागत राजनीति के लिए ये क्षेत्र काफी अहम है.

अब अगर कांग्रेस लगातार इस क्षेत्र में बुरा प्रदर्शन करती है और नीचे गिरती है तो यहां अखिल गोगोई जैसे नेताओं के लिए अपने पैर जमाने का काफी अच्छा मौका हो सकता है. जिन्होंने पूर्ववर्ती अहोम साम्राज्य की सिबसागर सीट पर कब्जा किया है.

उधर दूसरी तरफ अगर ये सोचें कि यहां बीजेपी की बात क्यों नहीं हुई, तो वो इसलिए क्योंकि पूर्वी असम से आने वाले सर्बानंद सोनोवाल से मुख्यमंत्री का पद छीनकर अब पश्चिमी असम से आने वाले हेमंता बिस्वा सरमा को दे दिया गया है.

हिमंता बिस्वा सरमा की राजनीति

मुख्यमंत्री के तौर पर अपने कार्यकाल के एक महीने के अंदर ही, सरमा ने साफ कर दिया है कि उनके काम करने का तरीका सोनोवाल से काफी अलग है.

कुर्मी के कांग्रेस से अलग होने पर सरमा की ही छाप दिखाई देती है.

कहा जाता है कि कुर्मी तभी से सरमा के नजदीकी थे, जब वो कांग्रेस में थे. हाल के चुनाव में भी, अफवाह थी कि सरमा ने कुर्मी के खिलाफ कमजोर उम्मीदवार खड़ा किया ताकि उनकी जीत पक्की हो सके, और वो पाला बदलकर बीजेपी में सरमा को मजबूत करने में मदद कर सकें.

दिलचस्प बात ये है कि अखिल गोगोई ने भी मरियानी सीट से नाम वापस ले लिया था, जो कि उनकी गृह सीट है. कहा जाता है कि ऐसा उन्होंने बीजेपी को हराने और कुर्मी के सपोर्ट में किया था.

इन बातों के बीच, चुनाव के बाद हुई घटनाएं भी गौर करने लायक हैं. पहला तो ये कि बीजेपी ने सोनोवाल जैसे पॉपुलर नेता की बजाय, सरमा को चुना. अगर सोनोवाल मुख्यमंत्री होते, तो कुर्मी के कांग्रेस में टिके रहने की संभावना ज्यादा थी.

फिर, 27 मई को, कुर्मी पर नागालैंड के भूमि अतिक्रमणकारियों ने दोनों राज्यों की सीमा के करीब देसोई गांव की यात्रा के दौरान हमला किया था. इस घटना के तुरंत बाद, मुख्यमंत्री सरमा ने अपनी चिंता व्यक्त की और विशेष डीजीपी (कानून व्यवस्था) ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह को मौके पर जाकर विस्तृत जांच करने का आदेश दिया.

एक हफ्ते बाद कुर्मी सरमा से मिलने गए, जाहिर तौर पर हमले पर चर्चा करने और नागालैंड के अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक ज्ञापन सौंपने के लिए.

ये घटना 4 जून की है, और अब वो बीजेपी में शामिल होने के लिए तैयार हैं.

सरमा, कुर्मी जैसे वफादार लोगों को पार्टी में ला कर अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं. अगर आने वाले दिनों में कांग्रेस से और नेता भी बीजेपी में शामिल होते हैं, तो ये चौंकाने वाली बात नहीं होगी.

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Published: 18 Jun 2021,11:22 PM IST

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