मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019Politics Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019क्या मायावती अपनी राजनीतिक जमीन खो चुकी हैं? समझिए BSP का गणित

क्या मायावती अपनी राजनीतिक जमीन खो चुकी हैं? समझिए BSP का गणित

UP assembly elections 2022 में BSP की परफॉर्मेंस पर निर्भर करेगा मायावती का भविष्य

शादाब मोइज़ी
पॉलिटिक्स
Published:
<div class="paragraphs"><p>BSP चीफ मायावती&nbsp;</p></div>
i

BSP चीफ मायावती 

(फाइल फोटो: पीटीआई)

advertisement

पिछले कुछ सालों से हर चुनाव से पहले राजनीतिक पंडित, मीडिया और विपक्षी कहते हैं कि 'मायावती का राजनीतिक करियर खत्म, BSP का कोई अस्तितव नहीं बचेगा, मायावती अपनी राजनीतिक जमीन खो चुकी हैं." लेकिन क्या ये सच है?

उत्तर प्रदेश में साल 2022 में विधानसभा चुनाव (UP Election 2022) होने हैं, ऐसे में अगर ऊपर पूछे गए सवालों के जवाब समझने हैं तो हमें मायावती के चुनावी गणित, वोटरों के साथ केमिस्ट्री और राजनीतिक पार्टियों के साथ 'गांठ-बंधन' की मिस्ट्री को भी समझना होगा. गांठ-बंधन इसलिए क्योंकि मायावती ने विचारधाराओं के बंधन से परे जाकर मुलायम सिंह यादव, बीजेपी, कांग्रेस, अखिलेश सबसे गठबंधन किया भी और रिश्ते तोड़ भी डाले.

मायावती को लेकर सवाल क्यों?

हाल ही में बीएसपी से निष्कासित 9 विधायक अखिलेश यादव से मिले. मुलाकात के बाद कहा कि उनके लिए एसपी में जाना एक विकल्प है. अब के पास सिर्फ 7 विधायक रह गए हैं.

दरअसल, मायावती की राजनीतिक जान दलित वोटरों के हाथ में हैं. यूपी के 21% दलित वोटर जीत-हार में अहम भूमिका निभाते आए हैं. लेकिन पिछले कुछ सालों में ये वोटर मायावती को छोड़ बीजेपी के हिंदुत्व के एजेंडे के साथ खुद को जोड़ते नजर आए हैं.

यही नहीं पिछले कुछ वक्त से मायावती के पॉलिटिकल स्टैंड को लेकर भी वोटर कन्फ्यूज है. मायावती जहां बीजेपी पर नर्म हैं वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पर आक्रामक. जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के साथ थीं, और इसी गठबंधन के सहारे जीरो (2014 लोकसभा चुनाव) से 10 सीट का सफर भी तय किया.

मायावती पर कोरोना मिसमैनेजमेंट जैसे मुद्दों पर भी बीजेपी सरकार के खिलाफ चुप्पी बनाए रखने का आरोप लगता रहा है, वहीं राज्यसभा चुनाव के दौरान बीएसपी के कैंडिडेट को बीजेपी का समर्थन करना भी कई सवाल खड़े करता है.

यही नहीं राज्यसभा चुनाव के बाद मायावती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह तक कह दिया कि अगर समाजवादी पार्टी को विधानसभा चुनाव में हराने के लिए बीजेपी के साथ जाना पड़े तो उनकी पार्टी इसके लिए भी तैयार है.

इसके अलावा मुसलमान वोटर भी बहन जी के रुख से खुश नजर नहीं आ रहे हैं. राम मंदिर से लेकर तीन तलाक जैसे ढ़ेरों मुद्दे को लेकर ज्यादातर मुसलमान वोटर बीजेपी से अलग है, वहीं मायावती का इन मुद्दों पर साफ स्टैंड न लेना भी मुसलमान वोटर के मन में बीएसपी से दूरी बनाने के लिए काफी है.

मायावती का चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड

अब बात करते हैं मायावती के चुनावी रिकॉर्ड की. 14 अप्रैल 1984 को बनी बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश में अपना पहला विधानसभा चुनाव साल 1993 में लड़ा था. 164 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली बीएसपी को 67 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. करीब 11 फीसदी वोट मिले थे.

पार्टी धीरे-धीरे तर्की की ‘हाथी’ पर चढ़ती गईस लेकिन 2012 से पार्टी कमजोर होती गई.

2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीएसपी को 25.95% वोट मिले थे, लेकिन 2017 में ये घटकर 22.23% रह गए. इस चुनाव में बीजेपी ने 403 में से 312 सीटें जीती थीं. मतलब 39.67 फीसदी वोट. वहीं मायावती की बीएसपी के सिर्फ 19 विधायक ही सदन पहुंच सके. मायावती की करारी हार हुई थी.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

लोकसभा चुनाव में मायावती की परफॉर्मेंस

2009 के मुकाबले 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव में बीएसपी का वोट शेयर देशभर में गिरता रहा.

2009 में जहां बीएसपी का वोट शेयर देशभर में 6.56 फीसदी था वहीं ये 2014 में घटकर 4.19% और 2019 में 3.67% रह गया.

2014 लोकसभा चुनाव में बीएसपी उत्तर प्रदेश में एक भी सीट जीत नहीं सकी थी, लेकिन उसका वोटशेयर 19.77% रहा था. वहीं 2019 लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बाद बीएसपी ने 10 सीटें तो जीत लीं, लेकिन वोट शेयर 19.43% रहा. मतलब मामूली गिरावट.

मायावती को सबसे ज्यादा वोट साल 2007 में मिले थे, जिसके बाद वो मुख्यमंत्री बनी थीं. साल 2007 में बीएसपी को 403 में से 206 सीटें हासिल हुई थी. वोट शेयर करीब 30 फीसदी. लेकिन 2012 में मुलायम सिंह यादव ने वापसी की और बेटे अखिलेश को सत्ता की चाबी सौंप दी. 2012 में मायावती की पार्टी को सिर्फ 80 सीटें मिली थी, जब्कि समाजवादी पार्टी को 403 में से 224 सीट. बीएसपी का वोट शेयर भी घटकर 25 फीसदी रह गया था.

मायावती के परफॉर्मेंस पर बीजेपी नाम की मुश्किल है तो साथ ही अब भीम आर्मी या कहें चंद्रेशेखर आजाद की पार्टी आजाद समाज पार्टी भी वोट बैंक में सेध लगा सकती है.

अगर आपने ऊपर के गणित को सही से समझा है तो एक बात साफ है कि बीएसपी का ग्राफ लुढ़क जरूर रहा है लेकिन रास्ते बंद होते नहीं दिख रहे. क्योंकि भले ही सीट कम होती गई हो लेकिन वोट शेयर अब भी उत्तर प्रदेश में बहुत हद तक मायावती को वापसी या 'तुरुप का इक्का' बनने का मौका दे सकती है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT