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UP चुनाव चौथा फेज:किसान-सिख ने बंपर मतदान किया,वोट ट्रेंड बता रहा कौन पड़ा भारी?

लखनऊ में जहां बीजेपी मजबूत मानी जा रही थी, वहां कम मतदान क्या संकेत देते हैं?

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उत्तर प्रदेश के चौथे चरण (UP Fourth Phase Voting) में 9 जिलों की 59 सीटों पर 58% मतदान हुआ. साल 2012 में 61.55% और साल 2017 में 62.20% वोट पड़े. अबकी बार के मतदान की खास बात रही कि जहां किसान आंदोलन का असर था, सिख वोट ज्यादा था या पासी बाहुलता वाली सीट थी, वहां मतदान ज्यादा हुआ. शहरी क्षेत्रों में कम वोट पड़े. बीजेपी के लिए चौथा चरण बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा था. ऐसे में समझते हैं कि इस चरण में बीजेपी को डेंट हुआ या प्लस में रही? पिछले तीन चरणों की तरह एसपी सीटों में बढ़ोत्तरी का नैरेटिव सेट करने में सफल हो पाएगी?

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उत्तर प्रदेश के चौथे चरण में 58% मतदान हुआ. बांदा में 57%, फतेहपुर में 56%, हरदोई में 55%, लखीमपुर खीरी में 62%, लखनऊ में 54%, पीलीभीत में 61%, रायबरेली में 58%, सीतापुर में 58% और उन्नाव में 54% वोट पड़े.

जहां किसानों पर जीप चढ़ाई गई, उस सीट पर बंपर वोट पड़े

यूपी चुनाव में लखीमपुर खीरी का किसान आंदोलन सुर्खियों में रहा. तिकोनिया में किसानों पर जीप चढ़ाने की घटना में मंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे पर एफआईआर दर्ज हुई. तिकोनिया निघासन विधानसभा क्षेत्र में आता है. यहां सुबह से ही वोटिंग प्रतिशत हाई रहा. औसत 58% वोट पड़े, लेकिन यहां पर 63% वोट पड़े. शायद ये किसानों का गुस्सा ही रहा हो, जो मतदान के जरिए निकला.

लखीमपुर में पलिया विधानसभा सीट भी है. यहां पर सिख वोटर बहुत ज्यादा है. किसान आंदोलन को लेकर बीजेपी के लिए सिखों में काफी नाराजगी थी. यहां भी 62% वोट पड़े हैं. यानी औसत से ज्यादा. 2017 में लखीमपुर की सभी 8 सीटें बीजेपी के पास थीं, लेकिन अबकी बार यहां कड़ी चुनौती मिलती दिख रही है.
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'मिनी पंजाब' में बीजेपी के पुराने समीकरण बिगड़ते दिखे

बंटवारे के बाद सिख समुदाय का एक बड़ा भाग लखीमपुर खीरी और पीलीभीत में आकर बस गया था. खीरी की तुलना में पीलीभीत में सिख ज्यादा है. पीलीभीत में पूरनपुर विधानसभा में सबसे ज्यादा सिख है. इसे मिनी पंजाब भी कहा जाता है. यहां 65% की भारी वोटिंग हुई. औसत से करीब 7% ज्यादा वोट पड़े.

पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी लगातार बीजेपी पर निशाना साधते रहे हैं. किसान आंदोलन पर भी मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा किया. यहां सिख वोटर के साथ ही जाटव और पासी वोटर भी निर्णायक भूमिका में हैं. यहां 62% से ज्यादा वोटिंग हुई. 2017 में यहां की सभी 4 सीटों पर बीजेपी काबिज हुई थी, लेकिन अबकी बार इन क्षेत्रों में बढ़ी वोटिंग और वरुण गांधी की नाराजगी भारी डेंट पहुंचा सकती है.
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मुस्लिम-बंगाली-सिख कॉम्बिनेश किसे फायदा पहुंचाएगा

चौथे चरण के मतदान में मुस्लिम बाहुलता वाली सीटों पर वोटिंग प्रतिशत को देखें तो पीलीभीत, लखनऊ और लखीमपुर खीरी में इनकी संख्या करीब 20% से ज्यादा है. पीलीभीत में 24.11% मुस्लिम आबादी है और 62% वोट पड़े. लखनऊ में मुस्लिम आबादी 21.46% है और 55% और लखीमपुर खीरी में 20.08% मुस्लिम आबादी और 63% वोट पड़े हैं. सीतापुर (19.93%) में 59% और हरदोई (13.59%) में 56% वोट पड़े.

पीलीभीत में औसत से करीब 4% ज्यादा वोट पड़े हैं. तराई बेल्ट वाले पीलीभीत में सिख और बांग्ला भाषा बोलने वाले वोटर भी हैं. मुस्लिम आबादी भी ज्यादा है. सिख पहले से ही बीजेपी से नाराज है. शायद ममता बनर्जी का बांग्ला भाषा बोलने वाले वोटर पर असर पड़ा हो. मुस्लिम का झुकाव सपा की तरफ दिख रहा है.ऐसे में ये कॉम्बिनेशन एसपी को बड़ा फायदा पहुंचा सकता है.
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जहां पासी वोटर ज्यादा-वहां अच्छी वोटिंग, क्या संकेत?

उत्तर प्रदेश के चौथे चरण में 9 जिलों में मतदान था, जिनमें से 5 जिले ऐसे थे, जहां पर अनुसूचित जाति औसत 30% है. सीतापुर में सबसे ज्यादा 31.87% अनुसूचित जाति के लोग हैं. पासी की संख्या बहुत ज्यादा है. यहां 59% तक मतदान हुआ. हरदोई में एससी आबादी 31.36% है. पासी और धोबी वोटर निर्णायक भूमिका में है. यहां 56% मतदान हुआ. उन्नाव में 30.64% एससी आबादी है. पासी वोटर ज्यादा है. यहां भी 56% वोट पड़े. ऐसे ही रायबरेली में भी 29.83 पासी और दलित हैं. यहां वोटिंग प्रतिशत 59 रहा. किसान आंदोलन के बाद चर्चा में रहा लखीमपुर खीरी में 25.58% एससी हैं, यहां सबसे ज्यादा 63% वोट पड़ा.

वोटिंग प्रतिशत को देखकर लगता है कि कुछ जगहों पर औसत से ज्यादा मतदान हुआ. पिछली बार सीतापुर, उन्नाव, हरदोई और लखीमपुर सीटों पर पासी वोटर का बीजेपी की तरफ झुकाव था, लेकिन अबकी बार ये बीजेपी से दूर हुए हैं. किसान आंदोलन का असर भी दिखा. ऐसे में बीएसपी से पहले ही दूर हुए पासी वोटर के पास एसपी में जाने का विकल्प था. शायद इससे अखिलेश यादव को बड़ा फायदा मिल सकता है.
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लखनऊ में जहां बीजेपी स्ट्रांग मानी जा रही थी, वहां कम मतदान हुआ

लखनऊ से बीजेपी लोकसभा का चुनाव जीतती आई है, लेकिन विधानसभा चुनाव में समीकरण बिगड़ जाते हैं. 9 में से मोहनलालगंज ऐसी सीट है जहां से आज तक बीजेपी नहीं जीत सकी. साल 2017 में मोदी लहर थी. 8 सीट जीत गई लेकिन मोहनलालगंज सीट पर एसपी ने कब्जा जमाया.

मलिहाबाद, बख्शी का तालाब और मोहनलालगंज में वोटिंग ज्यादा हुई. वहीं जहां पर बीजेपी मजबूत दिख रही है, जैसे कि लखनऊ कैंट, लखनऊ सेंट्रल और सरोजनीनगर, वहां पर अन्य सीटों की तुलना में कम वोट पड़े. शायद अबकी बार बीजेपी वोटर्स ने कम उत्साह दिखाया.

लखनऊ वेस्ट में मुस्लिम आबादी ज्यादा है. यहां करीब डेढ़ लाख मुस्लिम वोटर हैं. यहां 55% वोट पड़ा. सरोजनीनगर में 53% वोट पड़ा. यहां मुकाबला ब्राह्मण वर्सेज ठाकुर का होता दिखा.

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लखीमपुर खीरी में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी भारी सुरक्षा में वोट डालने पहुंचे थे. पूरे चुनाव में ये सबसे ज्यादा चौंकाने वाली और कुछ संकेत देती तस्वीर थी. आखिर इतनी भारी सुरक्षा की जरूरत क्या पड़ गई. इतना ही नहीं, उन्होंने मीडिया से बात तक नहीं की. जबकि लखनऊ में वोट डालने पहुंचे बड़े-बड़े नेताओं ने अपनी बात रखी.

यानी संकेत साफ था कि पहले तीन चरणों की तरह ही चौथे चरण में भी किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर दिखा. सिख मुस्लिम और कुछ जगहों पर बंगाली वोटर ने बढ़ चढ़कर वोट किया. माना जा रहा था कि चौथा चरण बीजेपी के लिए फायदा देने वाला साबित होगा, लेकिन किसान बेल्ट में बंपर वोटिंग ऐसे संकेत नहीं देती. ऐसे में एसपी गेन करती हुई दिख रही है.

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