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BSP के बागियों का अखिलेश के पास जाना 2022 चुनाव के लिए क्या इशारा?

यूपी चुनाव 2022 में बीएसपी का क्या होने वाला है?

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बीएसपी के बागियों की अखिलेश से मुलाकात-कहने को छोटी बात लग सकती है लेकिन इस सियासी घटना में 2022 के यूपी चुनाव को लेकर बहुत सारे संकेत छिपे हुए हैं. अब लगभग साफ हो चुका है कि 2022 की बिसात कैसी होगी और मुख्य मुकाबला किन पार्टियों के बीच होना है.

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मुकाबला योगी बनाम अखिलेश

बीएसपी के जिन विधायकों ने अखिलेश यादव से मुलाकात की, उन्हें मायावती पहले ही निष्कासित कर चुकी हैं. इसलिए हेडलाइन ये नहीं कि बीएसपी और कमजोर हो गई है. असल बात ये है कि बागी अखिलेश से मिले हैं. अगर बीएसपी के नौ बागी पिछले दरवाजे से जाकर अखिलेश से मिलना तय करते हैं और बाहर निकलकर कहते हैं कि हमारे लिए सारे विकल्प खुले हैं और एक विकल्प एसपी में जाना है तो इशारा मिलता है कि अब यूपी में एसपी ही मुख्य विपक्षी पार्टी है और अगले चुनाव में लड़ाई बीजेपी बनाम एसपी ही है.

फिर बीएसपी कहां है?

वोटर कन्फ्यूज है. खासकर मुसलमान. मायावती के कई फैसलों को देखकर सवाल उठे कि क्या अब बीएसपी की लाइन बीजेपी की लाइन पर चलने की है. कुछ उदाहरण-

राज्यसभा चुनाव-नवंबर 2020 में जब उत्तर प्रदेश कोटे से 10 सीटों पर चुनाव हो रहे थे, तब बीजेपी के 305 विधायक और उसके सहयोगी दलों के कुछ विधायकों को जोड़कर बीजेपी आसानी से 9 सीट जीत सकती थी. लेकिन उसकी जगह उसने अपने 8 उम्मीदवार ही उतारे और एक सीट बसपा के राम जी गौतम को जीतने दिया. राज्यसभा चुनाव के बाद मायावती ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह स्पष्ट रूप से घोषणा की कि वो सपा को विधानसभा चुनाव में हराने के लिए बीजेपी के साथ जाने को तैयार हैं.

अनुच्छेद 370- बीएसपी ने अगस्त 2019 में सबको तब चौंकाया जब जम्मू-कश्मीर के स्पेशल स्टेटस को समाप्त करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का उसने समर्थन किया. मायावती का तर्क था कि बाबा साहेब देश की समानता,एकता व अखंडता के पक्षधर थे. वो 370 के प्रावधान के पक्ष में नहीं थे, इसलिए बीएसपी ने इसको हटाए जाने का समर्थन किया है. जब पूरा विपक्ष महबूबा मुफ्ती ,फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला को हाउस अरेस्ट किए जाने का विरोध कर रहा था तब मायावती चुप रहीं.

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तीन तलाक बिल- जुलाई 2019 में बसपा ने तीन तलाक बिल पर वोटिंग के समय मौजूद ना रहकर बीजेपी को अप्रत्यक्ष रूप से मदद की. एक महीने बाद ही मायावती ने सांसद दानिश अली को लोकसभा में बीएसपी नेता पद से तब हटा दिया जब उन दोनों में तीन तलाक कानून और अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर पार्टी के स्टैंड को लेकर मतभेद सामने आया.

लव जिहाद, एंटी सीएए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ योगी सरकार के स्टैंड और ध्रुवीकरण के कारण मुसलमान वोट बीजेपी से पूरी तरह कट सकता है. चूंकि बीएसपी पर बीजेपी की सहयोगी हो जाने का शक है और कांग्रेस वो जुझारूपन दिखा नहीं पा रही है तो मुसलमान एसपी की तरफ रुख कर सकते हैं. 19% मुसलमान एक तरफ ढल गए तो किसी भी पार्टी की सियासी किस्मत बना या बिगाड़ सकते हैं.
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निर्णायक होंगे दलित

मायावती अभूतपूर्व संकट में नजर आ रही हैं. सिर्फ 19 सीटें जीतकर बीएसपी पहले ही जमीन पर आ गई थी, अब निष्कासन के बाद सात के रसातल पर खड़ी है. इससे भी बुरी बात पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा होना है. लिहाजा 2022 में बड़ा सवाल ये होगा कि क्या मायावती का दलित वोट बैंक और खिसकेगा? और खिसकेगा तो किधर जाएगा? जिधर जाएगा वो छा जाएगा. लिहाजा हर पार्टी दलितों को पटाने का काम करेंगी.

पिछली बार बीजेपी ने 403 में से 312 सीटें जीती थीं, मतलब साफ है कि हर तबके से उसे वोट मिले थे. लेकिन इस बार अलग ये हुआ है कि हर तबका बीजेपी से खफा है. कोरोना मिसमैनेजमेंट से लेकर 'माई वे या हाईवे' स्टाइल की राजनीति से लोगों में गुस्सा है. अगर बीएसपी और बीजेपी से दलित वोटर का मोहभंग हुआ तो यूपी चुनाव में कुछ भी हो सकता है.
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2012 में यूपी के 85 रिजर्व सीटों पर बीजेपी को 14% वोट मिले थे. लेकिन 2017 में पार्टी 40% वोट ले आई. समाजवादी पार्टी ने 2012 में इन सीटों पर 31% वोट पाए थे,जो कि 2017 में 19% रह गए. बीएसपी ने 2012 में 27% वोट पाए थे लेकिन 2017 में उसकी हालत पतली हो गई. जाहिर है कि यूपी के 21% दलितों की विनर तय करने में अहम भूमिका होती है. और इनका एक हिस्सा इधर से उधर जाए तो सरकारें बनती और गिरती हैं.

बीजेपी की उम्मीद

अखिलेश ने अभी से साफ कर दिया है कि वो न तो कांग्रेस से गठबंधन करेंगे और ना ही बीएसपी से. मतलब राज्य में भले ही मुख्य मुकाबला बीजेपी बनाम एसपी का होगा. लेकिन छोटे-छोटे मोर्चे और खुलेंगे. बीएसपी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, चंद्रशेखर, ओवैसी...ये सब अभी से ताल ठोंक रहे हैं. कोई मुसलमानों को रिझा रहा है तो कोई दलितों को. ऐसे में बीजेपी यही उम्मीद कर सकती है कि ये पार्टियां जमकर वोट काटें और एंटी इन्कमबेंसी के वोट अखिलेश के पास जाकर जमा न हो जाएं.

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