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"कांग्रेस की गारंटी" और BRS के "केसीआर भरोसा" के बाद, बीजेपी ने तेलंगाना विधानसभा चुनाव के लिए अपना घोषणापत्र "सकला जनुला सौभाग्य तेलंगाना - पीएम मोदी की गारंटी" के नाम से जारी किया है. इसमें बीजेपी ने लगभग 25 मुद्दों को मुख्यता10 कैटेगरी में बांटा है.
इस आर्टिकल में हम तीन सवालों के जवाब देगें- BJP के घोषणा पत्र के क्या मायने हैं? बीजेपी का ओबीसी पर इतना जोर क्यों है? और बीजेपी और कांग्रेस के मेनिफेस्टो में क्या अंतर है?
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा जारी 48 पन्नों के मेनिफेस्टो में बीजेपी ने किसानों, महिलाओं, युवाओं पर विशेष फोकस किया है. साथ ही जातीय समीकरण को साधने के लिए ओबीसी और SC/ST को भी लुभाने की कोशिश की है. पार्टी ने भ्रष्टाचार को लेकर एक बार जीरो टॉलरेंस की नीति पर जोर दिया है. इसके अलावा बीजेपी ने मुफ्त की योजनाओं से भी वोटर्स को आकर्षित करने की रणनीति बनाई है.
किसानों से वादा: बीजेपी का घोषणापत्र किसान-समर्थक उपायों की बात करता है, जिसमें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) के तहत किसानों को मुफ्त बीमा, किसानों को प्रति एकड़ 2,500 रुपये की सहायता शामिल है. पार्टी ने धान 3100 रुपये प्रति क्विंटल खरीद और किसानों को मुफ्त में देसी गाय देने का भी वादा किया.
महिला वोटर्स पर जोर: महिला स्वयं सहायता समूहों को 1% ब्याज दर पर ऋण, बेटी के जन्म पर 2 लाख रुपये की फिक्स डिपॉजिट, महिलाओं को प्रति वर्ष चार मुफ्त घरेलू एलपीजी सिलेंडर और डिग्री एवं प्रोफेशनल कॉलेजों में छात्राओं को मुफ्त लैपटॉप देने की घोषणा की.
युवा वोटर्स पर ध्यान: पार्टी ने दावा किया कि 5 साल में 2.5 लाख युवाओं को सरकारी नौकरी और TSPSC के माध्यम से समय से ग्रुप-A और ग्रुप-B लेवल की परीक्षाएं होंगी.
मंहगाई कंट्रोल करने पर जोर: बीजेपी ने ऐलान किया कि सरकार बनने पर 7 दिन के अंदर पेट्रोल-डीजल पर VAT कम करेंगे. वहीं, पात्र परिवारों को सरकारी और निजी अस्पतालों में 10 लाख तक का मुफ्त इलाज मिलेगा. तेलंगाना के वरिष्ठ नागरिकों को मुफ्त में अयोध्या दर्शन का वादा किया गया तो, हर साल 17 सितंबर को हैदराबाद मुक्ति दिवस और 27 अगस्त को रजाकार विभीषिका स्मृति दिवस मनाएंगे की घोषणा की.
बीजेपी ने घोषणा पत्र में भी साफ संकेत दिया कि ओबीसी और SC/ST उसकी प्राथमिकता में सर्वोच्च स्थान रखते हैं. अमित शाह ने ऐलान किया कि अगर तेलंगाना में बीजेपी की सरकार आती है तो राज्य का अगला मुख्यमंत्री पिछड़ा वर्ग से ही बनाया जाएगा.
जानकारों की मानें तो बीजेपी पहले से ही तेलंगाना के जातीय समीकरण को साधने के लिए कई ऐलान कर चुकी है. जैसे- पार्टी ने केंद्रीय मंत्री जी किशन रेड्डी को प्रदेश अध्यक्ष, ईटेला राजेंदर को चुनाव प्रबंधन समिति प्रमुख और संजय बंदी (मुन्नरकापू) को राष्ट्रीय महामंत्री बनाकर जातीय समीकरण को बैलेंस करने की कोशिश की है.
बीजेपी ने मुसलमानों को दिए गए 4% आरक्षण को खत्म कर और पिछड़ा वर्ग, एससी/एसटी का कोटा बढ़ाने का भी ऐलान किया है, जैसा कर्नाटक चुनाव के दौरान घोषणा की गई थी कि मुस्लिमों को मिलने वाला 4% आरक्षण का कोटा 2%-2% लिंगायत और वोक्कालिगा को दिया जाएगा. हालांकि, चुनाव में बीजेपी को इसका काफी नुकसान हुआ.
भ्रष्टाचार पर नीति साफ: घोषणा-पत्र में कहा गया कि सत्ता में आने पर कालेस्वरम और धरणी घोटालों और मौजूदा बीआरएस सरकार की ओर से की गई अन्य वित्तीय अनियमितताओं सहित भ्रष्टाचार के सभी आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज की अध्यक्षता में एक जांच आयोग नियुक्त करेगी.
इसके अलावा रजाकारों और निजामों के खिलाफ तेलंगाना के लोगों के बहादुर संघर्ष का दस्तावेजीकरण करने के लिए हैदराबाद में एक संग्रहालय और एक स्मारक बनाने का वादा किया.
कांग्रेस ने भी किसानों के लिए पिटारा खोला है और दावा किया है कि सत्ता में आने पर उन्हें हर साल 15,000 रुपए तो खेतीहर मजदूरों को 12,000 रुपए मिलेंगे. युवाओं को रोजगार के लिए 2 लाख सरकारी नौकरी देने की बात कही है. इसके अलावा 'चेयुथा' योजना के तहत रोगियों को प्रति माह ₹4,000 की पेंशन देने का ऐलान किया है.
बीजेपी की तरह कांग्रेस ने भी ₹10 लाख का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध कराने का आश्वासन दिया है. बीजेपी ने पात्र परिवारों को सरकारी और निजी अस्पतालों में 10 लाख तक का मुफ्त इलाज कराने का वादा किया है.
अब तीनों पार्टी के घोषणा पत्र आ चुके हैं. बीआरएस दस साल से सत्ता पर काबिज है तो वहीं, कांग्रेस इस बार बीआरएस को कड़ी चुनौती देती दिख रही है. हालांकि, तमाम सर्वे और ओपिनियन पोल राज्य में बीजेपी की स्थिति को मजबूत नहीं बता रहे हैं, लेकिन पार्टी ने अपने सबसे ताकतवर "सिपाही" अमित शाह की मौजदूगी में घोषणा पत्र जारी कर साफ संकेत देने की कोशिश की कि दक्षिण राज्य उसकी प्राथमिकता में कितना महत्व रखता है और बीजेपी यहां अपने पैर मजबूती से गड़ाने के लिए तैयार है.
हालांकि, बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती ग्रामीण वोटर्स हैं क्योंकि तेलंगाना की 119 सीटों में से ज्यादातर सीटें ग्रामीण क्षेत्र में हैं और बीजेपी का शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्र में प्रभाव है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में वो अभी भी अपने पांव नहीं पसार पाई है.
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