advertisement
अपने 'बड़े भाई' ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी ज्वाइन करने के 1 साल बाद जितिन प्रसाद का उसी राह पर जाने का निर्णय बहुत निराशाजनक है. मैं यह बात बिना किसी व्यक्तिगत कड़वाहट के बोल रहा हूं. दोनों मेरे दोस्त थे, दोनों मेरे घर आ चुके हैं और मैं उनके. मैं जितिन की शादी पर भी मौजूद था. इसलिए यह किसी व्यक्ति विशेष या उसके व्यक्तिगत पसंद और नापसंद की बात नहीं है. उन्होंने जो किया है,उसमें मेरी निराशा की वजह इससे काफी बड़ी है.
सिंधिया और प्रसाद दोनों बीजेपी और भारत के लिए उसके सांप्रदायिक कट्टरता के खतरों के खिलाफ सबसे मुखर आवाजों में से एक थे. आज वह उसी रंग में मिलने जा रहे हैं जिसकी कभी वह सबसे ज्यादा निंदा किया करते थे.
मेरे लिए राजनीति विचारों के बारे में होनी चाहिए वरना वह खोखली है. अगर आप दृढ़ विश्वास और सिद्धांत के बिना करियर चाहते हैं तो आप एक बैंकर या वकील या अकाउंटेंट भी हो सकते हैं और पैसा कमा सकते हैं. या आप एक CEO के रूप में पावर प्राप्त कर सकते हैं. डिटर्जेंट बनाने वाली कंपनी के मैनेजर की विचारधारा से किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ता, जब तक कि उसके प्रोडक्ट की क्वालिटी अच्छी हो.
लेकिन राजनीति इससे अलग है. राजनैतिक दल आदर्श समाज के विचार की कल्पना करते हैं और उसे पाने के लिए खुद को वचनबद्ध करते हैं. उनकी आस्था उन विश्वासों में दृढ़ होती है जिससे उनके अनुसार समाज का निर्माण और संचालन होना चाहिए. वही उनकी विचारधारा होती है.
आपकी पार्टी न केवल आपकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का संस्थागत रूप है बल्कि वह उन सिद्धांतों, विश्वासों और विचारधारा के समूह को भी दर्शाती है जिसे आप अपने राजनैतिक जीवन के दौरान बढ़ावा देने और बचाव करने के लिए वचनबद्ध है.
राजनीति IPL की तरह नहीं है जहां आप 1 साल किसी एक टीम के लिये खेलते हैं तो दूसरे साल किसी और के लिए. IPL टीम में लेबल, यूनिफार्म और उस टीम के खिलाड़ियों के अलावा चुनने को कुछ और नहीं होता. लेकिन दूसरी तरफ राजनैतिक दलों के बीच सिद्धांत और दृढ़ विश्वास के प्रमुख मुद्दे हैं.
IPL में अगर आपको लगता है कि आपकी टीम टूर्नामेंट में पर्याप्त रूप से अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही या आपको मैनेजमेंट आपकी पसंदीदा बैटिंग पोजिशन पर नहीं भेज रहा, तब अगर आप टीम बदल भी लें तो कोई आपको जज नहीं करेगा. यह स्वीकार किया जाता है कि आपको वहां जाने का अधिकार है जहां आपके पास बेहतर अवसर हैं, जहां IPL ट्रॉफी जीतना ज्यादा मुमकिन है और आप उसके साथ आने वाले अन्य बोनस लाभों का लुत्फ भी उठा सकते है.
राजनीति में लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए. यहां आप अपनी टीम में है क्योंकि उसकी विचारधारा में आपकी आस्था है. चाहे आपकी टीम कितना भी खराब प्रदर्शन कर रही हो ,वह तब भी आपकी टीम है. वह आप के सिद्धांतों और मूल्यों का मूर्त रूप है.यहां आपका कप्तान आपके साथ चाहे कितना भी बुरा व्यवहार करें, कोई भी वजह आपको उस विपक्षी कप्तान के प्रति निष्ठा की शपथ नहीं दिला सकती, जिसकी विचारधारा आपकी विचारधारा के विपरीत है.
बेशक पार्टी आप के सिद्धांतों के लिए सिर्फ एक पवित्र संस्था नहीं है, बल्कि यह लोगों से मिलकर बनी है. यहां पदों पर बैठे लोगों के अपने पूर्वाग्रह, कमियां और कमजोरियां भी हैं. हो सकता है कि आपकी पार्टी की विचारधारा आप से मिलती हो लेकिन वह उन्हें मतदाताओं के बीच अच्छी तरह से ना रख पाती हो या इतने अप्रभावी ढंग से रखती हो कि आपको लगने लगे कि अच्छे विचार कभी भी चुनाव में अच्छे परिणाम नहीं ला सकते.
अतीत में राजनीति में प्रवेश करने वालों में से अधिकांश की यही सोच थी. उन्होंने अपनी पार्टियों को छोड़ दिया, पार्टी तोड़ दी, विलय कर लिया या नई पार्टी बना ली. लेकिन उन्होंने अपने विश्वासों एवं मूल्यों को कभी नहीं छोड़ा.
लेकिन अब कुछ वर्षों में हमने "करियरवादी" राजनेताओं का आगमन देखा है ,जिनका प्रवेश राजनीति में किसी सिद्धांत के कारण नहीं बल्कि पेशे के रूप में हुआ है. उनके लिए सिद्धांतों और जुनून के मायने व्यक्तिगत उन्नति की संभावनाओं के मुकाबले कम है.
जिस पार्टी में वह शामिल हुआ अगर वह अच्छा प्रदर्शन ना कर रही हो तो वह उसकी सफलता के लिए लंबे,कठिन संघर्ष के लिए तैयार नहीं होता. उसकी मुख्य चिंता यह नहीं है कि "मेरी विचारधारा क्या है?" बल्कि ध्यान इस पर है कि "इसमें मेरे लिए क्या है?"
कभी-कभी हमारा इन राजनेताओं से यह सवाल करने का मन होता है- जब आप अपने आपको पुराने वीडियो या प्रेस रिपोर्ट में वह सब कहते देखते हो जो आप के आज के बयानों से उलट है,तो आपको शर्मिंदगी महसूस होती है? या आप अपना पीठ केवल इस बात पर थपथपाते हो कि आपका अंदाज तब भी आज की ही तरह प्रभावशाली था? क्या आपको अपनी विचारधारा को खारिज करने का कोई पछतावा नहीं है?
(डॉ. थरूर तीसरी बार तिरुवनन्तपुरम से सांसद हैं. वह 22 किताबें लिखने वाले पुरस्कार प्राप्त लेखक भी हैं. उनकी हाल की किताब है ‘द बेटल ऑफ बिलॉगिंग्स’ (एल्फ). उनका ट्विटर हैंडल @ShashiTharoor है. यह एक ओपनियन लेख है. यहां व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. क्विंट का उनसे सहमत होना जरूरी नहीं है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: undefined