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पिछले एक हफ्ते से चर्चा का विषय रहे योगी आदित्यनाथ के मंत्रिमंडल का विस्तार बुधवार को हो गया. अब नए चेहरों के साथ योगी सरकार ने 56 मंत्रियों की ताकत तैयार कर ली है. जो 2017 में 47 मंत्रियों की थी. मंत्रिमंडल में जहां 18 नए चेहरों को शामिल किया गया तो वहीं 5 पुराने चेहरों को तरक्की दी गई. मंत्रियों के चयन में योगी सरकार ने 'संघ' और 'शीर्ष' की पसंद को ध्यान में रखते हुए 2022 में विधानसभा चुनाव को साधने का ब्लूप्रिंट तैयार किया है. मंत्रिमंडल विस्तार में नये चेहरों की एंट्री और पुराने मंत्रियों का प्रमोशन साफ तौर पर जाति और क्षेत्र के प्रभाव के आधार पर किया गया है. साफ शब्दों में कहें तो वोटों के गणित पर चेहरे सेट किए गये हैं.
योगी के मंत्रिमंडल विस्तार में संघ और शीर्ष यानी केंद्र का दबदबा खूब नजर आ रहा है. मंत्रिमंडल विस्तार दो दिन पहले ही सोमवार को होना तय था लेकिन अचानक रविवार रात को ये टाल गया. चर्चा रही कि वरिष्ठ बीजेपी नेता अरुण जेटली की तबीयत खराब होने की वजह से इसे टाला गया है, लेकिन इसके पीछे कारण कुछ और भी बताया जा रहा है. दरअसल, नए मंत्रियों के नाम को लेकर कुछ साफ-साफ राय नहीं बन पा रही थी. इसे लेकर योगी की संगठन और संघ के नेताओं से कई दौर की बातचीत भी हुई.
विस्तार से कुछ घंटे पहले यानी मंगलवार को सीएम योगी की लखनऊ में संघ के बड़े नेताओं से साथ तकरीबन चार घंटे की बैठक चली. सूत्रों की मानें तो बैठक में सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले समेत दोनों क्षेत्र प्रचारक और सभी प्रांत प्रचारक शामिल थे.
मंत्रिमंडल में नामों के चयन में योगी के हाथ में फैसले कम निर्देश का दबाव ज्यादा रहा. वाराणसी के डॉ. नीलकंठ तिवारी जो पहली बार विधायक हुए और मंत्री भी बने. इन्हें राज्यमंत्री से तरक्की दे स्वतंत्र प्रभार दिया गया है. कहा जाता है नrलकंठ सीधे तौर पर संघ से जुड़े हैं लिहाजा विधानसभा के टिकट से लेकर प्रमोशन दोनों में आगे हैं. इसी तरह वाराणसी के शहर उत्तरी से विधायक रविंद्र जायसवाल भी संघ की पसंद के चलते ही मंत्रिमंडल में स्थान बना पाये हैं.
बीजेपी अनिल को राजभर जाति को साधने के लिए तैयार कर रही है. जबकि वहीं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बेटे पंकज सिंह, जिनके मंत्री बनने की चर्चा जोरों पर थी पर वो लिस्ट से गायब हो गये. हालांकि इनकी भी संघ में जड़े कमजोर नही हैं लेकिन शीर्ष में ये उतने खास साबित नहीं हो पाये हैं.
मंत्रिमंडल के विस्तार के पीछे 2022 एक बहुत बड़ा कारण है. योगी सरकार का तकरीबन आधा कार्यकाल बीत चुका है ऐसे में अब बचे हुए आधे समय में सरकार के सामने सूबे में विकास के साथ-साथ जातिगत गणित मजबूत करना एक चुनौती थी. जिसे योगी सरकार ने मंत्रिमंडल विस्तार से साधने का जतन किया है.
अभी तक 43 मंत्रियों के साथ सरकार चला रही थी. मंत्रियों के पास कई विभागों की जिम्मेदारी थी जिसके चलते अपने दायित्व का सही तरीके से निर्वहन नहीं कर पा रहे थे. इसके अलावा संगठन के सामने अपने विधायकों को पद देकर साधने की भी जिम्मेदारी थी. ऐसा न होने की सूरत में विधायकों में नाराजगी बढ़ती और इसका सीधा असर 2022 में होने वाले चुनावों पर पड़ता. राजनीति के जानकार 2022 के चुनाव को ही योगी सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार से पहले चार मंत्रियों के इस्तीफे से जोड़कर देख रहे हैं.
मंत्रिमंडल विस्तार को जातिगत नजरिए पर भी पूरी तरह फीट किया गया है. योगी के मंत्रिमंडल में 6 कैबिनेट, 6 राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 11 राज्य मंत्रियों ने शपथ ली. मंत्रिमंडल विस्तार में 23 मंत्रियों में से 6 ब्राह्मण, 2 क्षत्रिय, 2 जाट, 1 गुर्जर, 3 दलित, 2 कुर्मी, 1 राजभर, 1 गडरिया, 3 वैश्य, 1 शाक्य और 1 मल्लाह विधायक को जगह मिली है. हालांकि पार्टीयां चाहें जितना भी विकास, राष्ट्र या मुद्दों की बात करें लेकिन चुनाव जीतने के लिए जातिगत समीकरण का सही होना जरुरी है. इसे फॉर्मूला मान बीजेपी सियासी मैदान में खुद को मजबूत बनाती जा रही है.
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Published: 21 Aug 2019,04:56 PM IST