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जातिगत जनगणना-रामचरितमानस..एसपी में स्वामी प्रसाद मौर्य की नंबर दो की भूमिका?

अखिलेश यादव को स्वामी प्रसाद मौर्य से कहां और क्या फायदा मिल सकता है?

पीयूष राय
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>अखिलेश यादव के साथ स्वामी प्रसाद मौर्य&nbsp;</p></div>
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अखिलेश यादव के साथ स्वामी प्रसाद मौर्य 

(फोटो- एसपी/ट्विटर)

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स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya), एक ऐसा नाम जो उत्तर प्रदेश सहित राष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियों में है. वजह रामचरितमानस (Ramcharitmanas) को लेकर दिया गया बयान है, जिसका बीजेपी के नेताओं ने विरोध किया. हालांकि एसपी (SP) के अंदर ऋचा सिंह और रोली तिवारी ने भी बयान पर आपत्ति जताई थी.

इसके बाद उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. वजह अनुशासनहीनता बताई गई. ऐसी कार्रवाई देखकर एसपी के अंदर एक मैसेज साफ तौर पर गया होगा कि पार्टी के अंदर स्वामी प्रसाद मौर्य का कद क्या है? क्या वह अखिलेश यादव के बाद नंबर दो पर दिख रहे हैं? इसे समझने की कोशिश करते हैं.

स्वामी प्रसाद मौर्य की एसपी में भूमिका को समझने के लिए पहला उदाहरण जातिगत जनगणना से लेते हैं. बिहार में जातिगत जनगणना शुरू होने से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हलचल तेज हो गई है. इसे लेकर समाजवादी पार्टी (SP) उत्तर प्रदेश के हर जिले में विधानसभा वार संगोष्ठी करने जा रही है.

इस अभियान के पहले चरण में 5 जिलों को चिन्हित किया गया है और शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से हो रही है.

23 फरवरी को उत्तर प्रदेश विधानसभा में समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने जोर देते हुए कहा कि पूरा विपक्ष जाति जनगणना की मांग कर रहा है. कभी SP की सहयोगी पार्टी रही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी इसकी मांग पहले ही कर चुकी है. SBSP के मुखिया ओपी राजभर ने कई मौकों पर जातिगत जनगणना की मांग उठाई है. हालांकि, SP के तेवर भी अब आक्रामक हो गए हैं और जातिगत जनगणना की मांग की अगुवाई कर रहे हैं स्वामी प्रसाद मौर्य.

क्या स्वामी प्रसाद मौर्य एसपी के नंबर दो?

सुभासपा और ओमप्रकाश राजभर के एसपी से अलग होने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य पार्टी के सबसे बड़ा गैर यादव ओबीसी चेहरा बनकर उभरे हैं. अभी हाल ही में रामचरितमानस पर मौर्य ने अपने कथित आपत्तिजनक बयान से सुर्खियों में रहे और लगातार जाति जनगणना को लेकर अपना पक्ष रख रहे हैं. कभी बीजेपी सरकार में मंत्री रहे मौर्य ने अपने ट्वीट में बीजेपी पर जाति जनगणना को लेकर हीलाहवाली का भी आरोप लगाया.

मौर्या के SP में बढ़ते कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी हाल ही में रामचरितमानस पर हुए विवाद के दौरान मौर्य की टिप्पणी की आलोचना करने वाली पार्टी की दो प्रवक्ताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया.

वैसे तो एसपी ने रामचरितमानस पर खुलकर मौर्य का समर्थन नहीं किया है लेकिन प्रवक्ताओं के निष्कासन से उन्होंने यह संदेश दे दिया कि वह अपने नेता और उसके बयान के साथ खड़ी है
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एसपी में स्वामी प्रसाद मौर्य का बढ़ता कद इस बात का संकेत देता है कि पार्टी गैर यादव ओबीसी वोटरों को साधने की पुरजोर कोशिश कर रही है. हालांकि जानकारों की मानें तो मौर्य का पार्टी में बढ़ता कद सिर्फ उनके वोट बैंक से ही नहीं बल्कि उनकी राजनीति आक्रामकता से भी जुड़ा है जो एसपी को एक नई धार दे रहा है.

क्विंट हिंदी से बातचीत के दौरान लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल ने कहा कि जाति समीकरण से ज्यादा मौर्य एक आक्रामक नेता के रूप में उभरकर आए हैं, जिसकी एसपी में अब नंबर दो की भूमिका दिख रही है.  

वरिष्ठ पत्रकार रतन मणिलाल कहते हैं, "अखिलेश को अब उम्मीद है कि जिन सहयोगियों से दूसरे पार्टियों को फायदा मिला था उससे उनको भी लाभ होगा. स्वामी प्रसाद मौर्य बीएसपी में नंबर दो के नेता थे. बाद में जब वह बीजेपी में आए तो पार्टी को उनसे कम से कम एक चुनाव में फायदा हुआ. मौर्य की अति पिछड़ों में पकड़ है और आक्रामक नेता के रूप में पहचान." उन्होंने कहा,

"ऐसे नेता की एसपी को जरूरत थी. जातीय समीकरण से ज्यादा एसपी को मौर्य की आक्रामकता से फायदा होगा. अखिलेश यादव के बाद पार्टी में कोई भी ऐसा नेता नहीं बचा है जो बीजेपी का डटकर मुकाबला करता है. शिवपाल यादव, रामगोपाल यादव और आजम खान जैसे वरिष्ठ नेताओं में अब वह धार नहीं दिखती, जो पार्टी को मजबूती से विपक्ष में बनाए रखे. अखिलेश को मौर्य जैसे एक मजबूत नंबर दो की भूमिका निभाने वाले नेता की जरूरत है."  
रतन मणिलाल, वरिष्ठ पत्रकार

शांत हो रहे विरोध के स्वर?

सूत्रों की मानें तो मौर्य के बढ़ते कद से पार्टी के कई वरिष्ठ नेता असहज हैं. कभी मुलायम सिंह यादव के समय एसपी में नंबर दो रहे शिवपाल यादव की पार्टी में वापसी तो हो गई लेकिन अभी हाल ही में घोषित हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पद राष्ट्रीय महासचिव का मिला.

वही पद जो स्वामी प्रसाद मौर्य को भी दिया गया. इसको लेकर भी राजनीतिक गलियारों में कई तरीके की चर्चाएं थी, लेकिन जिस तरीके से अखिलेश यादव का मौन समर्थन मौर्य को मिला, उससे कोई खुलकर प्रतिक्रिया व्यक्त करने से बच रहा है.

रतन मणिलाल इसपर कहते हैं,  मौर्य के खिलाफ प्रतिक्रिया देने वाले पार्टी के प्रवक्ताओं को बाहर का रास्ता दिखा कर अखिलेश यादव ने साफ संदेश दे दिया है. इनके अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता मनोज पांडे, जिन्होंने मौर्य की आलोचना की थी वह अब शांत पड़ गए हैं. पार्टी का कोई भी ऐसा वरिष्ठ नेता नहीं है जो खुलकर मौर्य के खिलाफ बोल रहा है.

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