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तीन तलाक कानून के खिलाफ याचिकाओं पर SC ने भेजा केंद्र को नोटिस

तीन तलाक कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 

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तीन तलाक कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 
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तीन तलाक कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई 
(फोटो: क्विंट)

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सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है. तीन तलाक कानून के खिलाफ दायर तीन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने चार हफ्ते में केंद्र से इस मामले को लेकर जवाब दाखिल करने को कहा है.

तीन तलाक के खिलाफ याचिका

तीन तलाक बिल के लोकसभा और राज्यसभा से पास होने के ठीक बाद इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी. इसे लेकर तीन अलग-अलग याचिकाएं दायर हुई थीं. जिस पर अब सुप्रीम कोर्ट समीक्षा के लिए तैयार हो गया है. केरल में सुन्नी मुस्लिमों और मौलवियों के एक धार्मिक संगठन ‘समस्त केरल जमीयतुल उलेमा’ ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक कानून के खिलाफ याचिका दायर कर इसे असंवैधानिक घोषित किये जाने की अपील की थी.

इसके अलावा कुछ ही दिन पहले इस कानून की वैधता को चुनौती देने के लिए एक और याचिका दायर हुई थी. जमीयत उलमा-ए-हिन्द ने सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया है कि,

इस कानून से संविधान के प्रावधानों का कथित रूप से उल्लंघन होता है. इस याचिका में भी मुस्लिम महिला (विवाह में अधिकारों का संरक्षण) कानून, 2019 को अंसवैधानिक घोषित करने का अनुरोध किया गया है. वकील एजाज मकबूल के माध्यम से दायर इस याचिका में दावा किया गया है कि चूंकि मुस्लिम पति का बीवी को इस तरह से तलाक देने को पहले ही ‘अमान्य और गैरकानूनी’ घोषित किया जा चुका है, इसलिए इस कानून की कोई जरूरत नहीं है.

तीन तलाक कानून के खिलाफ तीसरी याचिका में भी कुछ यही मांग की गई है. इन तीनों याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.

कानून बनने के बाद कई मामले दर्ज

तीन तलाक कानून बनने के बाद ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जिनमें पति ने पत्नी को फोन या फिर मैसेज में तीन तलाक दे दिया. इन सभी मामलों में अब इस नए कानून के तहत केस दर्ज हो रहे हैं. कई पुराने केसों को भी दोबारा से उठाया गया है और इस कानून के तहत कार्रवाई की मांग की गई है. इस कानून के बनने के बाद से ही कुछ मुस्लिम संगठन इसके विरोध में हैं. उनका आरोप है कि कानून महिलाओं के लिए बेहतर नहीं है.

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