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उत्तर प्रदेश के उपचुनाव में हर पार्टी का कुछ न कुछ दांव पर है. 3 नवंबर को 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव है. बीजेपी के पास इन खाली सात में से 6 सीटें हैं. कोरोना संकट, राम मंदिर निर्माण और हाथरस कांड के बवाल के बाद पार्टी पर अब इन सीटों को बचाए रखने की चुनौती है. इन सात में से एक सीट समाजवादी पार्टी के पास है और एसपी मुख्य विपक्षी पार्टी बनने की कोशिश में कुछ और सीटें जीतने के लिए दम लगाएगी.
फिलहाल, एसपी के पास राष्ट्रीय लोकदल का साथ भी है. वहीं जिस कदर यूपी के मुद्दों को लेकर प्रियंका गांधी एक्टिव हैं, उनकी साख भी दांव पर है. बीएसपी भी बीते साल से उपचुनाव नहीं लड़ने की परंपरा तोड़ती दिख रही है. लेकिन पार्टी सुप्रीमो ने हाल ही में एसपी को हराने और बीजेपी के समर्थन तक की बात कह दी थी, तो अब उन्हें इस चुनाव में विपक्षी पार्टियों के वोट काटने वाली पार्टी समझा जा रहा है.
कुल मिलाकर अलग-अलग लड़ रही विपक्षी पार्टियां खुद को मुख्य मुकाबले में बताने की कोशिश में हैं और बीजेपी बिखरे विपक्ष का फायदा लेने की कोशिश में है.
बीजेपी-बीएसपी के गठबंधन की सरकार में जब मायावती मुख्यमंत्री थी तब वीरेंद्र सिंह सिरोही राजस्व मंत्री हुआ करते थे. राज्य की राजनीति में अच्छा रसूख रखने वाले बुलंदशहर से बीजेपी विधायक सिरोही के निधन के बाद ये सीट खाली हो गई थी. अब बीजेपी ने वीरेंद्र सिंह सिरोही की पत्नी ऊषा सिरोही को उम्मीदवार बनाया है.
समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोकदल ने इस सीट पर संयुक्त उम्मीदवार प्रवीण कुमार को उतारा है. प्रवीण पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री जगवीर सिंह के बेटे हैं. बीएसपी ने हाजी यूनुस को मैदान में उतारा है, जो पार्टी के ही पूर्व विधायक हाजीम अली के भाई हैं. जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार सुशील चौधरी हैं. इस सीट पर भीम आर्मी कैंडिडेट हाजी यामीन भी मैदान में हैं. उपचुनाव में इस सीट से भीम आर्मी की आजाद समाज पार्टी भी चुनावी आगाज कर रही है.
2017 विधानसभा चुनाव में बुलंदशहर की इस सीट पर बीजेपी को करीब 46 फीसदी, बीएसपी को 36 फीसदी और समाजवादी पार्टी को 10 फीसदी वोट शेयर हासिल हुआ था. वहीं आरएलडी को 7 फीसदी के करीब वोट मिले थे.
अमरोहा जिले की नौगावां सादात सीट पर कैबिनेट मंत्री रहे चेतन चौहान के निधन के कारण चुनाव हो रहे हैं. इस सीट पर बीजेपी ने चेतन चौहान की पत्नी संगीता चौहान को टिकट दिया है. इनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के सैय्यद जावेद अब्बास, बीएसपी के मोहम्मद फुरकान अहमद और कांग्रेस के कमलेश सिंह से है. फिलहाल, चेतन चौहान की आक्समिक निधन की वजह से क्षेत्र में सहानुभूति की लहर है
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को करीब 42 फीसदी, जावेद अब्बास को 33 फीसदी, बीएसपी को 17 और आरएलडी को 6 फीसदी वोट हासिल हुए थे. इस चुनाव में एसपी और आरएलडी के साथ आने से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को थोड़ा फायदा मिल सकता है.. मुख्य मुकाबला भी इन दोनों पार्टियों के बीच बताया जा रहा है.
2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी के जन्मेजय सिंह को पूर्वांचल की देवरिया सदर सीट से 48 फीसदी वोट हासिल हुए थे. जन्मेजय सिंह के निधन के बाद ये उपचुनाव हो रहे हैं लेकिन पार्टी ने इस सीट से जन्मेजय सिंह के बेटे अजय सिंह को टिकट नहीं दिया है. पिता की मौत के बाद इलाके में सहानुभूति की लहर को भांपते हुए अजय सिंह बागी हो गए हैं और निर्दलीय चुनावी मैदान में हैं.
ब्राह्मण बाहुल्य वाली इस सीट पर सारे समीकरण बदले नजर आ रहे हैं. बीजेपी, एसपी, बीएसपी, कांग्रेस सभी दलों ने यहां से ब्राह्मण उम्मीदवार ही खड़े किए हैं. विकास दुबे एनकाउंटर केस के बाद जिस तरीके से ब्राह्मण समुदाय के लोगों की बीजेपी से नाराजगी की बात सामने आ रही थी, बीजेपी नहीं चाहती थी कि इस सीट से ऐसे कोई संकेत जाए. सीट के जानकार ये बताते हैं कि एक ये भी कारण हैं कि पार्टी ने जन्मेजय सिंह के परिवार की जगह डॉ सत्य मणि त्रिपाठी को कैंडिडेट बनाया है. हालांकि, अजय सिंह अगर निर्दलीय लड़ रहे हैं तो वो ये बीजेपी के लिए बहुत अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती है.
2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी की 'लहर' थी. सीएम योगी आदित्यनाथ के गढ़ गोरखपुर के इस पड़ोसी जिले में जन्मेजय सिंह को 48 फीसदी वोट मिले थे वहीं दूसरे नंबर पर आए समाजवादी पार्टी उम्मीदवार सिर्फ 23 फीसदी ही वोट हासिल कर सके थे.
यूपी के बदनाम रेप के आरोपी नेता कुलदीप सिंह सेंगर की विधायकी जाने के बाद से बांगरमऊ की सीट खाली है. 'दाग' से बचने के लिए बीजेपी ने उन्नाव जिले में आने वाली इस सीट पर कुलदीप सेंगर के किसी सगे संबंधी को टिकट न देकर पूर्व जिलाध्यक्ष श्रीकांत कटियार पर भरोसा जताया है. हालांकि, उन्नाव से बीजेपी साक्षी महाराज गाहे-बगाहे रेप के आरोपी सेंगर की 'तारीफ' करते नजर आ जाते हैं. फिलहाल, तो साक्षी महाराज प्रचार में जुटे हैं और कब्रिस्तान-शमसान का मुद्दा एक बार फिर उन्होंने उठा दिया है.
उन्नाव केस के बाद यहां बीजेपी की खूब किरकिरी हुई थी. फिलहाल, हाथरस कांड के बाद भी महिला सुरक्षा को लेकर प्रदेश सरकार की किरकिरी हुई थी. ऐसे में कांग्रेस ने महिला प्रत्याशी आरती बाजपेई को मैदान में उतारा है. आरती राजनीतिक परिवार से आती हैं और पहले भी कांग्रेस के टिकट पर अपनी किस्मत आजमा चुकी हैं. हालांकि, चुनाव से ठीक पहले उन्नाव से कांग्रेस की सांसद रह चुकी अन्नु टंडन के इस्तीफे के बाद कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ सकती हैं. बीएसपी ने महेश पाल और समाजवादी पार्टी ने सुरेश पाल पर भरोसा जताया है.
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कुलदीप सिंह सेंगर को करीब 44 फीसदी वोट मिले थे. एसपी के बदलू खां को 30 फीसदी और बीएसपी के इरशाद खान को 22 फीसदी वोट हासिल हुए थे.
जौनपुर जिले की मल्हनी सीट पर समाजवादी पार्टी के विधायक पारसनाथ यादव के निधन के बाद ये सीट खाली है. कैबिनेट मंत्री रह चुके पारसनाथ की पहचान लोकप्रिय और जनाधार वाले नेता की रही है वो कई बार चुनाव जीत चुके हैं. 2017 में एक तरफ जहां बीजेपी के लहर की बात की जा रही थी, इस सीट पर बीजेपी के सतीश कुमार सिंह चौथे स्थान पर रहे थे और पारसनाथ ने करीब 34 फीसदी सीट हासिल की थी.
अब एसपी ने उनके बेटे लकी को यहां से उम्मीदवार बनाया है. बीजेपी ने मनोज सिंह को यहां से टिकट दिया है. 2017 विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर आए बाहुबली नेता धनंजय सिंह इस बार निर्दलीय मैदान में हैं. ऐसी चर्चा थी कि बीजेपी से टिकट हासिल करने के लिए धनंजय ने खूब कोशिशें की थी, निषाद पार्टी ने भी जोर लगाया लेकिन बीजेपी नहीं मानी. अब निषाद पार्टी बीजेपी के साथ है.
बीएसपी ने जयप्रकाश दुबे और कांग्रेस ने राकेश मिश्रा दो ब्राह्मण कैंडिडेट्स पर भरोसा दिखाया है.
पिछले विधानसभा चुनाव में पारसनाथ यादव को करीब 34 फीसदी, निषाद पार्टी के धनंजय सिंह को 23 फीसदी, बीएसपी के विवेक यादव को 22 फीसदी और बीजेपी के सतीश सिंह को 19 फीसदी वोट हासिल हुए थे.
कानपुर की घाटमपुर सीट पर मंत्री कमलरानी वरुण के निधन के बाद से खाली है. कमलरानी वरुण का निधन कोरोना की वजह से हो गया था. सुरक्षित सीट घाटमपुर सीट से बीजेपी ने कमलरानी वरुण के परिवार से बाहर के व्यक्ति को टिकट दिया है. बीजेपी ने यहां से कानपुर बुंदेलखंड क्षेत्र में अनुसूचित मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र पासवान प्रत्याशी बनाया है. समाजवादी पार्टी ने इंद्रजीत कोरी पर दांव खेला है. बीएसपी ने कुलदीप कुमार संखवार को और कांग्रेस ने कृपा शंकर को टिकट दिया है. दलित समुदाय बहुल इस सीट पर हाथरस कांड का असर भी इस सीट पर देखा जा सकता है.
पिछले विधानसभा चुनाव में कमलरानी वरुण को बंपर वोट हासिल हुए थे. उन्हें 49 फीसदी वोट मिले थे और बीएसपी की सरोज को 25 फीसदी और कांग्रेस के नंदराम सोनकर को 21 फीसदी वोट मिले थे.
फिरोजाबाद की टूंडला सुरक्षित सीट योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री एसपी सिंह बघेल के सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई है. काफी दिनों से खाली इस सीट पर बीजेपी ने प्रेमपाल धनगर को मैदान में उतारा है. इनके सामने समाजवादी पार्टी के महराज सिंह धनगर चुनाव मैदान में हैं. बीएसपी ने संजीव कुमार चक को मैदान में उतारा है. बता दें कि इस सीट से 2007 और 2012 में बीएसपी जीत चुकी है. बघेल,जाटव, यादव समुदाय के यहां काफी वोटर हैं, जाटव हमेशा से बीएसपी को वोट करते आए हैं.
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के एसपी बघेल को 49 फीसदी वोट हासिल हुए थे. बीएसपी को 26 फीसदी और एसपी को 23 फीसदी वोट मिले थे.
यूपी के हर चुनाव में जाति का समीकरण भी अहम होता है. ऐसे में जानते हैं कि किस पार्टी ने जाति के हिसाब से किस पर दांव लगाया है-
(इनपुट: IANS से भी)
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