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सचिन पायलट ने राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाकात की है. वैसे तो ये सामान्य घटना लग सकती है कि असंतुष्ट पायलट को पार्टी शायद मनाने में कामयाब हो रही है और या पायलट शायद अपने गिले शिकवे भुलाकर 'घर वापसी' कर रहे हैं, लेकिन सच ये है कि राजस्थान में जो कुछ हो रहा है वो हाल फिलहाल भारतीय राजनीति में देखने को नहीं मिला है. ऐसा लग रहा है कि गंगा उल्टी दिशा में बह रही है.
सबसे अहम सवाल ये है कि आखिर पायलट-राहुल की मुलाकात की वजह क्या है. जहां तक वजह की बात है तो इसकी कोई एक वजह नहीं हो सकती. इस घटनाक्रम के पीछे पायलट का अपना खेमा हो सकता है और निश्चित तौर पर इसमें गहलोत, कांग्रेस और बीजेपी तीनों का रोल है. बगावत के इतने दिनों बाद भी बागियों को कोई ठौर ठिकाना नहीं मिला तो संभव है कि आखिरकार उन्होंने कदम पीछे हटाना ही मुनासिब समझा और पायलट से कहा हो कि सर जी आ अब घर लौट चलें. लेकिन इस खेल के बाकी किरदारों पर भी नजर डालना जरूरी है.
याद कीजिए जब पायलट ने कांग्रेस के रनवे से उड़ान भरी तो लगा कि अब गहलोत की सरकार गिरी, तब गिरी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. और ऐसा लग रहा है कि अब होगा भी नहीं. जहां तक इसमें कांग्रेस आलाकमान की भूमिका की बात है तो बहुत दिनों बाद कांग्रेस ने एक स्टैंड लिया. साफ संकेत दिया कि पार्टी के पैविलियन में बैठकर शिकायतें, डिमांड मंजूर हैं, लेकिन दुश्मनों के पिच पर जाकर बैटिंग नहीं चलेगी.
पार्टी ने न सिर्फ पायलट से अध्यक्ष पद ले लिया, बल्कि उनकी डिप्टी सीएम की कुर्सी भी खींच ली. संदेश साफ था पार्टी बैकफुट पर नहीं आएगी. इससे आगे जाते हुए पार्टी आलाकमान ने इस मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश की. 'स्पीकअप फॉर डिमाक्रसी' ऑनलाइन कैंपेन चलाकर राजस्थान की लड़ाई को लोकतंत्र बनाम बीजेपी की लड़ाई बनाने की कोशिश की.
गहलोत भी डटे रहे. तमाम चुनौतियों के बाद भी. शायद खरीद-फरोख्त की कोशिश भी हुई. राज्यपाल के यहां से मुश्किलें पैदा हुईं. कोर्ट से राहत नहीं मिली. तमाम केंद्रीय एजेंसियां उनके तमाम अपनों के पीछे पड़ीं. लेकिन गहलोत टिके रहे. उन्होंने न सिर्फ एक-एक करके पायलट खेमे के दांवों का जवाब दिया बल्कि अपने भी दांव चले. SOG को लगाया. ऑडियो टेप लीक हुए. FIR कराई. स्पीकर को कोर्ट भेजा. गहलोत ने न सिर्फ राजभवन में धरना दिया, बल्कि पीएम आवास तक जाने की बात कह दी. ये भी कहा कि जरूरी हुआ तो राष्ट्रपति से भी मिलेंगे.
नॉर्थ ईस्ट से लेकर कर्नाटक और फिर मध्य प्रदेश में जब ऑपरेशन कमल चला तो ऑपरेशनल कमांड भले दिल्ली में हो लेकिन लोकल सिपहसलारों के बिना इनका कामयाब होना मुमकिन नहीं था. इन जगहों से उलट राजस्थान में बीजेपी के अपने ही घर में कलह की चर्चा लगातार हुई. जब पायलट खेमे ने बगावत की तो राजस्थान में बीजेपी की सबसे बड़ी नेता वसुंधरा राजे सिंधिया एकदम खामोश हो गईं. पायलट खेमे ने इसे कैसे लिया होगा, समझ सकते हैं.
जाहिर है जो पायलट सीएम की कुर्सी के लिए कांग्रेस से बगावत कर रहे थे कि वो शायद बीजेपी की संभावित सरकार में सीएम बनने के लिए ही जाते. इस तथ्य को जानते हुए राज्य के बीजेपी नेता शायद उतने उत्साहित नहीं हुए. अब आप इस गुंजाइश को इस तथ्य से जोड़ कर देखिए 14 अगस्त को विधानसभा सत्र से पहले बीजेपी के कुछ अपने विधायक ही गुजरात चले गए हैं.
महाराष्ट्र में 'तख्तापलट' की कोशिश के बाद राजस्थान के रण में ये नया घटनाक्रम...एकदम अविश्सनीय है. संगठन के लेवल पर एक बड़े संकट को कांग्रेस टालती दिख रही है लेकिन अभी चुनौतियां कम नहीं हैं. पायलट खेमा कुछ शर्तें रखेगा. गहलोत खेमा कुछ शर्तें रखेगा. इन दोनों के बीच असली बात ये होगी कि कांग्रेस नेतृत्व अपनी चला ले. गहलोत और पायलट हाल के दिनों में इतने दूर हो गए हैं कि भले ही हालात के आगे नतमस्तक होकर हाथ मिला लें लेकिन दिल नहीं मिलेंगे. कांग्रेस अगर ये करके दिखा दे तो बनेगी असली बात.
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Published: 10 Aug 2020,08:05 PM IST