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PMO से चले पार्टी में अटके, एके शर्मा पर आखिर योगी की ही चली?

एके शर्मा को सरकार में बड़ी जगह की चर्चा के बीच बना दिया गया प्रदेश उपाध्यक्ष

मुकेश बौड़ाई
पॉलिटिक्स
Published:
AK Sharma CM Yogi| एके शर्मा को सरकार में बड़ी जगह की चर्चा के बीच बना दिया गया प्रदेश उपाध्यक्ष
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AK Sharma CM Yogi| एके शर्मा को सरकार में बड़ी जगह की चर्चा के बीच बना दिया गया प्रदेश उपाध्यक्ष
(फोटो- AlteredbyQuint)

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मोदी के भरोसेमंद एके शर्मा को डिप्टी सीएम बनाए जाने की चर्चा महीनों चली लेकिन आखिर में उन्हें यूपी बीजेपी का उपाध्यक्ष बना दिया गया. यानी सरकार में उनका कोई रोल नहीं रहेगा. तो बीजेपी नेतृत्व के इस फैसले को क्या योगी आदित्यनाथ के कद और उनकी जीत की तरह देखा जाना चाहिए? ऐसा हम क्यों कह रहे हैं और ये पूरा विवाद आखिर क्या है ये जान लेते हैं.

यूपी बीजेपी में योगी के खिलाफ सुगबुगाहट

यूपी में बन रही इस नई कहानी और एके शर्मा की एंट्री के पीछे की कहानी जानने के लिए हमें कुछ महीने पहले हुए घटनाक्रम पर नजर डालनी होगी. यूपी में भले ही बीजेपी नेताओं की सीएम योगी आदित्यनाथ से कुछ नाराजगी रही हो, लेकिन कभी ये खुलकर सामने नहीं आई. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर और पंचायत चुनाव के बाद से ही तमाम ऐसी चर्चाएं और कयास शुरू हो गए, जिनसे लगा कि यूपी बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है.

बताया गया कि यूपी में बीजेपी के तमाम बड़े नेता और मंत्री सीएम योगी आदित्यनाथ के रवैये से नाखुश हैं. साथ ही पंचायत चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन को लेकर भी सवाल उठे. यहां तक कहा गया कि पीएम मोदी और अमित शाह भी सीएम योगी को लेकर खुश नहीं हैं.

बीजेपी नेतृत्व ने टटोली यूपी के नेताओं की नब्ज

इन तमाम खबरों को हवा तब मिली, जब केंद्र से कुछ बड़े नेता यूपी पहुंचने लगे. साथ ही नेताओं और मंत्रियों से फीडबैक लेने की खबरें भी सामने आईं. आरएसएस के बड़े नेता दत्तात्रेय होसबोले मई में यूपी पहुंचे. जहां उन्होंने कई बीजेपी नेताओं से मुलाकात की. इस मुलाकात को लेकर यूपी बीजेपी को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई. इसके बाद दिल्ली के नेताओं की यूपी में मुलाकातों का सिलसिला लगातार जारी रहा. यूपी प्रभारी राधा मोहन सिंह और महासचिव बीएल संतोष ने भी यूपी में मंत्रियों और नेताओं की नब्ज टटोलनी शुरू कर दी.

इस खींतचान के बीच कुछ दिन पहले योगी आदित्यनाथ अचानक दिल्ली पहुंच गए. बताया गया कि जो विवाद चल रहा था, उसे लेकर योगी आदित्यनाथ को दिल्ली बुलाया गया था. इस दौरान पीएम मोदी और अमित शाह के साथ हुई मुलाकातों में यूपी में मौजूदा हालात को लेकर बातचीत हुई. इस बातचीत के बाद बीजेपी नेताओं ने हमेशा की तरह सब कुछ ठीक है वाला मैसेज मीडिया और जनता को दिया.

एके शर्मा की यूपी में एंट्री से बढ़ गया विवाद

इतना सब कुछ आपने समझ लिया कि यूपी में पिछले दिनों क्या चल रहा था. अब इस सबके बैकग्राउंड में एक शख्स ऐसा था, जो दबे पांव यूपी की सियासत में बड़ी एंट्री करने वाला था. जनवरी 2021 में एके शर्मा ने अचानक रिटायरमेंट लिया और बीजेपी में शामिल हो गए. अब इस कदम को लोग समझ पाते कि बीजेपी ने यूपी में उन्हें अपना एमएलसी घोषित कर दिया.

एके शर्मा कोई आम आईएएस अधिकारी नहीं थे, जिन्हें यूपी भेजने पर चर्चा नहीं होती. शर्मा पीएम मोदी के सबसे खास और करीबी अधिकारियों में से एक हैं. गुजरात में मुख्यमंत्री रहने के दौरान मोदी ने कई साल तक उन्हें अपने साथ रखा, जब प्रधानमंत्री बने तो दिल्ली बुला लिया और रिटायरमेंट तक वो केंद्र सरकार के साथ तमाम अहम मंत्रालयों में काम करते रहे. उनकी यूपी में एंट्री के बाद से ही पीएम मोदी, अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के बीच विवाद की चर्चाएं तेज हुईं.

पीएम मोदी के साथ पूर्व आईएएस एके शर्मा(फोटो: aksharma.in)
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एके शर्मा ने खुद कहा कि उन्हें मोदी जी राजनीति में लाए और उन्होंने शुक्रिया भी कहा. जो अटकलें थीं, उनके मुताबिक एके शर्मा को यूपी में डिप्टी सीएम बनाया जा सकता था. या फिर सरकार में ऐसी ही कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती थी. लेकिन अंत में ऐसा कुछ नहीं हुआ. यानी नेतृत्व ने अगर कोशिश की थी, तो वो योगी आदित्यनाथ के सामने टिक नहीं पाईं. शर्मा को उपाध्यक्ष बना देने का साफ मतलब है कि फिलहाल उन्हें किनारे कर दिया गया है. कांग्रेस ने तो चुटकी भी ली है कि पीएमओ छोड़कर क्यों आए थे, प्रदेश उपाध्यक्ष बनने?

योगी को लेकर केंद्रीय नेतृत्व की मजबूरी

अब अगर एके शर्मा को सरकार में जगह नहीं मिलने को योगी की जीत कहा जा रहा तो इसे केंद्र सरकार की मजबूरी भी कहा जाना चाहिए. क्योंकि जाहिर सी बात है कि प्रधानमंत्री और केंद्रीय नेतृत्व के आगे किसी मुख्यमंत्री का टिक पाना इतना आसान नहीं है. इसके लिए बीजेपी नेतृत्व की ये मजबूरी थी कि चुनावों से पहले योगी की बगावत या फिर पार्टी में बड़ी कलह भारी पड़ सकती थी. वहीं चुनाव के नजदीक आकर कोई भी पार्टी मुख्यमंत्री बदलने से पहले 100 बार जरूरी सोचेगी. क्योंकि इससे जनता में गलत मैसेज जाता.

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