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महिला-मुस्लिम पर जोर, ममता TMC मेनिफेस्टो के जरिए क्या हासिल करना चाह रहीं?

TMC Manifesto: पश्चिम बंगाल में महिला वोटर्स को टीएमसी का समर्थक माना जाता है.

पल्लव मिश्रा
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>महिला-मुस्लिम पर जोर, रोजगार का मुद्दा गायब- TMC के मैनिफेस्टो में बंगाल पर फोकस</p></div>
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महिला-मुस्लिम पर जोर, रोजगार का मुद्दा गायब- TMC के मैनिफेस्टो में बंगाल पर फोकस

(फोटो: अल्टर्ड बॉय क्विंट हिंदी)

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TMC Manifesto: लोकसभा चुनाव को लेकर टीएमसी का घोषणा पत्र जारी हो चुका है. इसमें पार्टी ने कई मुफ्त की योजनाओं का ऐलान किया है. जबकि नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) और समान नागरिक संहिता (UCC) नहीं लागू करने का वादा किया है. पार्टी ने पेट्रोल-डीजल की कीमत सीमित करने की भी घोषणा की है.

लेकिन पार्टी ने जो वादा किया है, उसके क्या मायने हैं और उसके पीछे की क्या वजह है, इस आर्टिकल में समझते हैं.

महिला वोटर्स पर फोकस

TMC के घोषणा पत्र में सबसे अधिक फोकस महिला वोटर्स पर किया गया है. घोषणा पत्र के अनुसार, बंगाल के लक्ष्मी भंडार योजना की तर्ज पर सभी महिलाओं को हर महीने वित्तीय सहायता, कन्याश्री योजना के तर्ज पर पूरे देश की 13 से 18 साल की लड़कियों को सालाना एक हजार रुपए और पढ़ाई के लिए 25 हजार रुपए दिया जाएगा.

TMC ने 17 अप्रैल को अपना घोषणा पत्र जारी किया.

(फोटो: AITMC/X)

अब सवाल है कि इसके पीछे की वजह क्या है? तो इसका जवाब है महिला वोट.

चुनाव आयोग के अनुसार, इस बार 97.6 करोड़ कुल मतदाताओं में से महिला वोटर्स की संख्या 47.1 करोड़ है और पुरुष मतदाताओं 49.7 करोड़ है. ये संख्या 2019 के चुनाव के मुकाबले बढ़ी है.

यानी महिला मतदाता इस बार भी जीत-हार में बड़ा किरदार निभाएंगी.

ECI के अनुसार, 2019 के चुनाव में 67.18 प्रतिशत महिलाओं ने भाग लिया था, जो पुरूषों के 67.01 फीसदी की तुलना में ज्यादा है.

वहीं, पिछले कुछ वर्षों के यह देखा गया है कि महिला वोटर्स पुरूषों मतदाताओं की अपेक्षा चुनाव में ज्यादा बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं. इस बात को ममता बनर्जी भी अच्छी तरह से समझती हैं और इसीलिए उन्होंने महिला केंद्रित योजनाओं पर विशेष फोकस किया है.

चुनाव आयोग के अनुसार, अकेले बंगाल में 3.73 करोड़ महिला मतदाता हैं, जो पंजीकृत पुरुष मतदाताओं की संख्या 3.85 करोड़ से सिर्फ 12 लाख कम हैं.

2019 के लोकसभा चुनाव में बंगाल की 42 में से 17 सीटों पर महिला वोटर्स के मतदान की संख्या पुरूषों से ज्यादा थी. इनमें से आठ पर टीएमसी, सात पर बीजेपी और दो पर कांग्रेस जीती थी. इनमें से सात सीटों पर महिलाओं और पुरुषों के बीच मतदान का अंतर पांच प्रतिशत से अधिक था. जबकि मालदा उत्तर में यह अंतर 7.79 प्रतिशत तक था.

यहां गौर करने वाली बात ये भी है कि टीएमसी का जनाधार बंगाल के अलावा अन्य राज्यों में न के बराबर है. ऐसे में पार्टी भले ही चुनाव और घोषणा पत्र में राष्ट्रीय स्तर की बात करे, लेकिन उसका मुख्य फोकस बंगाल ही नजर आ रहा है.

ECI के अनुसार, बंगाल की "दम दम" सीट पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक है. इसीलिए बीजेपी और टीएमसी दोनों महिला वोट पर फोकस किए हुए हैं.

हालांकि, बंगाल में महिला वोटर्स को टीएमसी का समर्थक माना जाता है. 2021 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी को 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं के वोट मिले, जबकि बीजेपी ने 37 प्रतिशत वोट हासिल किए.

इतना ही नहीं, बंगाल सरकार द्वारा घोषित किए गए 2024-25 के बजट में भी 44 प्रतिशत संसाधन महिला सशक्तिकरण पहल के लिए दिए गए हैं. लेकिन हाल ही में हुई संदेशखाली की घटना का टीएमसी पर बुरा असर हुआ है.

दरअसल, संदेशखाली की घटना का मुख्य विरोध वहां की महिलाओं ने ही किया और उन्हीं के नेतृत्व में आंदोलन हुआ, जिसके बाद आरोपी टीएमसी नेता की गिरफ्तारी हुई. इस घटना के बाद जिस तरीके से वहां की महिलाओं का गुस्सा टीएमसी नेता पर फूटा था, उसने ममता बनर्जी की परेशानी बढ़ा दी है.

संदेशखाली को लेकर बीजेपी ममता बनर्जी पर हमलावर है और वो राज्य सरकार को भ्रष्टाचार का प्रतीक बता रही है. बीजेपी ने बशीरहाट सीट से संदेशखाली की प्रदर्शनकारी रेखा पात्रा को उम्मीदवार भी बनाया है. पीएम ने पिछले दिनों उनसे बात भी की थी और उन्हें "शक्ति स्वरूपा" बताया था.

उन्होंने बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान कई बार महिलाओं से अपील की कि "दर्द का जवाब वोट से देना है". जबकि संदेशखाली के आरोपी टीएमसी नेता पर हो रही कार्रवाई से तृणमूल कांग्रेस की छवि खराब हुई है. ऐसे में ममता बनर्जी महिला वोटर्स को अपने से छिटकने नहीं देना चाहती हैं और इसलिए मेनिफेस्टो महिला केंद्रित ज्यादा नजर आ रहा है.

जानकारी के अनुसार, जिन योजनाओं का जिक्र टीएमसी ने अपने घोषणा पत्र में किया है, वो बंगाल में पहले से लागू हैं और उसका लाभ ममता बनर्जी को बीते चुनावों में हुआ है.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो, महिला मतदाता हमेशा से वफादार रही हैं. फिर चाहे केंद्र में नरेंद्र मोदी के प्रति हो या फिर बिहार में नीतीश कुमार, ओडिशा में नवीन पटनायक और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए. महिला वोटर्स अब पहले के मुकाबले ज्यादा जागरूक भी हुई हैं. ऐसे में इनका जिन्हें समर्थन मिलता है, उनकी जीत लगभग तय मानी जाती है.

मुस्लिम वोट पर निगाह

महिला वोटर्स की तरह मुस्लिम भी अब तक ममता बनर्जी के लिए बंगाल में वफादार रहे हैं. राज्य में हुए पिछले तीन चुनाव को देखें तो, ममता के तीन बार सत्ता में आने की प्रमुख वजहों में से एक मुस्लिम वोटर्स का टीएमसी के साथ होना हैं.

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ऐसे में मुस्लिम वोटर्स को टीएमसी के साथ मजबूती से जोड़े रखने के लिए नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को खत्म करने, नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) बंद करने और समान नागरिक संहिता (UCC) को पूरे भारत में नहीं लागू करने का ऐलान टीएमसी के मेनिफेस्टो में किया गया है.

कोरोना वायरस के संक्रमण के दौरान जब सीएए बिल पास हुआ था, तो उस वक्त पश्चिम बंगाल में भी CAA-NRC को लेकर बड़ा विरोध प्रदर्शन हुआ था. ऐसे में ममता समझती हैं कि मुस्लिम बीजेपी को वोट नहीं करेंगे लेकिन वोटर्स कांग्रेस और लेफ्ट के साथ न जाएं, इसके लिए वो हरसंभव कोशिश कर रही हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक. पश्चिम बंगाल में 27.1 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है. लोकसभा की 42 में से 13 और विधानसभा की 294 सीटों में से लगभग सौ सीटों पर मुस्लिम वोटर्स का प्रभाव है. इसलिए बंगाल में मुस्लिम फैक्टर को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है.

सीएसडीएस-लोकनीति पोस्ट पोल विश्लेषण के अनुसार, 2021 के विधानसभा चुनाव में 10 में से लगभग 8 मुसलमानों ने टीएमसी को वोट दिया.

लेकिन 2023 में हुए बंगाल में कुछ चुनाव के आए नतीजों ने ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ा दी, जिसके बाद से वो सतर्क हो गई हैं.

दरअसल, पश्चिम बंगाल के 64 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले सागरदिघी में मार्च 2023 में हुए उपचुनाव में TMC हार गई. इसके अलावा मुस्लिम बाहुल्य भांगड़ में पंचायत चुनाव में भी टीएमसी के सामने नई पार्टी ISF ने 43 सीटें जीत लीं.

हालांकि, मुस्लिम बाहुल्य बालीगंज उपचुनाव में पार्टी को जीत तो मिल गई लेकिन जीत का अंतर 20 प्रतिशत से भी कम हो गया. इसके बाद सीएम ममता ने डैमेज कंट्रोल को रोकने के लिए अल्पसंख्यक मंत्री गुलाम रब्बानी को पद से हटा दिया और विभाग को अपने पास रख लिया था.

इतना ही नहीं, मुस्लिम वोट बैंक को बिखरने से रोकने के लिए ममता बनर्जी ने इस साल जनवरी में हुए राम मंदिर उद्घाटन कार्यक्रम में भाग लेने से भी इंकार कर दिया था. सीएम ने अयोध्या जाने की बजाए बंगाल में ही पहले 'जय मां काली' का जाप किया और फिर मुस्लिम रैलियों में शामिल हुई.

मंहगाई पर बात नहीं लेकिन मुफ्त राशन और सिलेंडर देने का वादा

ममता बनर्जी वैसे तो केंद्र पर मंहगाई को लेकर हमला करती रहती हैं लेकिन अपने घोषणा पत्र में इस पर उन्होंने कोई ठोस बात नहीं कही. हालांकि, मुफ्त 10 सिलेंडर देने का ऐलान का जरूर किया.

दरअसल, सिलेंडर के दामों को लेकर विपक्ष लगातार बीजेपी पर हमला करता रहा है. उसका आरोप है कि पीएम "उज्ज्वला योजना" के तहत गैस तो दे रहे लेकिन सिलेंडर भराने के पैसे का इंतजाम नहीं किया है.

ऐसे में टीएमसी ने साल भर में मुफ्त 10 सिलेंडर देने का वादा कर बड़ा दांव चला है. पिछले साल 2023 में हुए कई राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान देखा गया था कि बीजेपी-कांग्रेस ने 400, 450 और 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने का वादा किया.

वहीं, पेट्रोल-डीजल के दाम पर विपक्षी दल हमलावर हैं. ऐसे में TMC ने वादा किया कि सरकार बनने पर पेट्रोल, डीजल और एलपीजी सिलेंडर की अधिकतम कीमत तय की जाएगी. इनकी कीमतों में उतार-चढ़ाव को मैनेज करने के लिए एक 'मूल्य स्थिरीकरण कोष' बनाया जाएगा.

इसके अलावा, दुआरे राशन स्कीम के तहत सभी राशन कार्ड धारक को उनके घर पर 5 किलो मुफ्त राशन पहुंचाया जाएगा. वहीं, पुरानी पेंशन योजना (OPS) को लेकर भी कोई वादा नहीं किया. लेकिन 60 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को 1000 रुपए प्रति माह पेंशन देने की बात कही गई है.

रोजगार पर चुप्पी

TMC ने अपने घोषणा पत्र में रोजगार को लेकर कोई ठोस ऐलान नहीं किया. हालांकि, 25 वर्ष तक के सभी ग्रेजुएट और डिप्लोमा होल्डर को मासिक वजीफे/ स्टाइपेंड के साथ 1 वर्ष की ट्रेनिंग देने और उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले छात्रों को 10 लाख रुपए तक का स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराने का वादा जरूर किया है.

इसके अलावा सभी जॉब कार्ड धारकों को 100 दिनों की गारंटी वाला काम दिया जाएगा और श्रमिकों को प्रति दिन ₹400 का न्यूनतम वेतन देने का ऐलान किया है. लेकिन पार्टी सत्ता में आने पर कितना रोजगार देगी, इसका कोई जिक्र नहीं किया गया है.

वहीं, एससी, एसटी और ओबीसी छात्रों के उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति की संख्या बढ़ाने का भी वादा किया है.

BJP से सीधी लड़ाई की तैयारी

टीएमसी ने अपने मेनिफेस्टो के जरिए भी साफ संकेत दिया है कि वो बीजेपी के खिलाफ सीधी लड़ाई के लिए तैयार है. पार्टी ने केंद्र की कई योजनाएं राज्य में अब तक लागू नहीं की हैं लेकिन अपने घोषणा पत्र में उनकी तर्ज पर नई स्कीम का ऐलान जरूर किया है.

जैसे-आयुष्मान योजना को हटाकर उसकी जगह बंगाल की स्वास्थ्य साथी योजना के तर्ज पर ₹10 लाख का स्वास्थ्य बीमा कवरेज वाला प्रोग्राम लाने का वादा किया है. इसके अलावा केंद्र की योजना की तर्ज पर राशन कार्ड धारक को प्रति माह 5 किलो मुफ्त राशन देने का वादा किया है.

MSP कानून की गांरटी का वादा

घोषणा पत्र में कहा गया है कि स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार, किसानों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी दी जाएगी. यह सभी फसलों की उत्पादन लागत से न्यूनतम 50% अधिक होगी. लेकिन क्या पार्टी एमएस स्वामीनाथन की सभी सिफारिशों को लागू करेगी, इसका जिक्र मेनिफेस्टो में कहीं नहीं है.

कुल मिलाकर देखें तो टीएमसी के घोषणा पत्र में कुछ नया नहीं है, जो योजनाएं बंगाल में लागू की गई हैं, उसी को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने की बात कही गई है. लेकिन उसका मुख्य फोकस महिला और मुस्लिम वोटर्स पर ही है.

ममता बनर्जी किसी भी तरह से बंगाल में बीजेपी को रोकने की कोशिश में हैं, जो 2014 के 2 सीट के मुकाबले 2019 में 18 सीट जीतने में सफल हुई थी.

वहीं, हाल ही में आए 2024 के ओपिनियन पोल में भी बंगाल में बीजेपी की सीट 2019 के मुकाबले बढ़ती दिखाई गई है. ऐसे में ममता बनर्जी किसी भी तरह अपना 2014 का प्रदर्शन दोहराने की कोशिश में जुटी है, जहां उन्हें 42 में से 34 सीटों पर जीत मिली थी.

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