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उत्तर प्रदेश चुनाव के पांचवें चरण (UP fifth phase polling) में 61 सीटों पर 54% वोट पड़े. इन सीटों पर साल 2012 में 57.80% और 2017 में 57.73% वोट पड़े थे. अबकी बार डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य की सिराथू और अयोध्या की सीटों पर मतदान हुए. पहले दूसरे चरण में जाट-मुस्लिम वोटर, तीसरे और चौथे चरण में यादव और सिख वोटर निर्णायक भूमिका में थे. अबकी बार के फेज में कुर्मी वोटर बड़ी भूमिका में था. ऐसे में समझते हैं कि पांचवें चरण के चुनाव में एसपी और बीजेपी में से कौन भारी पड़ा?
यूपी चुनाव में पांचवें फेज का चुनाव सभी पार्टियों के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन बीजेपी के लिए निर्णायक था और कहीं न कहीं निराशा हाथ लगी है. इसकी दो बड़ी वजहें हैं.
पहला शहरी वोटर बीजेपी का माना जाता है, लेकिन अब तक के चारों चरण की तरह ही पांचवें चरण में शहरों में वोट कम पड़े. 12 जिलों में प्रयागराज में सबसे कम 50% वोट पड़े. वहीं बाराबंकी में भी 54% ही वोट पड़े. जिस शहरी वोटर ने भारी उत्साह के साथ साल 2017 में बीजेपी को वोट देने निकला था, अबकी बार वह बूथ पर नहीं जा रहा है. ये बीजेपी के लिए चिंता का विषय है.
दूसरा, पांचवें चरण में सबसे ज्यादा 61 सीटों पर वोट पड़े. कुछ जिले ऐसे थे, जहां बीजेपी का होल्ड माना जाता है. पिछली बार बीजेपी को वोट देने वाला कुर्मी वोटर भी निर्णायक भूमिका में था, लेकिन टिकटों के बंटवारे और स्थानीय मुद्दों की वजह से कुर्मी वोटर भी बंटता हुआ दिखा. चित्रकूट की दो सीटों पर भले ही औसत से ज्यादा 59% वोट पड़े, लेकिन इन सीटों पर कुर्मी वोटर बंटता हुआ दिखा, जिसका सीधा फायदा एसपी को ही होगा.
उत्तर प्रदेश चुनाव के पांचवें चरण में अन्य चार चरणों की तुलना में कम वोट पड़े हैं. पहले फेज में 62.43%, दूसरे फेज में 64.66%, तीसरे में 62.28% चौथे फेज में 62.76% वोट पड़े. जबकि पांचवें फेज में सिर्फ 54% ही मतदान हुआ.
पांचवें चरण में जिन 12 जिलों में मतदान हुआ, उसमें औसत देखें तो अनुसूचित जाति के 24% वोटर हैं, लेकिन चार जिले ऐसे हैं जहां 26 से 36 प्रतिशत तक अनुसूचित जाति के वोटर हैं. इसमें जाटव और पासी समुदाय के लोग आते हैं. जाटव आमतौर पर बीएसपी के साथ जाता है, लेकिन पासी वोटर पिछले चुनाव में बीजेपी के साथ दिखा था, लेकिन अबकी बार इनमें फूट पड़ती दिख रही है.
कौशांबी, रायबरेली, बाराबंकी और चित्रकूट में औसत 30% अनुसूचित जाति के वोटर हैं. इनमें से पासी समुदाय ज्यादा हैं. इन चार सीटों पर औसत से करीब 4% ज्यादा वोटिंग हुई. इन सीटों पर बीएसपी के साथ ही पासी वोटर से एसपी को फायदा मिल सकता है.
पांचवें चरण में बहराइच में 33% और श्रावस्ती में 31% मुस्लिम आबादी है. दोनों जिलों में विधानसभा की 9 सीटें हैं. पांचवें चरण में इन 9 सीटों पर औसत से 4% ज्यादा वोट पड़े. बहराइच में 55% और श्रावस्ती में 58% वोट पड़े. सभी 12 जिलों पर औसत 53% वोट पड़े.
अयोध्या में विधानसभा की 5 सीटें हैं. अयोध्या में औसत 58% वोट पड़े. सीटों की बात करें तो अयोध्या सदर में अन्य सीटों की तुलना में सबसे कम 54% वोट पड़े. बीकापुर में 61%, गोसाइगंज में 59%, मिल्कीपुर में 56% और रुदौली में 60% वोट पड़े. अब सवाल की आखिर जहां पर मंदिर का निर्माण हो रहा है, वहां सबसे कम क्यों मतदान हुआ? शायद एक बड़ी वजह वोटर में उत्साह की कमी है.
अयोध्या के जरिए पांचवां चरण बीजेपी के लिए लिटमस टेस्ट माना जा रहा था, लेकिन उसमें कहीं न कहीं बीजेपी को झटका लगता दिख रहा है. अगर ये अनुमान सही साबित होता है तो 2024 में लोकसभा के चुनाव में बीजेपी के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है.
बीजेपी में ओबीसी का बड़ा चेहरे माने जाने वाली डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य सिराथू सीट से मैदान में हैं. यहां 56% वोट पड़े. यानी औसत से ज्यादा. लेकिन यहां चुनौती कड़ी दिखी. दरअसल, सिराथू सीट कौशांबी जिले में आती है. यहां 36% अनुसूचित जाति का वोटर है, जिसमें पासी करीब 3 लाख हैं. कुर्मी वोटर सबसे ज्यादा निर्णायक भूमिका में हैं.
सिराथू सीट पर इंद्रजीत सरोज बड़े बीएसपी नेता रहे हैं, उनका पिछड़ी और अनुसूचित जातियों में बड़ा होल्ड है, लेकिन अबकी बार वे बीएसपी छोड़कर एसपी में शामिल हो गए. दूसरी तरफ पल्लवी पटेल एसपी की तरफ से मैदान में हैं. ये कुर्मी वोटर पर पकड़ रखती हैं. ऐसे में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के लिए सीट निकालना किसी चुनौती से कम नहीं लग रही है.
पांचवें चरण में राजा भैया की कुंडा सीट सुर्खियों में रही. अबकी बार उन्हें उन्हीं के करीबी रहे गुलशन यादव से टक्कर मिल रही है. वे एसपी के टिकट से मैदान में हैं. कुंडा सीट पर साल 2012 में 52%, 2017 में 57% और साल 2022 में महज 48% ही वोट पड़े. मतदान के दौरान दिन भर एसपी बूथ कैप्चरिंग की शिकायत करती रही. गुलशन यादव पर पथराव भी हुआ. उनकी गाड़ी के शीशे तोड़ दिए गए.
आवारा पशुओं से परेशान किसान, इलाहाबाद में नौकरी की तैयारी करने वाले युवा और अयोध्या में राम मंदिर से जुड़े लोगों के लिए पांचवें चरण का मतदान था. किसान और युवा समय-समय पर बीजेपी के लिए अपनी नाराजगी जताता रहा है, लेकिन राम मंदिर का मुद्दा बीजेपी को फायदा पहुंचाने वाला था, लेकिन वहां 10 साल में सबसे कम वोट पड़े. अब सिर्फ दो चरणों के मतदान बचे हैं. जहां बीजेपी को चौथे और पांचवें चरण से ज्यादा चुनौती मिलती दिख रही है. ऐसे में 2017 की तुलना में बीजेपी की सीटें कम होती दिख रही हैं. अब इस कमी से एसपी जितना ज्यादा गेन कर पाएगी उतना ही सत्ता के करीब पहुंचेगी.
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