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उत्तर प्रदेश (UP Election 2022) में क्या दोबारा बीजेपी की सरकार बनने जा रही है? या फिर बीजेपी को सत्ता से हाथ धोना पड़ सकता है? ये वो सवाल हैं जो मतदान के हर चरण के बाद महत्वपूर्ण होते चले गये हैं. इस सवाल का जवाब हर कोई जानना चाहता है.
मतदान के ट्रेंड और खास तौर पर बीजेपी पर मतदान के घटने-बढ़ने का प्रभाव को समझकर जवाब दिया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में क्या होने वाला है. यूपी में अब तक मतदान का ट्रेंड बीते चुनाव के मुकाबले गिरावट का रहा है. पहले की अपेक्षा कम मतदान हुए. सबसे पहले नज़र डालते हैं अब तक विभिन्न चरणों में हुए मतदान प्रतिशत और मतदान में आयी गिरावट पर.
उत्तर प्रदेश में बीजेपी की डबल इंजन वाली सरकार है. सत्ताधारी दल के लिए मतदान में कमी के क्या मायने हो सकते हैं यही उत्सुकता का विषय है. हम आगे उदाहरणों के जरिए यह बताने जा रहे हैं कि मतदान घटने से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को हो सकता है. बीते चुनावों में यह प्रवृत्ति देखने को मिली है कि जब मतदान बढ़ता है तो बीजेपी को इसका फायदा होता है और जब मतदान घटता है तो बीजेपी को इसका नुकसान उठाना पड़ता है.
हम छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखण्ड, हरियाणा और गुजरात में मतदान प्रतिशत में हुए बदलाव और उसके बाद नतीजों में आए फर्क पर बारी-बारी से नज़र डालते हैं. उस प्रवृत्ति को समझने की कोशिश करते हैं जिसकी हम चर्चा कर रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में 2018 में हुए विधानसभा चुनाव पर नजर डालते हैं. 2013 के मुकाबले मतदान में 0.68% की कमी आयी थी. मतदान में इस मामूली गिरावट ने ही बीजेपी को 2013 में 49 सीटों से 2018 में 15 सीटों पर पहुंचा दिया. बीजेपी के वोट प्रतिशत में 8.07% की बड़ी गिरावट देखी गयी. 2013 में बीजेपी को 41.04% वोट मिले थे जो घटकर 2018 में 32.97% रह गये.
यह भी उल्लेखनीय है कि 2008 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 50 सीटें मिली थीं।.तब पांच साल पहले यानी 2003 में हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले 0.79% अधिक मतदान हुआ था.
राजस्थान एक और उदाहरण है, जहां 2018 के विधानसभा चुनाव में विगत विधानसभा चुनाव के मुकाबले 0.98% वोट कम पड़े. वोटों के इस मामूली गिरावट का असर बीजेपी की सीटों में भारी गिरावट के रूप में देखने को मिला. बीजेपी की सीटें 163 से घटकर 73 रह गयीं. बीजेपी का वोट प्रतिशत जहां 2013 में 45.17% था वहीं वह 2018 में घटकर 38.77% रह गया.
झारखण्ड में 2019 के विधानसभा चुनाव में 1.24% मतदान घटा और बीजेपी सत्ता से बाहर हो गयी. न सिर्फ बीजेपी सत्ता से बाहर हुई, बल्कि मुख्यमंत्री समेत कई मंत्रियों को हार का मुंह देखना पड़ा था. बीजेपी की सीटें 35 से घटकर 25 रह गयी. हालांकि बीजेपी को मिले वोटों में 2.11% की बढ़ोतरी हुई थी, लेकिन इसका एक कारण यह भी था कि आजसू से गठबंधन नहीं हो पाने की वजह से बीजेपी अधिक सीटों पर चुनाव लड़ी थी.
हरियाणा एक और उदाहरण है जहां 2019 के विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत जबरदस्त तरीके से नीचे आया. पिछले चुनाव के मुकाबले 8.21% वोट कम पड़े. यहां वोट घटने का नतीजा बीजेपी को भुगतना पड़ा. बीजेपी की 47 सीटें घटकर 40 रह गयीं. हालांकि दूसरे दलों के सहयोग से खट्टर सरकार दोबारा सत्ता में आ गयी.
विभिन्न प्रदेशों के इन उदाहरणों से हम कह सकते हैं कि वोट प्रतिशत कम होने पर बीजेपी को नुकसान होता है. सीटे घटती हैं और सरकार भी गंवानी पड़ती है. इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो उत्तर प्रदेश के छह चरणों में मतदान प्रतिशत में गिरावट 1% से ज्यादा है. निश्चित तौर पर ऊपर के उदाहरण बताते हैं कि बीजेपी को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा.
वोट प्रतिशत बढ़ने से बीजेपी की सरकार रिपीट होती है. इसका उदाहरण भी छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश है. पश्चिम बंगाल का उदाहरण भी ले सकते हैं जहां वोट प्रतिशत बढ़ने से बीजेपी की सीटें और वोट प्रतिशत पहले की अपेक्षा बढ़ गयी थी. हालांकि वहां बीजेपी सरकार नहीं बना सकी थी.
विभिन्न पार्टियों से अलग बीजेपी पर यह प्रवृत्ति लागू होती दिखती है कि जब मतदाता पिछले चुनाव के मुकाबले ज्यादा मतदान करते हैं तो बीजेपी को फायदा होता है. वहीं, जब मतदाता उदासीन होते हैं यानी कम मतदान करते हैं तो बीजेपी को नुकसान होता है.
सवाल यह है कि उत्तर प्रदेश में झारखण्ड और राजस्थान की तरह मतदान कम होने से बीजेपी को भारी नुकसान उठाना होगा और पार्टी सत्ता से बाहर हो जाएगी या वह गुजरात की तरह सरकार बचाने में कामयाब हो जाएगी? क्या ऐसी भी स्थिति हो सकती है कि हरियाणा की तरह बीजेपी को उत्तर प्रदेश में भी कोई ऐसा सहयोगी मिल जा सकता है जिसके साथ पार्टी एक बार फिर यूपी में सरकार बना ले जाए?
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